क्रांति दिवस पर अपने पैतृक गांव नगवां में याद किए गए मंगल पांडेय

दुबहड़(बलिया)।अत्याचारी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को जो बगावत का बिगुल फूंका था. उसकी याद आज भी उनके पैतृक गांव के लोगों के जेहन में कुरेद रही है. 29 मार्च को प्रत्येक वर्ष नगवा में स्वाभिमान गौरव दिवस एवं मंगल क्रांति दिवस के रूप में मनाने की परम्परा कायम हैं. गुरुवार के दिन शहीद मंगल पांडे के पैतृक गांव नगवा में मंगल क्रांति दिवस के मौके पर क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने मंगल पांडे के चित्र पर फूल माला चढ़ा कर ना उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. साथ मंगल पांडेय विचार मंच द्वारा आयोजित संगोष्ठी में उनकी वीरता का जमकर बखान भी किया. इस मौके पर लोगो को संबोधित करते हुए मंगल पांडे विचार मंच के अध्यक्ष कृष्णकांत पाठक ने कहा कि अन्याय के खिलाफ लड़ने की ताकत मंगल पांडे में कूट-कूट कर भरी थी. उनके बचपन की कहानी हो या उनके ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाही बनकर अंग्रेजों का विरोध करने की बात हो, मंगल पांडे कभी अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया. यह बात आज भी गांव के बड़े बुजुर्ग की जुबानी सुनाई देती है. उसी का परिणाम रहा कि अंग्रेजी अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ जब कोई आवाज उठाने के लिए तैयार न था तो इसी माटी के लाल मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अकेले ही बगावत का बिगुल फूंक कर भारतीयों को यह बताने का काम किया कि अत्याचार और दमन का दिन बहुत दिन तक नहीं रहता. मंगल पांडे की क्रांति का ही परिणाम रहा कि भारत देश में जगह-जगह अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लोगों के अंदर बगावत के अंकुर फूटने लगे. लोग अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने लगे. अंततः अंग्रेजों को यह देश छोड़कर जाना पड़ा. मंगल पांडे द्वारा डाला गया बगावत का यह बीज अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ. अंग्रेजों ने मंगल पांडे को बहुत प्रताड़ना दी , यहां तक कि उनके पैतृक गांव में आकर भी तहस-नहस करने का काम किया. लेकिन इस बागी बलिया के बगावती लोगों ने अपने लाल के इस बहादुरी को झुकने नहीं दिया. बल्कि अपने सूझ बूझ से अंग्रेजी हुकूमत का सामना किया. कहा कि आज भी इस गांव सहित पूरे क्षेत्र के लोगो मे देश भक्ति का जो जुनून भरा है. वह मंगल पांडेय की बलिदानी चरित्र से विरासत में मिला हुआ है. उनकी याद में प्रत्येक वर्ष सम्मान पूर्ण तरीके से कार्यक्रम आयोजित कर मंगल पांडे को श्रद्धांजलि अर्पित करने का काम करते है. इस मौके पर मुख्य रूप से अरुण कुमार, विश्वनाथ पांडे, गणेश जी सिंह, उमाशंकर पाठक, डॉ सुरेश चंद्र प्रसाद, शिव नाथ यादव, राहुल पाठक, हरेंद्र नाथ यादव, हरेराम पाठक, ब्यास दीपक पाठक, सोनू जयसवाल, राजू मिश्रा, अरुण सिंह आदि लोग उपस्थित थे अध्यक्षता कृष्ण कांत पाठक संचालन नीतेश पाठक ने किया.

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