साहस, शौर्य एवं संवेदना के प्रतीक थे चंद्रशेखर 

बलिया लाइव ब्यूरो

बलिया। आठ जुलाई को पुण्यतिथि के मौके पर पूरे जिले में होंगे विविध कार्यक्रम. करोड़ों लोगों में कोई एक ही ऐसे होता है, जो अपने पीछे ऐसी यादें छोड़ जाते हैं, जिन्हें न केवल देश के लोग याद करते हैं, बल्कि  सारा संसार उनके कर्मों को याद करता है. विश्व इतिहास स्वर्ण अक्षरों में ऐसा नाम लिखा जाता है. वैसे ही ऐतिहासिक लोगों में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी थे. देश के इस महान सपूत का जन्म एक जुलाई 1927 को बलिया के गांव इब्राहिमपट्टी के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था.

सतीश चंद्र कालेज से हासिल की स्नातक की डिग्री

चंद्रशेखर के पिता का नाम सदानंद सिंह तथा माता का नाम द्रौपदी था. शुरू से ही पढ़ाई के साथ-साथ उनकी नजर देश तथा जनता की स्थिति पर गहरी थी. सतीश चंद्र डिग्री कॉलेज में स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चले गए. उन्होंने 1951 में राजनीति शास्त्र से स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की. उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत उनकी मातृभूमि से हुई. छात्र जीवन में वह आंदोलन के बाद उन्हें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का जिला सचिव बनाया गया. उनकी रूचि पत्रकारिता में रही. इसी भाव से शेखर जी ने साप्ताहिक पत्रिका का संपादन पद संभाला और उनका संपादकीय लेख विद्वानों को बहुत प्रभावित किया.

दो बार कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सदस्य रहे

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उन्हें पार्टी का प्रदेश सचिव बना दिया गया. वे 1962 में राज्यसभा के लिए चुने गए. 1964 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. 1967 में कांग्रेस संसदीय दल के मंत्री बने. 1969  के बाद वे लगातार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे. 1972  में हाईकमान के निर्देश के विरोध लड़कर शिमला अधिवेशन में चुनाव समिति के सदस्य चुने गए. वह दो बार कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के सदस्य भी रहे. 30 जून 1975  को आपातकाल की घोषणा होने पर कांग्रेस को अलविदा कहने वाले चंद्रशेखर को भी जेल में डाल दिया गया. आपातकाल की समाप्ति के बाद चुनाव की घोषणा हुई तो दिल्ली में जंतर-मंतर पर देश की सभी पार्टियों का मिलाजुला कार्यक्रम हुआ. इसमें कांग्रेस को छोड़कर सभी पार्टियों का विलय हुआ. 1977 में जनता पार्टी का गठन हुआ और चंदशेखर उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए.

कांग्रेस की शर्तें मानने की बजाय उन्होंने इस्तीफा देना श्रेयस्कर समझा

10 नवंबर 1990  को उन्होंने देश के आठवें प्रधानमंत्री की शपथ ली. बागडोर संभालते ही देश की प्रगति को उन्होंने तवज्जो दिया. हालांकि कांग्रेस समर्थन वापसी की सियासत करने लगी. उन्होंने शर्तों के आधार पर प्रधानमंत्री रहने की जगह इस्तीफा देना उचित समझा. मार्च 1991 में त्यागपत्र देने के बाद राष्ट्रपति के अनुरोध पर 20  जून 1991 तक वे पद पर बने रहे. उनका राजनीतिक जीवन चार दशकों तक देश पर छाया रहा. 1962  से 2007 तक उन्हें जो भी जिम्मेदारी दी गई. उसका उन्होंने भलीभांति निर्वहन किया. सदी का महान सपूत 8  जुलाई 2007 को हम से जुदा होकर चला गया. हालांकि उनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा बनी रहेगी.

पुण्यतिथि पर होगी सर्व धर्म सभा
शेखर फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिल सिंह ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की नौवीं पुण्यतिथि पर 8 जुलाई को कलेक्ट्रेट के सामने चंद्रशेखर उद्यान में सर्वधर्म सभा का आयोजन किया जाएगा. इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है. उन्होंने कहा कि इससे पूर्व विधायक सनातन पांडेय समेत कई बड़े नेता कार्यक्रम में शामिल होंगे. इस मौके पर वृहद पौधरोपण का कार्यक्रम भी आयोजित होगा. जिसमें फलदार व छायादार पौधे लगाए जाएंगे. अध्यक्ष श्री सिंह ने कहा कि चंद्रशेखर उद्यान को बेहतर लुक देने का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री की आदमकद प्रतिमा स्थापित की जाएगी. इसका अनावरण प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव करेंगे. कार्यक्रम में विधान परिषद सदस्य रवि शंकर सिंह पप्पू सहित अन्य दलों के नेता भी भाग लेंगे.
स्टेडियम में आयोजित होगी चित्रकला प्रतियोगिता
युवा तुर्क की पुंण्यतिथि पर शुक्रवार को वीर लोरिक स्टेडियम में चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गई है. इसमें जनपद के विभिन्न विद्यालयों के आठवीं तक के बच्चे भाग लेंगे. उसी दिन शाम को चित्रकला प्रतियोगिता का परिणाम घोषित कर दिया जाएगा. प्रथम, द्वितीय, तृतीय पुरस्कार के अलावा अन्य सफल प्रतिभागियों को सांत्वना पुरस्कार भी दिया जाएगा.

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