शहीद मंगल पांडे के नाम पर बना स्मारक जर्जर एवं खस्ताहाल

बलिया. आजाद भारत के 75 वर्षों बाद भी मंगल पांडे के नाम पर बना स्मारक आज भी खस्ताहाल एवं जर्जर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है. वर्तमान योगी सरकार ने स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक करोड़ 55 लाख रुपया आवंटित भी किया लेकिन लेकिन वित्तीय वर्ष बीत गया लेकिन स्मारक में अभी तक पुनरुद्धार का कार्य शुरू नहीं हो सका. क्षेत्रीय लोगों ने प्रदेश के मुखिया आदित्यनाथ योगी का एक बार फिर से ध्यान आकृष्ट कराते हुए मंगल पांडे के स्मारक के सुंदरीकरण की मांग की है.
भारत रत्न का सम्मान देने की मांग
मंगल पांडे विचार सेवा समिति उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष केके पाठक एवं महामंत्री अरुण कुमार ने भारत सरकार से स्वतंत्रता संग्राम के महानायक शहीद मंगल पांडे को भारत रत्न के सम्मान से सम्मानित करने की मांग की है.  मंगल पांडे के चिंगारी के परिणाम स्वरूप भारत को आजाद कराने की क्रांति की आग देश में भड़क उठी थी और देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ ऐसे वीर योद्धा को बहुत पहले ही भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए था वर्तमान मोदी सरकार से लोगों की अपेक्षा बढ़ गई है. शहीद मंगल पांडे को भारत रत्न के सम्मान से उनकी 166 वे शहादत दिवस पर अवश्य नवाजा जाना चाहिए.
बलिया. जो इंसान अपने देश, धर्म, जाति के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करता है उसी का इतिहास लिखा जाता है.इस कड़ी में शहीद मंगल पांडे जी का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है. फौजी अदालत में उन्होंने कहा था कि जो भी मैंने किया है राष्ट्र धर्म के लिए क्या है. स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम बिगुल 1857 में फूंकने वाले शहीद मंगल पांडेय को 8 अप्रैल को फांसी दी गई थी. बागी बलिया के इस वीर सपूत की देशभक्ति का हर कोई कायल था. यहां तक कि मंगल पांडेय की देशभक्ति के जल्लाद भी कायल थे.
रोचक तथ्य यह है कि इनकी फांसी एक दिन टल गई थी, क्योंकि जल्लादों ने मंगल पांडेय को 7 अप्रैल को फांसी देने से मना कर दिया था. तब जाकर 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5:30 बजे कोलकाता से जला दो को बुलाकर फांसी दी गई परंतु उन्हें यह नहीं बताया गया कि फांसी किसे देनी है.
मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गाजीपुर जनपद, बलिया तहसील के गंगातीरी गांव नगवा में हुआ था. इनके माता का नाम जानकी देवी और पिता का सुदिष्ट पांडेय था. मंगल पांडेय भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के बैरकपुर छावनी में 34 नंबर देसी पैदल सेना की,19वीं रेजिमेंट की 5वीं कंपनी के 1446 नंबर के फौजी सिपाही थे. इनमें शुरू से ही धार्मिक विचार एवं देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था.
उस समय हिंदुस्तान में अंग्रेजी साम्राज्य का बोलबाला था. अंग्रेजों के अत्याचार से सभी भारतीय सैनिक उद्वेलित थे. इसी बीच मंगल पांडेय को पता चला कि जो कारतूस दांत से खींचकर चलाते हैं,वह गाय और सुअर की चर्बी से तैयार होती है. यह घटना आग में घी का काम किया. 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में अचानक मंगल पाण्डेय भड़क उठे और अपने साथियों को क्रांति करने के लिए ललकारा. बैरकपुर छावनी अंग्रेजी सिपाहियों द्वारा घेर ली गई. इधर आहूति देने को तैयार मंगल पांडेय ने सार्जेंट मेजर ‘ह्यूशन’ और लेफ्टिनेंट ‘बाॅब’ को मौत के घाट उतार कर क्रांति की शुरुआत कर दी. मंगल पांडेय पकड़े गए और उन पर फौजी अदालत में मुकदमा चला. छः अप्रैल 1857 को फौजी अदालत में मंगल पांडेय को राजद्रोह एवं बगावत का दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी देने का आदेश दिया गया. 7 अप्रैल को फांसी देने के लिए दो जल्लादों को बुलाया गया, लेकिन उन्होंने सूली पर चढ़ाने से इनकार कर दिया. क्योंकि मंगल पांडेय की देशभक्ति के जल्लाद भी कायल थे. दोबारा कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए और 8 अप्रैल को प्रातः 5:30 बजे बैरकपुर छावनी के परेड ग्राउंड में उन्हें फांसी दे दी गई. मंगल पांडेय को फांसी देने के बाद पूरा भारत सिहर उठा. जगह-जगह अंग्रेजो के खिलाफ बगावत के स्वर मुखर होने लगे.
बैरकपुर छावनी से उठी क्रांति की चिंगारी 1942 में शोला बनकर धधक उठी. 10 मई को मेरठ व 11 मई को दिल्ली में भड़का विद्रोह,15 अगस्त 1947 को देश को आजाद कराकर ही शांत हुआ. आज भले ही मंगल पांडेय हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी राष्ट्रभक्ति, साहस व बलिदान हमेशा नई पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा.
बलिया से केके पाठक की रिपोर्ट

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