सहनशीलता ही भक्ति का पहला सूत्र: पं.श्रीकांत 

सप्ताहव्यापी संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा का तीसरे दिन

बलिया। भगवान को पाने के लिए भक्ति मार्ग सबसे श्रेष्ठ मार्ग है. जो भक्ति करते है वे किसी की निंदा या वंदना कि परवाह नही करते है. भक्ति से उनके भीतर का अहंकार पिघल जाता है. इसके साथ ही वे सहनशील होते है. सहनशीलता भक्ति का पहला सूत्र है. जिसके मन में करुणा है दूसरे के दुःख को देखकर दुःखी हो जाता है , वही भक्ति कर सकता है. भक्ति में किसी प्रकार का स्वार्थ नही होना चाहिए. भक्त बिना स्वार्थ के सबके हित का कार्य करते है, भक्ति सरल हृदय वाले व्यक्ति को प्राप्त होती चालाक इसे नही पा सकता.

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भगवान ने खुद कहा है- निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र न भावा. भगवान सरल व्यक्ति के निकट जाते है और चालाक से दूर रहते है. ज्ञान मार्ग से भी भगवान मिलते है, लेकिन वह साधकों का मार्ग है. भक्त जिस सरलता से भगवान को पा जाता है, ज्ञानी उतनी सहजता से नही प्राप्त कर पाते है. पं. श्रीकांत जी ने सप्ताहव्यापी संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा में तीसरे दिन प्रवचन सुनाते ये उद्द्गार व्यक्त किये. उन्होंने कहा जिसके आदि और अनादि भगवान श्री नारायण है सात ऋषियों द्वारा सृष्टि का शुभारम्भ हुआ. इस लिए हम सभी ऋषि वंश के है. इन ऋषियों से हमारे गोत्र का निर्धारण हुआ है. सभी को अपने गोत्र के बारे में जानकारी होनी चाहिए. क्योंकि इसकी जानकारी के बिना पूजा पाठ नही हो सकता. देश की वर्तमान स्थिति और उग्रवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संत के चरणों में रहे बिना जो विधा सीखी जाती है वो साक्षर को भी राक्षस बना देती है. जैसा वर्तमान में हो रहा है. पढ़ लिख कर भी लोग उग्रवादी बन जाए रहे है. राष्ट्र और समाज के लिए वह बहुत दुःख की बात है. शास्त्र की विधि छोड़कर कर्म करने वालों की गति नही होती है. इससे सबक लेना चाहिए.

कथा के दौरान प्रह्लाद अवतार और बामन अवतार की भव्य झांकी का मंचन हुआ.