
बलिया में गंगा की बाढ़ के लिए चेतावनी स्तर 56 मीटर का रखा गया है. 57 मीटर की ऊंचाई को बलिया का बाढ़-प्रखंड खतरनाक की श्रेणी का मानता है. आप भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आज की तारीख में बलिया में गंगा का स्तर लगभग 60 मीटर को छू रहा है. यह 2016 की विनाशकारी बाढ़ से बस कुछ ही सेंटीमीटर कम है.
छात्र-जीवन में हमें पढ़ाया गया था कि “ह्वांग-हो” नदी को चीन का शोक भी कहा जाता है. हमने “ह्वांग-हो” को तो नहीं देखा, लेकिन जिस नदी को उत्तर-भारत की जीवन रेखा कहा जाता है और जिसके किनारे मानव सभ्यता के शुरुआती कदम दिखाई देते हैं, उसी गंगा नदी को हमने बलिया के इस दोआबे में शोक की नदी के रूप में बदलते हुए जरूर देखा है.
बलिया से पूरब राष्ट्रीय राजमार्ग पर चलते हुए हम जब बादिलपुर गांव पहुंचते हैं तो वहां से दाहिने तरफ की बस्ती एकाएक समाप्त हो जाती है. अब उस तरफ केवल और केवल दियारा ही पसरा हुआ नजर आता है.
इस दियारे पर दो-तीन दशक पहले घनी आबादी वाले गांव हुआ करते थे, जिनमें पचासों हजार की आबादी बसी हुई थी. फिर अचानक गंगा ने अपना रास्ता बदला और एक-एक कर ये गाँव उसकी गोद में समाते चले गए.
जैसे गाँवों के कटने की कहानी अनवरत जारी रही, उसी तरह जन-प्रतिनिधियों का आश्वासन भी जारी रहा कि अगली बाढ़ से पहले इस कटान को रोक दिया जाएगा.और प्रशासन का भी कि हमने पूरा खाका तैयार कर लिया है. अब किसी गांव को कटने नहीं दिया जाएगा. गंगा एक-दो वर्ष शांत रहतीं. थोड़ी स्मृति धुंधली होती और फिर तीसरे-चौथे वर्ष में एक और गांव, एक और बस्ती उनमे समा जाती.
आजादी के बाद भारत ने अंतरिक्ष की ऊंचाई नापी है. चांद के माथे को चूमा है. मगर इस इलाके के लोगों के लिए गंगा से कटान का संघर्ष उतना ही तीखा बना हुआ है. गंगा यहाँ के लिए शोक की नदी बन गयी हैं.
इस बार का शोक का वह नंबर उदईछपरा, गोपालपुर और दुबेछ्परा गांवों पर आया है. रोज वहां से दो-चार-पांच घरों के गंगा में विलीन होने की खबर आ रही है. प्रत्येक बाढ़ की तरह इस बार भी इस इलाके के नक़्शे से एक-दो गाँव इतिहास की कोख में समाने जा रहे हैं.
मुझे याद है, जब 2003 की भयावह बाढ़ में जब राष्ट्रीय राजमार्ग अब-तब की स्थिति में आ गया था तो सेना को बुलाया गया था. उनकी सलाह यहां के समाचार-पत्रों में छपी थी कि गंगा को उनकी मुख्यधारा में बिना वापस लौटाये इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता.
सामान्यतया गंगा जहाँ पश्चिम से पूरब बहती हैं, इसके विपरीत इस इलाके में उनका रुख दक्षिण से उत्तर दिशा की तरफ हो गया है | राम जानें, उस रिपोर्ट का क्या हुआ.
वैसे …. यहां उम्मीदों के टूटने की यह कहानी इतनी गहरी है कि इस इलाके में रहने वाला सबसे आशावादी आदमी भी आपको यही कहता हुआ मिल जाएगा कि अब तो उपरवाला ही कोई चमत्कार कर सकता है. बाकी जमीन के लोगों के आश्वासन अब उसे सुनने लायक भी नहीं लगते, भरोसे की बात तो दूर है.
चलते चलते ………………
लगभग एक पखवारे की आफत के बाद आज यह राहत वाली खबर आ रही है कि गंगा का पानी अब बनारस में धीमे-धीमें उतरने लगा है. यदि यह क्रम बरकरार रहा तो कल से बलिया में भी पानी के उतरने का रुझान दिखाई देने लगेगा.
हालांकि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पानी का भराव इतना अधिक है कि जमीन पर इस धीमें उतराव का सीधा असर दो-चार दिन बाद ही दिखाई देगा. फिर इसका यह सांकेतिक महत्व तो है ही कि संकट की ये भयावह घड़ियाँ भी अब बीत ही जाएंगी.
…….. वैसे पानी उतरने वाली जो बात गंगा के लिए अविधा में कही जा सकती है, कुछ लोग मानते हैं कि वही बात यहाँ के प्रशासन और जन-प्रतिनिधियों के लिए व्यंजना में भी कही जानी चाहिए.
(लेखक के फेसबुक कोठार से साभार)