वाल्मीकि जयंती पर विशेष-शरद पूर्णिमा आज
बलिया से महर्षि वाल्मीकि का संबंध
वह वाल्मीकि आश्रम कहाँ था, जहाँ लव- कुश का जन्म हुआ था ?
बलिया. सनातन वैदिक परम्परा के ऋषि-मुनि भ्रमण करते रहते थे, इसलिए उनके आश्रम अनेक स्थानों पर होने के प्रमाण मिलते हैं , रामायण, संस्कृत महाकाव्य ग्रंथ के रचयिता महर्षि वाल्मीकी के आश्रम को लेकर भी विद्वानों में मतभेद है , रामायण काल के आद्य संस्कृत कवि वाल्मीकि ने अपने जीवनकाल का उत्तरार्ध गंगा नदी के उत्तर और तमसा नदी के दक्षिण तट पर स्थित प्राचीन विमुक्त तीर्थ, भृगु-दर्दर क्षेत्र के अरण्य में स्थित आश्रम में बिताए थे. यहीं उन्होनें अयोध्या की परित्यक्त महारानी सीता को शरण दिया था .
इस वाल्मीकि आश्रम पर जिन स्थानों का दावा है , पहले इसी बिन्दु पर विश्लेषण करते हैं .
इस पर पहला दावा भारत – नेपाल सीमा पर स्थित बिहार प्रांत के पश्चिमी चम्पारण में स्थित बाल्मीकी नगर का है. जिसके संबंध में स्थानीय लेखकों का दावा है कि यह स्थान प्राचीन मिथिला राज्य की सीमा के बिलकुल समीप है.
अयोध्यापति राजा राम महारानी गर्भवती सीता को राजधर्म की मर्यादा रक्षा के लिए वन भेज रहे थे , इस कारण उन्होंने उनके नैहर मिथिला के निकट का जंगल चुना था , ताकि किसी संकट में उन्हें उनके माता-पिता की मदद मिल सके.
आर्षग्रन्थों से इस बात की पुष्टि होती है कि गर्भवती जानकी जी को जंगल में छोड़ने के पहले इस बात का विचार किया गया था और स्वयं प्रभु श्रीराम एवं कुलगुरु वशिष्ट जी चाहते थे कि महारानी सीताजी अपने पिता राजा जनक के यहाँ चली जाएं , किन्तु सीताजी ने स्वयं वन में रहने की बात का वरण किया था.
इस दावे पर शिवकुमार कौशिकेय का कहना है कि बाल्मीकी नगर के बाल्मीकी आश्रम के समीप गंगा , तमसा नदी नहीं है , यह स्थान जंगल में है.
दूसरा प्रमुख दावा कानपुर के बिठूर का है , यहाँ भव्य मंदिर भी बना हुआ है. इसके समीप हिडन नदी भी है , जिसे गंगा नदी का छाड़न या गंगा की सहायक नदी मानना चाहिए . यह स्थान अयोध्या से पश्चिमोत्तर दिशा में स्थित है. भविष्यपुराण , प्रतिसर्गपर्व 4/10/54 के हवाले से बिठूर को लव-कुश की जन्मभूमि कहा गया है.
तीसरा दावा वाराणसी – प्रयागराज मार्ग पर गोपीगंज से 20 किमी दक्षिण में वारिपुर -दिगपुर गाँवों के बीच गंगा नदी तटपर स्थित सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी का है . यहाँ पर माता सीता के पृथ्वी में समाहित होने वाले समय का बहुत भावनात्मक मंदिर इसके शोधार्थी संत स्वामी जितेन्द्रानंद तीर्थ जी ने 1992 ईस्वी में बनवाया है.
चौथा दावा छत्तीसगढ़ के बालौदा बाजार जिले में स्थित तुरतुरिया नदी तट के तुरतुरिया आश्रम का भी है. जिसे स्कंदपुराण आवन्त्यखण्ड 1/24 के हवाले से बाल्मीकी आश्रम बताया गया है.
इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी वाल्मीकि आश्रम होने के प्रमाण रखें जाते होंगे , संभव है ,वहाँ महर्षि वाल्मीकि ने कुछ समय तक निवास भी किये हों , उनका आश्रम भी रहा हो , क्योंकि उस कालखण्ड में भी और वर्तमान में भी संत – महात्माओं के अनेक आश्रम होते है.
रामायणकाल के सबसे प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ बाल्मीकीय रामायण संस्कृत महाकाव्य के बालकाण्ड अध्याय के द्वितीय सर्ग मेंं स्वयं महर्षि बाल्मीकी लिखते हैं कि हमारा आश्रम तमसा नदी के तट पर है , जो गंगा जी से अधिक दूर नहीं है.
