Ballia News: लक्ष्मी नारायण यज्ञ में साध्वी नीलम ने जालंधर और वृंदा की कथा का कराया रसपान

BALLIA NEWS: लक्ष्मी नारायण यज्ञ में साध्वी नीलम ने जालंधर और बिंद्रा की कथा का कराया रसपान ओझा कछुआ में चल रहा है लक्ष्मी नारायण महायज्ञ
Ballia News: लक्ष्मी नारायण यज्ञ में साध्वी नीलम ने जालंधर और वृंदा की कथा का कराया रसपान
ओझा कछुआ में चल रहा है लक्ष्मी नारायण महायज्ञ

 

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दुबहर, बलिया क्षेत्र के ओझा कछुआ में हो रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के तृतीय दिवस श्री रामकथा में पूज्य नीलम साध्वी जी ने जलंधर ओर विन्द्रा की कथा का श्रवणपान कराया भक्तों को!

हिंदू धर्मग्रन्थों के अनुसार, वृंदा नाम की एक कन्या थी. वृंदा का विवाह समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए जलंधर नाम के राक्षस से कर दिया गया.

वृंदा भगवान विष्णु की भक्त के साथ एक पतिव्रता स्त्री थी जिसके कारण उसका पति जलंधर और भी शक्तिशाली हो गया. यहां तक कि देवों के देव महादेव भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे.

भगवान शिव समेत देवताओं ने जलंधर का नाश करने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थनी की. भगवान विष्णु ने जलंधर का भेष धारण किया और पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता नष्ट कर दी. जब वृंदा की पवित्रता खत्म हो गई तो जालंधर की ताकत खत्म हो गई और भगवान शिव ने जालंधर को मार दिया.

वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह क्रुद्ध हो गई और उन्हें भगवान विष्णु को काला पत्थर बनने (शालिग्राम पत्थर) श्राप दे दिया.

वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह अपनी पत्नी से अलग हो जाएंगे. राम के अवतार में भगवान सीता माता से अलग होते हैं.

फिर उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और खुद के एक रुप को पत्थर में समाहित करते हुए कहा कि आज से तुलसी के बिना मैं प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा. इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा. कार्तिक महीने में तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह भी किया जाता है.

जो लोग तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है. देवोत्थान एकादशी पर केवल तुलसी विवाह ही नहीं होता है. इस व्रत के शुभ प्रभाव से शादी में आ रही सारी रुकावटें दूर होने लगती हैं और शुभ विवाह का योग जल्दी ही बन जाता है.

तुलसी को धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व दिया जाता है. तुलसी के पौधे का इस्तेमाल यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना और उपासना आदि में होता है. इसके अलावा तुलसी का इस्तेमाल पवित्र भोग, प्रसाद आदि में किया जाता है. भगवान के चरणामृत में भी तुलसी का उपयोग किया जाता है.

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