हर साल घाघरा की भेंट चढ़ रही दो सौ बीघा से अधिक उपजाऊ जमीन 

​घाघरा के कटान की कटार से बेबस बने धरती पुत्र

सिकंदरपुर (बलिया) । क्षेत्र के दीयारों में घाघरा नदी का कटान गंभीर रूप लेता जा रहा है. पानी में डूबी किनारे की उपजाऊ भूमि के बड़े-बड़े टुकडे स्वतः बैठकर नदी में समाते जा रहे हैं. इस दौरान हजारों एकड़ क्षेत्रफल में खड़ी विभिन्न फसलें बाढ़ के पानी में डूब कर नष्ट हो चुकी हैं. जिससे प्रभावित किसानों में हाहाकार मचा हुआ है. इस दौरान सीसोटार, मगही व लीलकर के दीयारों में किसानों के एक दर्जन से ज्यादा डेरे कटकर नदी में समाहित हो चुके हैं. करीब ढ़ाई दर्जन पेड़ कटान की भेंट चढ़ चुके हैं. ऐसा नहीं कि दीयारों में यह कटान पहली बार हो रहा है. कटान का यह सिलसिला पिछले डेढ़ दशक से जारी है. जिसके चलते अब तक करीब चार हजार बीघा क्षेत्रफल की जमीन का वजूद खत्म हो चुका है. इन दियारों में  गन्ना बेल्ट अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है. कटान ने वहां के किसानों की हैसियत बिगाड़ दिया है. दर्जनों किसान जहां भूमिहीन होकर अभिशप्त जीवन गुजारने को विवश हैं, वहीं अधिकांश किसानों के खेत का रकबा घट गया है. ऐसा नहीं कि शासन और प्रशासन में बैठे लोगों को इन दियारों के कटान के बारे में जानकारी नहीं है. बावजूद इसके कटान को रोकने हेतु कोई सार्थक प्रयास किया जाना तो दूर किसानों को मदद कर उनका आंसू भी नहीं पोछा गया. किसानों के अनुसार कटान के मुख्य कारण नदी का छिछला हो जाना, दक्षिण तरफ दबाव बनाकर पानी का बहना तथा कठौड़ा में निर्मित दो स्परों का नीचा हो जाना है. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष दो ढ़ाई सौ बीघा क्षेत्रफल की जमीन कटान की भेंट चढ़ जाती है. यह कटान दो दशक पूर्व तक नहीं के बराबर थी. कारण कि दीयारों में सुरक्षा के लिए क़ुतुबगंज घाट के पूर्व में स्परों का निर्माण था. उनके दब जाने के बाद से ही कटान का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह बदस्तूर जारी है. जहां तक कटान को रोकने की बात है, तो यह तभी रुक सकता है जब कर कठौड़ा की ठोकरों को पर्याप्त ऊंचा किया जाए, साथ ही आवश्यक स्थानों पर एक दो ठोकर और निर्मित कराया जा सके.

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.