*स मुहूर्तं गते तस्मिन् देवलोकं मुनिस्तदा ।
जगाम तमसातीरं जाह्नव्यास्त्वविदूरतः ।। बा.रा.2/3*
वह अपने शिष्य भारद्वाज से कहते हैं –
*न्यस्यतां कलशस्तात दीयतां वल्कलं मम ।
इदमेवावगाहिष्ये तमसातीर्थमुत्तमम् ।। बा.रा2/6*
तात ! यहीं कलश रख दो और मुझे मेरा वल्कल दो. मैं तमसा के इसी उत्तम तीर्थ मेंं स्नान करुंगा ।
बाल्मीकीय रामायण बालकाण्ड के द्वितीय सर्ग से इतनी बात तो प्रमाणित हो गई है कि महर्षि बाल्मीकी का आश्रम तमसा नदी के तटपर था , जिसके समीप ही गंगा नदी प्रवाहित होती थी , और महर्षि ने इसी आश्रम में रामायण महाकाव्य लिखा था ।
यहाँ पर यह जान लेना भी ठीक रहेगा कि महर्षि बाल्मीकी का आश्रम गंगा नदी के उत्तर तट पर था और यह स्थान अयोध्या राज्य की दक्षिण सीमा पर था , जहाँ से पूर्व दिशा में प्रवाहित गंडकी नदी को पार करने के बाद राजा जनक का मिथिला राज्य प्रारंभ हो जाता था .
राजा रामचन्द्र जी पटरानी गर्भवती सीता जी को जंगल में बाल्मीकी आश्रम के समीप छोड़ने के लिये श्री लक्ष्मण जी अयोध्या से रथ पर लेकर आए हैं , यह दोनों ब्राह्ममुहूर्त अर्थात अति प्रातः निकले हैं और संध्या काल में गंगा तट पर पहुँच गए हैं , तो यह बात भी ध्यान देने की है कि अयोध्या से बाल्मीकी आश्रम की दूरी किसी द्रुतगति से चलने वाले रथ से अधिकतम बारह घंटे में पूरी हो जानी चाहिए.
अगर हम तमसा तट पर , गंगा नदी के निकट आश्रम और अयोध्या से आश्रम की दूरी के तर्क को मानते हैं तो उपरोक्त सभी स्थानों के दावों पर प्रश्नचिह्न खड़े हो जाते हैं. बिहार के बाल्मीकी नगर और छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के तुरतुरिया मेंं गंगा और तमसा नदियों का अस्तित्व ही नहीं है.
अब हम इसके एक और महत्वपूर्ण साक्ष्य की ओर चलते हैं.
श्री बाल्मीकीय रामायण उत्तरकाण्ड में जब लक्ष्मण जी गंगा नदी के तट पर सीता जी को रोते- बिलखते छोड़कर जाते हैं.
तदेतज्जाह्नवीतीरे ब्रह्मर्षीणां तपोवनम् ।
पुण्यं च रमणीयं च मा विषादं कृथाः शुभे ।। बा.रा.47/15
व्यथित मन से रोते हुए अयोध्या के लिये चलते हैं तो वह दो दिन में पहुँचते हैं, मार्ग में उन्हें मंत्री सुमंत जी उन्हें ऋषि दुर्वासा द्वारा प्रभु श्रीराम और सीता जी के इस बिरह वियोग एवं बिछुड़ने का कारण देवासुर संग्राम के समय महर्षि भृगु जी द्वारा दिये गए श्राप को बता कर उन्हें सांत्वना देते हैं .
श्रृणु राजन् पुरा वृत्तं तदा देवासुरे युधि …49/11
दैत्याः सुरैर्भत्सर्यमाना भृगुपत्नीं समाश्रिताः ।
तया दत्ता भयास्तत्र न्यवसन्नभयास्तदा ।। बा.रा.49/12
उत्तरकाण्ड मे ही एक और साक्ष्य मिलता है , जब श्री शत्रुघन जी को राजा रामचन्द्र जी मधुपुरी ( मथुरा ) के राजा बाणासुर के पुत्र लवणासुर पर विजय करने के लिये भेजते हैं तो कहते हैं कि पहले महर्षि बाल्मीकी के आश्रम पर जाना, उसके बाद मधुपुरी जाना, अयोध्या के सैन्य बल के साथ जिसदिन सायंकाल शत्रुघ्न जी वाल्मीकि आश्रम पहुँचते हैं, उसी रात्रि में सीता जी कुश – लव अपने जुड़वा पुत्रों को जन्म देती हैं.
