संत रविदास के विचारों की उपादेयता आज और बढ़ गयी है- डा. गणेश

मझौवां(बलिया)। संत रविदास जयंती के अवसर पर “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संत रविदास के विचारों की उपादेयता” नामक विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसकी अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डा. गणेश कुमार पाठक एवं संचालन डा. शिवेश प्रसाद राय ने किया. सर्वप्रथम प्राचार्य, शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र- छात्राओं द्वारा संत रविदास के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पण किया गया. तत्पश्चात गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ.
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डा. संजयकुमार मिश्र ने कहा कहा कि संत रविदास ने अपनी रचना द्वारा समाज की कुरीतियों पर कुठाराघात करते हुए समाज सुधारने का कार्य किया. डा. भगवान जी चौबे ने कहा कि संत रविदास जी का विचार था कि मानव को अपने विचार से ऊंचा होना चाहिए.

डा. सुनील कुमार ओझा ने कहाकि संत रविदास ने ऊंच- नीच के भेद को मिटाने का काम किया. भूगोल प्रवक्ता शैलेन्द्रकुमार ने कहा कि संत रविदास जी की रचनाओं में जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय को एक सूत्र में बांधने का विचार है.
गोष्ठी को रवि रंजन सिंह,मुकेश गुप्ता, धर्मेन्द्र , रीचा सिंह , सुप्रिया तिवारी आदि छात्र- छात्राओं ने भी संबोधित किया.
गोष्ठी का संचालन करते हुए डा० शिवेश राय ने संत रविदास के विचारों को अनेक कथानकों एवं उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करते हुए कहा कि वे एक महान समाज सुधारक थे.

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अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य डा. गणेशकुमार पाठक ने कहा कि संत रविदास उन महान संतों में थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी रचनाओं में लोकवाणी का अभूतपूर्व प्रयोग हुआ है. जिससे जनमानस विशेष रूप से प्रभावित हुआ. आपसी भाई-चारा एवं मेल- जोल को बढा़ने, जाति-पात के भेद-भाव को मिटाने, धार्मिक एवं साम्प्रदायिक एकता को बढा़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके विचार समाज के व्यापक हित की कामना एवं मानव प्रेम से ओत- प्रोत था. आज भी संत रविदास का संदेश समाज के कल्याण एवं समग्र विकास लिए महत्वपूर्ण है. मानव अपने जन्म एवं जाति के आधार पर महान नहीं होता बल्कि अपने व्यवसाय एवं विचारों की श्रेष्ठता पर महान बनता है. इस प्रकार संत रविदास के विचारों की उपादेयता आज और बढ़ गयी है और उनके विचार आज अति सार्थक हो गए हैं.

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