गाँधी जयन्ती (2 अक्टूबर) पर विशेष: “प्रकृति संरक्षण के लिए समर्पित था गाँधीजी का जीवन दर्शन”

बलिया.अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं वर्तमान में जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के शैक्षणिक निदेशक पर्यावरणविद् डा० गणेश पाठक ने बलिया लाइव को एक भेंटवार्ता में बताया कि महात्मा गाँधीजी का सम्पूर्ण जीवन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण के लिए समर्पित रहा. वर्तमान समय में महात्मा गाँधी के पर्यावरण संरक्षण संबंधी विचारों की उपादेयता और बढ़ गयी है. हम जानते हैं कि न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एवं अनियोजित तथा अनियंत्रित विकास हेतु जिस तरह से प्रकृति का अंधाधुंध दोहन एवं शोषण किया गया और किया जा रहा है ,उससे सम्पूर्ण पृथ्वी कराह उठी है. प्रकृति में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गयी है, जिसके चलते प्राकृतिक आपदाएँ हमसे बदला लेने एवं हमारा विनाश करने हेतु तत्पर हैं.

 

उपर्उक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में यदि हम गाँधी जी पर्यावरण संबंधी विचारों पर दृष्टपात करें तो यह यह बात स्पष्टतया समक्ष में आ जा रही है कि गाँधी जी के विचार आज विशेष प्रासंगिक हो गये हैं. यद्यपि कि गाँधी जी सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण संबंधित विचार प्रस्तुत नहीं किए हैं, किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से उनके द्वारा प्रस्तुत सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, स्वच्छता, प्रेम, दया, उनका आश्रम जीवन, खादी आन्दोलन, निसर्गोपचार अर्थात् प्राकृतिक चिकित्सा, स्वदेशी आंदोलन, कुटीर उद्योग, ग्रामीण अर्थव्यवस्था संबंधी विचार, श्रम एवं रोजगार संबंधी विचार, सादा जीवन, उच्च विचार, असंग्रह आदि ऐसे उनके विचार हैं, जिनके अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जा रही है कि गाँधी जी के विचारों में पर्यावरण संरक्षण की भावना एवं विचार कुट – कुट कर भरे हैं. हम आप सभी जानते हैं कि गांधी जी को आश्रम जीवन पद्धति अर्थात् प्राकृतिक जीवन शैली के आधार पर जीवनयापन से विशेष प्रेम था, जो उनके पर्यावरण संरक्षण की भावना की तरफ इंगित करता है.

 

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

 

इसी तरह गाँधी जी ‘निसर्गोपचार‘ अर्थात् प्राकृतिक चिकित्सा पत्धति के हिमायती थे, जिनमें किसी भी तरह से प्रकृति का क्षरण नहीं होता है. गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे और उनका मत था कि किसी भी तरह का शोषण हिंसा है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रकृति अर्थात् पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के तत्वों को दोहन एवं शोषण भी एक प्रकार की हिंसा है. प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त कर हम हिंसा ही करते हैं. आज सबका एक ही लक्ष्य हो गया है – येन- केन प्रकारेण सुख- सम्पति एवं सुविधा बढ़ाने हेतु संसाधनों का शोषण करना, जो अंततः विनाशकारी ही सिध्द हो रहा है. इस शोषण की आपा-धापी से बचने गाँधी जी ने एक मंत्र दिया है. गाँधीजी ने कहा है कि, ” मैं आपको एक मंत्र दे रहा हूँ. जब भी आप संशग्रस्त हों अथवा भ्रमित हों तो या स्वार्थ से वशीभूत हो जाएँ तो आप यह उपाय करके देखिए- “आप अपने सामने आए हुए किसी अति दरिद्र असहाय एवं लाचार व्यक्ति का चेहरा अपने आँखों के सामने लाइए और आपने जो योजना तैयार की है, उस योजना से वह व्यक्ति लाभान्वित होगा कि नहीं? आप स्वयं से ऐसा प्रश्न कीजिए. इस प्रश्न को जो उत्तर मिलेगा, वही वास्तव में विकास एवं प्रगति को मापने का मापक होगा.” गाँधी जी के इस उपाय में निश्चित तौर पर प्रकृति संरक्षण की अवधारणा छिपी हुई है.

गाँधीजी के सत्य, प्रेम एवं अहिंसा के विचार में यदि अहिंसा को देखा जाय तो उनकी अहिंसा से पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में उनकी अहिंसा से तात्पर्य है – स्वयं जीवनयापन करते हुए दूसरों को भी जीने में सहायता करें” इस विचारधारा के आधार उन्होंने सम्पूर्ण प्रकृति के कारकों को शामिल किया है. वे प्रकृति के पाँच मूलभूत तत्वों- क्षिति, जल, पावक, गगन एवं समीर की बात करते हैं और उन्हें सुरक्षित तथा संरक्षित करने की बात सोचते हैं. गाँधीजी का कहना है कि ” प्रकृति में सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता है, किंतु उसमें एक भी व्यक्ति की लोभ को पूरी करने की क्षमता नहीं है.” यह विचारधारा उनकी भोग – लालसा के खिलाफ बोले गये विचारों में है. आवश्यकताओं के आधार पर जीवन जीने का उनका विचार प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की तरफ ही इंगित करता है.

गांधी जी के यदि हम खादी आंदोलन के विचार को देखें तो यह पाते हैं कि खादी मात्र एक वस्त्र की विचारधारा नहीं है, बल्कि एक पूरी जीवन प्रणाली है। पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण की दृष्टि यह सर्वोत्तम विचार है. गाँधीजी का स्वच्छता संबंधी विचार तो सीधे तौर पर पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण भगाने की विचारधारा से ओत-प्रोत है. स्वच्छता एवं स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन बसता है. जहाँ मन स्वस्थ होगा, वहाँ हिंसा नहीं होगी और हिंसा नहीं होगी तो प्रकृति का विनाश नहीं होगा.
इस तरह यदि देखा जाए तो गाँधीजी की जीवनचर्या पूर्णरूपेण प्रकृति: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के तत्वों के संरक्षण के लिए समर्पित थी. उनके कार्य, उनके विचार, उनके सिद्धांत , उनकी जीवन शैली आदि सभी पक्ष सम्पूर्ण प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण के लिए समर्पित था. आज पुनः हमें गाँधीजी के विचारों को अपनाने की आवश्यकता है तभी प्रकृति को बचाया जा सकता है.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE