
बलिया। महर्षि भृगु ने गंगा सरयू के संगम कराने वाले अपने प्रिय शिष्य दर-दर मुनि के सम्मान में कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर कराए गए महायज्ञ में और अपने भाई शुक्राचार्य द्वारा अपने ननिहाल के वंशज महाराज बलि के बलियाग महायज्ञ में विश्वकर्मा जी के बलिया आने के प्रमाण मिलते हैं.
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वर्तमान भृगुआश्रम के भृगु मंदिर में अपने पिता महर्षि भृगु की समाधि के दाहिने तरफ आदमकद विग्रह में विश्वकर्मा जी विराजमान हैं. महर्षि भृगु के पुत्र शिल्पकारों के आराध्य भगवान विश्वकर्मा दैत्य गुरु शुक्राचार्य के सगे भाई और भगवान सूर्य के ससुर तथा वर्तमान वैवस्वत मन्वंतर के मनु यमलोक के राजा यमराज एवं यमुना के नाना है.
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विश्वकर्मा जी ऋग्वेद तथा पुराणों आदि ग्रंथों में वर्णित आदि इंजीनियर विश्वकर्मा जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अध्यात्मिक तत्ववेत्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि महर्षि भृगु की पहली पत्नी हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या देवी की कोख से पैदा हुए महान शिल्पकार विश्वकर्मा जी की जन्म कर्म की भूमि तो बलिया नहीं रही, परंतु अपने पिता से मिलने वे कई बार बलिया पधारे थे.
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देवासुर संग्राम में असमय माता की हत्या और पिता महर्षि भृगु के ब्रम्हलोक से निर्वासन ने अनाथ बालक को शिल्पी विश्वकर्मा बना दिया. माता पिता की प्यार और संरक्षण से वंचित विश्वकर्मा को ननिहाल में मय नाम से खूब दुलार मिला,
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