यामेव रात्रिं शत्रुघ्नः पर्णशालांं समाविशत्।
तामेव रात्रिं सीतापि प्रसूता दारकद्वयम् ।।बा.रा.66/1
अपनी सेना को सेनानायकों के नेतृत्व में नाव से गंगा और यमुना नदी के रास्ते मधुपुरी राज्य की सीमा में चोरी -छिपे प्रवेश करने की आज्ञा देकर राजकुमार शत्रुघ्न स्वयं महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पर निवास करते हैं और दोनों राजकुमारों कुश-लव के जातक , नामकरण संस्कार में बतौर अभिभावक शामिल होते हैं . शत्रुघ्न जी यहाँ से सात दिनों की यात्रा करने के बाद मधुपुरी ( मथुरा) पहुँचते हैं.
ऐसे में अगर गंगा तट के दो स्थानों दिगपुर-वारिपुर सीतामढ़ी या कानपुर के बिठूर को लव – कुश के जन्म का बाल्मीकी आश्रम माना जाता है तो यह बहुत ज्यादा समय है.
दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है कि बिठूर अयोध्या से पश्चिमोत्तर में है , जबकि सीता जी को अयोध्या के दक्षिण दिशा में प्रवाहित तमसा नदी के समीप गंगा नदी के तटपर छोड़ा गया था.
जिसके पूर्व दिशा में थोड़ी ही दूरी पर गंडकी नदी अवध और मिथिला राज्य की सीमा निर्धारित करती थी. गोपीगंज सीतामढ़ी मे तमसा नदी नहीं है और गंडकी नदी की दूरी पूरब दिशा में दो सौ किमी से भी अधिक दूर है.
सबसे बड़ा साक्ष्य तो स्वयं वाल्मीकि जी सीताजी को सांत्वना देते समय देते हैं.
स्नुषा दशरथस्य त्वं रामस्य महिषी प्रिया ।
जनकस्य सुता राज्ञः स्वागतं ते पतिव्रते ।। बा.रा.49/11
महर्षि बाल्मीकी सीमांत वन के तपस्वी होने के कारण राजा दशरथ और राजा जनक दोनों के ही मित्र हैं.
रामायण के भूगोल पर भी बहुत अनुसंधान हुआ है । आज भी हो रहे हैं ” कनिङ्घम की ऐन्शेन्ट डिक्शनरी , श्रीदेके ” जाग्रफिकल डिक्शनरी” में इस पर कई रिसर्च हैं । लंदन के ” एशियाटिक सोसायटी जर्नल ” भी लेख छपा है ।
महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य के चौदहवें सर्ग के श्लोक 76 में लिखा है कि ” तमसा तट पर ही वाल्मीकि आश्रम था.
इनकी ही बात को भवभूति जी स्पष्ट कर दिया है कि –
“अथ सः ब्रह्मर्षि कदा मध्यं दिनं सावनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः ।’
वाल्मीकि आश्रम के संदर्भ में उसके मलद – करुष राज्य की सीमा पर होने का उल्लेख है. इस संदर्भ से भी बलिया जिले के दावे की पुष्टि होती है , यह राज्य वर्तमान बिहार राज्य के आरा जिले के उत्तर दिशा में था. करुष राज्य की सीमा कामदहन भूमि कामेश्वरधाम कारों से जुड़ी है.
बलिया जिले का नाम बलिया पड़ने के सन्दर्भ में शासकीय अभिलेख बलिया गजेटियर में संस्कृत के रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि बाल्मीकी के आश्रम होने का उल्लेख किया गया है. जिससे इसका नाम बाल्मीकी आश्रम से आंचलिक भोजपुरी में बालमिकीया पड़ा जिसका अपभ्रंश बलिया हो गया.
पूर्वकाल में यहाँ वाल्मीकि आश्रम के होने के सांस्कृतिक अवशेष बलिया जिले की बाँसडीह तहसील के पचेव गाँव में स्थित माता सीता मंदिर को बताया जाता है जहाँ एक प्राचीन मंदिर में आदमकद माता सीता की दो छोटे बच्चों कुश और लव के साथ लाल बलुआ पत्थर की बनी प्रतिमा स्थापित है.
इस गाँव के निकट ही बिगही , बहुआरा, सीताकुण्ड गाँव है. बिगही को भोजपुरी में बिगल – फेंकी हुई .
स्थानीय लोक परंपराएं भी इस बात को बल देती हैं कि अयोध्या की महारानी सीता ने अपना निर्वासन काल यहाँ स्थित बाल्मीकि आश्रम पर बिताया था और यहीं अपने जुड़वा पुत्रों कुश – लव को जन्म दिया था .
