29 मार्च मंगल पाण्डेय क्रांति दिवस पर विशेष
बलिया से कृष्णकांत पाठक
भारत ही नहीं, विश्व भर में ब्रिटिश राज्य फैला हुआ था. कहते है उनके राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था. फिर किसी की क्या मजाल कि ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ कोई आवाज निकाल दे. अंग्रेजों का अत्याचार भारतीयों पर बढ़ता जा रहा था, परंतु किसी में सत्ता के खिलाफ बोलने का साहस नहीं था.
कोलकत्ता के बैरकपुर में 29वीं पलटन के सिपाहियों को उपयोग करने के लिए ऐसा कारतूस दिया गया, जिसमें गाय व सूअर के चर्बी मिली हुई थी. इसकी जानकारी होते ही क्रांति भूमि बलिया का जवान मंगल पाण्डेय का खून खौल उठा. 29 मार्च 1857 रविवार का दिन था. अवकाश होने के कारण अंग्रेज अफसर आराम फरमा रहे थे.
मंगल पाण्डेय ने बगावत के लिए इसी दिन का चयन किया और परेड ग्राउंड पर अपने साथियों को विद्रोह के लिए ललकारा. परेड मैदान में मंगल पाण्डेय खूंखार शेर की तरह इधर-उधर चहल कदमी करते रहे. बगावत की जानकारी मिलते ही अंग्रेज अफसर सार्जेंट मैजर ह्यूसन विद्रोही मंगल पाण्डेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. परंतु कोई सिपाही ऐसा करने के लिए आगे नहीं बढे़. गिरफ्तारी का आदेश सुनते ही मंगल पाण्डेय का खून उबलने लगा. मंगल की बंदूक गरजी और सार्जेंट मैजर ह्यूसन वहीं लुढ़क गया.
सार्जेंट मेजर की मौत की खबर सुनते ही घटना स्थल पर लेफ्टिनेट बॉब घोड़े पर सवार होकर परेड ग्राउंड की तरफ चला आ रहा था. स्थिति का आकलन करते हुए मंगल पांडेय की फिर बंदूक गरजी और घोड़े सहित बॉब जमीन पर लुढ़क गया. सेना के विद्रोही होने तथा दो अंग्रेज अफसरों के मारे जाने की खबर केवल हिन्दुस्तान में ही नहीं, लंदन तक आग की तरह पहुंच गयी. विद्रोह की खबर मिलते ही एक अन्य अंग्रेज अफसर ने पिस्तौल निकालकर गोली चलाई, परंतु निशना चूक गया. बलिया के नगवां के जवान मंगल पाण्डेय ने तलवार निकाल ली और एक ही बार में उसका भी काम तमाम कर दिया. इसी बीच एक अन्य गोरा सैनिक मंगल पाण्डेय पर हमला करना चाहा, लेकिन हमले से पहले किसी अन्य हिन्दुस्तानी सैनिक ने अपने बंदूक के कूंदे से उसे मार गिराया.
इस प्रकार भारतीय क्रांति की शुरुआत मंगल पाण्डेय ने की और वे आज भारत माता को आजाद कराने वाले पहले वीर सपूत बन गये.
भारतीय संस्कृत और माटी में है मंगल पाण्डेय की खुश्बू : विद्यार्थी
मंगल पाण्डेय विचार मंच के प्रवक्ता बब्बन विद्यार्थी ने मंगल पाण्डेय क्रांति दिवस पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बलिया की अस्मिता, संस्कृति और यहां की माटी की खुश्बू बरकरार रखने के लिए युवाओं में अपने राष्ट्र के प्रति देश भक्ति का जज्बा पैदा करना होगा. वहीं साहित्यकारों, पत्रकारों, रंग कर्मियों, गायक और गीतकारों को शहीद के नाम कविता, कहानी, लेख, नाटक एवं गीतों की रचना के माध्यम से श्रद्धा एवं आस्था के प्रतीक मंगल पाण्डेय के विचारों को जन-जन तक पहुंचाकर जागरूक करना होगा. यदि हम समर्पण भाव से इतना कर सके तो यही शहीद के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. आज भले ही मंगल पाण्डेय हमारे बीच नहीं है, परंतु उनकी राष्ट्र भक्ति, साहस व बलिदान हमेशा नई पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा.