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स्वास्थ्य, मौसम और खेती के प्रति आज भी बहुत कुछ बताती हैं घाघ की कहावतें
लवकुश सिंह
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है. स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के भी सैकड़ों सुझाव मिल जाते हैं, किंतु सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग. ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ, भड्डरी व नागार्जुन की कहावतें खेतिहर समाज, गांव के खानपान आदि के मामले में मार्गदर्शन करती रही हैं. यूपी-बिहार के गांवों में उनकी कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं, जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, स्वास्थ्य संबंधी आज के डाक्टरों के सलाह से भी काफी आगे निकल जाती है घाघ की वह कहावतें. ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं. प्रस्तुत है कवि घाघ की कहावतों की एक गहन पड़ताल………..
घाघ की कहावतों के अनुसार सावन हरे, भादो चइत, क्वार मास गुड़ खाए मीन अर्थात सावन महीने में हरे भादो मास में चिरैता, अश्विन मास में गुड़ का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. कार्तिक मूली, अगहन तेल, पौष में करे दूध से मेल, अर्थात कार्तिक महीने में मूली, अगहन में तेल तथा पौष माह में दूध का सेवन उत्तम है. माघ मास घिउ खिचड़ी खाए, फागुन उठकै प्रात: नहाए अर्थात माघ मास में घी खिचड़ी का सेवन करना चाहिए एवम फाल्गुन में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना सेहत के लिए अच्छा होता है.
चैत मास में नीम बेलहनी, वैसाखे खाय भात जरूरी अर्थात चैन मास में नीम जैसा तीता भोजन करना चाहिए एवं बैसाख महीने में चावल खाना चाहिए. जेठ मास जो दिन में सोए, ओकर जर असाढ़ में रोए. सावन साग न भादो दही, क्वार करैला न कार्तिक मही अर्थात सावन माह में साग, भादो में दही, अश्विन माह में करैला व कार्तिक माह में मट्ठा का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. पौष गहन जीर, पुषे धना, माघे मिश्री, फाल्गुन चना अर्थात अगहन महीने में जारी, पौष माह में धनिया, माघ महीने में मिश्री एवं फागुन में चने का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
मौसम और खेती-बारी पर घाघ की कहावतें
- सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर, परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर.
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे. - लगे शुक्र की बादरी, रहे शनीचर छाय, तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए.
यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएंगे. - भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय, ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय.
यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो, ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है. - अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि, चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि.
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे. - सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय, घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय.
यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा. - सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय, महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय.
यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे - पूस मास दसमी अंधियारी, बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे, भरे मेघ चारो दिसि बरसे।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी. कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो. - पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज, मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज.
यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा. - अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत, तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत.
यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा.
आकाल और सुकाल पर भी सचेत करती हैं कहावतें
- सावन शक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात, बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल.
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा. - असुनी नलिया अन्त विनासै, गली रेवती जल को नासै। भरनी नासै तृनौ सहूतो,
कृतिका बरसै अन्त बहूतों.
यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी. - आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत, नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत.
आषाढ़ की पूर्णिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा.
वर्षा पर के संबंध में सटीक है उनकी भविष्यवाणी
- रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय, कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय.
यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे. - उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि, भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि
उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया. चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है. अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है. - खनिके काटै घनै मोरावै, तव बरदा के दाम सुलावै.
ऊंख की जड़ से खोदकर काटने और खूब निचोड़कर पेरने से ही लाभ होता है, तभी बैलों का दाम भी वसूल होता है. - हस्त बरस चित्रा मंडराय, घर बैठे किसान सुख पाए.
हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं. - हथिया पोछि ढोलावै, घर बैठे गेहूं पावै।
यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है. - जब बरखा चित्रा में होय, सगरी खेती जावै खोय.
चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है. - जो बरसे पुनर्वसु स्वाती, चरखा चलै न बोलै तांती.
पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती. - जो कहुं मग्घा बरसै जल, सब नाजों में होगा फल.
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं. - जब बरसेगा उत्तरा, नाज न खावै कुत्तरा.
यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे. - दसै असाढ़ी कृष्ण की, मंगल रोहिनी होय,सस्ता धान बिकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोय.
यदि असाढ़ कृष्ण पक्ष दशमी को मंगलवार और रोहिणी पड़े तो धान इतना सस्ता बिकेगा कि कोई हाथ से भी न छुएगा. - असाढ़ मास आठें अंधियारी,जो निकले बादर जल धारी.
चन्दा निकले बादर फोड़, साढ़े तीन मास वर्षा का जोग.
यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी. - असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र, तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द.
यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा.
किसानों के पैदावार से जुड़ी कहावतें
- रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर,एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर.
यदि रोहिनी में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं, और चना) अच्छा होगा.
गहिर न जोतै बोवै धान, सो घर कोठिला भरै किसान.
गहरा न जोतकर धान बोने से उसकी पैदावार खूब होती है. - गेहूं भवा काहें, असाढ़ के दुइ बाहें।
गेहूं भवा काहें, सोलह बाहें नौ गाहें।
गेहूं भवा काहें,सोलह दायं बाहें।
गेहूं भवा काहें,कार्तिक के चौबाहें।
गेहूं पैदावार अच्छी कैसे होती है ? आषाढ़ महीने में दो बांह जोतने से; कुल सोलह बांह करने से और नौ बार हेंगाने से; कार्तिक में बोवाई करने से पहले चार बार जोतने से. - गेहूं मटर सरसी, औ जौ कुरसी.
गेहूं और मटर बोआई सरस खेत में तथा जौ की बोआई कुरसौ में करने से पैदावार अच्छी होती है. - पुरुवा रोपे पूर किसान, आधा खखड़ी आधा धान.
पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा पैया (छूछ) पैदा होता है. - पुरुवा में जिनि रोपो भैया, एक धान में सोलह पैया।
पूर्वा नक्षत्र में धान न रोपो नहीं तो धान के एक पेड़ में सोलह पैया पैदा होगा. - कन्या धान मीनै जौ, जहां चाहै तहंवै लौ.
कन्या की संक्रान्ति होने पर धान (कुमारी) और मीन की संक्रान्ति होने पर जौ की फसल काटनी चाहिए. - आद्रा में जौ बोवै साठी, दु:खै मारि निकारै लाठी.
जो किसान आद्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है ।