यहाँ पचेवं गाँव में जो माता सीता का मंदिर है , यहाँ स्थानीय महिलाएं दाल भरी पूरी चढ़ाती हैं , जिसे बहू के आने पर विशेष रूप से घरों में बनता है , इसके अलावे यहाँ दाल- भात , कढ़ी , बरी , बजका आदि विशेष प्रकार के भोज्यपदार्थों को चढ़ाने की परम्परा है .
स्थानीय लेखकों में स्व. कुलदीप नारायण सिंह झड़प , स्व. बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त ने अपनी पुस्तक ” बलिया और उसके निवासी ” तथा सूचना विभाग बलिया द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिकाओं में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि यहाँ पर वाल्मीकि आश्रम था , जहाँ सीता जी ने कुश- लव को जन्म दिया था . स्थानीय विद्वान डा.रघुवंशमणि पाठक ने भी अनेक पत्र – पत्रिकाओं के लिए लिखे अपने लेख में यहाँ महर्षि वाल्मीकि आश्रम होने एवं कुश – लव को यहाँ स्थित आश्रम में माता सीता द्वारा जन्म देने का उल्लेख किया है.
इतना ही नहीं इन्होंने तो माता सीता के नाम पर सीतेश्वरनाथ मंदिर तक की बात लिखी है.
जिसके आधार पर पचेवं देवी मंदिर के पश्चिम में स्थित क्षितेश्वरनाथ शिवमंदिर के आसपास अनेक लोगों के द्वारा महर्षि बाल्मीकी की मूर्तियां स्थापित कर यहीं वाल्मीकि आश्रम होने की बात बताई जाती है.
ज्ञातव्य है कि अयोध्या की महारानी सीता जी को उनके पति राजा रामचन्द्र जी ने जंगल में छोड़वा दिया था. बहुआरा अर्थात बहू का निवास स्थान.
सीताकुण्ड गाँव के बारे में बताया जाता है कि गंगा – तमसा नदी के खादर से बने, इस कुण्ड में सीता जी स्नान करने आती थी.
इन अभिलेखीय और परिस्थितिजन्य भौगोलिक साक्ष्यों के अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि जिस बाल्मीकी आश्रम के जंगल में माता सीता जी को रामानुज लक्ष्मण जी ने छोड़ा था.वह तत्कालीन अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा पर स्थित है.अयोध्या राजपरिवार का कोई भी व्यक्ति गर्भवती महारानी सीता को वन में छोड़े जाने के पक्ष में नहीं था. किन्तु एक राजा की मर्यादा स्थापित करने के लिए भगवान श्री राम ने सीता जी को जंगल में छुड़वाया था.
आर्षग्रंथो में महर्षि वाल्मीकि जी का आश्रम तमसा नदी के दक्षिण और गंगा नदी के उत्तर दिशा में होने का वर्णन मिलता है.
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्व काल में गंडकी नदी अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा का विभाजन करती थी. गंडकी नदी का प्राचीन प्रवाह मार्ग इस स्थान से मात्र बीस किमी दूर था. वर्तमान समय में गंडकी नदी यहाँ से लगभग पचास किमी पूर्व दिशा में छपरा बिहार में है.
बाल्मीकीयरामायण , रघुवंशमहाकाव्य , बलिया गजेटियर और स्थानीय लेखकों कुलदीप नारायण सिंह ‘ झड़प’, बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त की पुस्तकों , लोक परंपराओं एवं श्रुतियों के विवेचन के उपरांत यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है कि अयोध्या की महारानी सीता जी ने बलिया जिले के बिगहीं, सोनवानी, बहुआरा गाँव के समीप स्थित पचेवं गाँव के वाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्रों कुश – लव को जन्म दिया था .
पचेवं के वर्तमान मंदिर मे लाल बलुआ पत्थर की बनी चार फीट ऊंची सीता जी की प्रतिमा स्थापित है , इनके दोनों तरफ दो बालकों कुश – लव की मूर्ति बनी है .यह तीनों प्रतिमाएं एक ही पत्थर मे. बनीं हैं. शिल्प कला के हिसाब से यह प्रतिमा लगभग 300-350 वर्ष पुरानी है . इस मंदिर के समीप ही किसी निर्माण के निमित्त नींव की खुदाई में कुछ ईंटें मिली है जो 1300-1400 साल पुरानी है.
पहले यहाँ पर सीता नवमी के अवसर पर महीने भर का मेला लगता था जो स्थानीय कारणों से बंद हो गया है. यह स्थान आज भी बियाबान जगह पर खेतों के बीच मे स्थित है.
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शोधकर्ता – डाॅ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय
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