हाल-ए-तहसील बैरिया: यहां कुछ भी ठीक नहीं चल रहा

तहसील के न्यायालयों में 3200 से अधिक मामले लम्बित

तैनाती के बाद सिर्फ सम्पूर्ण समाधान दिवस पर ही नजर आते हैं तहसीलदार

लगभग डेढ़ साल से रिक्त पड़ा है नायब तहसीलदार का पद

22 फरवरी 2018 के बाद एक दिन भी नहीं चला तहसील का न्यायालय

जाति, आय, निवास प्रमाणपत्र बनवाने के लिए युवा कर रहे गणेश परिक्रमा

बैरिया(बलिया)। “इस मुल्क ने जिस शख्स को जो काम है सौंपा, उस शख्स ने उस काम की माचिस लगा के रख दी.” जी हां हम बात कर रहे हैं बैरिया तहसील की. किसी रचनाकार के इस तंज को साकार रूप में देखना हो तो बैरिया तहसील पर आ जायं. वह सब कुछ यहां मिल जाएगा जो उपर की पंक्ति में कहा गया है.

बैरिया तहसील के एसडीएम न्यायालय में लगभग 2400, तहसीलदार न्यायालय में लगभग 850 तथा नायब तहसीलदार के दो न्यायालयों में लगभग 850 मुकदमें यानी कुल लगभग 3200 मामले लटके पड़े हैं. हद तो तब है कि विगत 22 फरवरी 2018 के बाद तहसील का कोई न्यायालय चला ही नहीं है.

वजह वकील, लेखपाल, कर्मचारियों का कार्य बहिस्कार और शोक दिवस के अलावा जो दिन बाकी भी बचा तो उस दिन हाकिम के बैठने का मन नहीं किया. जनता झेल रही है.
हालिया स्थिति यह है कि यहाँ पर तैनाती के बाद यहाँ के तहसीलदार सिर्फ और सिर्फ सम्पूर्ण समाधान दिवस पर ही उपस्थित रहे है. बाकी के दिनों में रजिस्टर पर कुछ हो लेकिन तहसीलदार तहसील पर उपस्थित नहीं हुए. इतना ही नहीं बीते शुक्रवार यानी आज से आठ दिन पहले यहां से छुट्टी लेकर एसडीएम गए और समाचार भेजे अभी तक वापस नहीं लौटे है. नायब तहसीलदार की तो यहां तैनाती पिछले डेढ साल से हुई ही नहीं है.

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अब जिस तहसील में लम्बे समय तक एसडीएम, तहसीलदार व नायब तहसीलदार साथ साथ अनुपस्थित रहें, वहां का काम काज कैसे चलता होगा ? अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां के न्यायिक कार्यों में विलम्ब की एक वजह अधिवक्ता भी है. आए दिन किसी न किसी कोर्ट का बहिस्कार होता ही रहता है. यहां के अधिवक्ता संगठन के दो धड़ों वाले पाट में बस बेचारी जनता(वादकारी) पिस कर रह गई है.

हद देखें कि वर्ष 2018 में दोनों अधिवक्ता संगठनों ने 23 कार्य दिवस पर शोक दिवस के चलते कार्य नहीं किया.

तहसील के वरिष्ठ अधिवक्ता बसंत पाण्डेय से जब जानकारी देकर जो रिकार्ड में है, पूछा गया तो उनका कहना था कि अब आप दु:ख पर भी अंकुश लगाएँगे ? फिर सधे अंदाज में जवाब दिए कि जो अविवादित मामले हैं, जिन्हें बिना अधिवक्ता के निपटाया जा सकता है, ऐसी परिस्थितियों में हाकिम को वह मामला तो निपटाकर न्यायालय और कार्यालयों का बोझ कम कर लेना चाहिए. लम्बित मामलों में सबसे ज्यादे ऐसे ही मामले हैं, जिनका निपटारा आवेदक व दूसरे पक्ष को सुन कर किया जा सकता है.

आपूर्ति कार्यालय कई महीने से सक्रिय नहीं है. कभी कभार खुल जाता है. राशनकार्ड को आधार से लिंक कराने के लिए कोटेदारों को बैरिया नहीं, बलिया जाना पड़ रहा है. जाति, आय, निवास जैसे छोटे प्रमाणपत्रों के लिए युवा परेशान हैं. नौकरी, ऐडमीशन के मामलों में तहसील से लगायत सम्बन्धित कर्मचारी के घर तक की गणेश परिक्रमा करनी पड़ रही है. हाकिम की हैकड़ी व उदासीनता, अधिवक्ता व कर्मचारी संगठन के चक्की में जनता पिसती जा रही है.
तहसील के लिए एक हवा बना दी गई है. कोई अधिकारी कर्मचारी यहां आना नहीं चाहता. यह हवा है. सच यह है कि जो यहां आया जाना नहीं चाहता. ट्रांसफर हो जाने पर जुगाड़ व पैसा दोनो लेकर यही लोग दौड़ने लगते है. जहां तक विधायक की बात है. विधायक रिश्वत न लेने, जनता का काम समय से करने का ही तो राग अलापते है. तो क्या यहां कोई इस लिए नही आना चाहता रिश्वत नही लेना पड़ेगा और समय से काम करना पड़ेगा. फिर उन्हे नौकरी क्यों मिली है. बहुत बदहाल स्थिति है बैरिया तहसील की.

जिलाधिकारी महोदय पूछ कर दे दें मनचाहे जगह पोस्टिं

सामाजिक कार्यकर्ता दुर्ग विजय सिंह झलन ने इस समस्या को लेकर जिलाधिकारी से मांग की है कि बैरिया तहसील में तैनात कर्मचारियों से पूछ कर उनके मनचाहे जगह पोस्टिंग कर दें. एप्लीकेशन मांगे, देखें कोई यहां से नहीं जाना चाहेगा. झलन का कहना है कि यहाँ की दुर्व्यवस्था के जिम्मेदार सीधे सीधे एसडीएम व तहसीलदार है. उन्हें अनुशासन में रखें. बताया कि तब हम बच्चे थे पर सुने थे कि यहाँ पर आए उपजिलाधिकारी एम देवराज का भी समय था. तहसीलदार, नायब तहसीलदार, कर्मचारी व अधिवक्ता सारे लोग अपनी जिम्मेदारी व मर्यादा का अक्षरशः पालन करते थे. न्यायालय के सारे मामले निपट गए थे. सब कुछ पटरी पर था. माना कि सब एक जैसे नही हो सकते, लेकिन जिस दायित्व की अपेक्षा के साथ पद पर बिठाया गया, उन दायित्वों का निर्वहन तो करें.

बैरिया तहसील क्षेत्र की जनता तहसील की कार्य प्रणाली से आजिज आ चुकी है. कब तक लोग धैर्य रख पा रहे हैं, यही देखना है. हालात यह बनते जा रहे हैं कि अकेले या समूह में कब लोगों का गुस्सा किस पर फूट पड़े कहा नहीं जा सकता.