सावधान! बैरिया तहसील जाना हो तो ‘मैदान’ होकर जाएं

बैरिया (बलिया)। जी हां, अगर आपको किसी काम से बैरिया तहसील में जाना हो तो शौच से निपट कर ही जाएं. अगर आप सचेत नहीं है और ऐसी स्थिति आपके लिए बन सकती है कि आप को बेशर्म बनना पड़ेगा या फिर शर्मिंदा होना पड़ सकता है. प्रदेश व केन्द्र सरकार की स्वच्छता को लेकर कई महात्वाकाक्षी योजनायें चलती रहती हैं, लेकिन उन योजनाओं का असर बैरिया तहसील पर देखने को नहीं मिलता.

तहसील पर आने वाली महिलाओं के समक्ष अगर ऐसी स्थिति आ जाय तो उन्हें विवशता मे लाज छोड़ते इस तहसील मे अक्सर देखा जाता है. यूं तो तहसील परिसर में आगन्तुक जरूरतमन्दों के लिए 11 मार्च 2008 को सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान अन्तर्गत ग्राम पंचायत बैरिया द्वारा सामुदायिक शौचालय का निर्माण कराया गया. तत्कालीन जिलाधिकारी मयूर माहेश्वरी द्वारा इसका लोकार्पण किया गया. दो चार दिन तक सुचारू रूप से चलने के बाद इसमे ताला लगा और मौजूदा समय मे तो सालों से कोई इसमें गया ही नहीं.

जर्जर अवस्था में शौचालय निष्प्रयोज्य बन कर रह गया है. इस तहसील मे कार्यदिवस कर लगभग दो हजार पुरुष महिलाओं का आना जाना है. ऐसी स्थिति में जो ढीठ या जागरूक है, वह तो बिल्डिंग में प्रथम या द्वितीय तल पर कर्मचारियों के लिए बने शौचालयों मे चले जाते हैं. वहां भी अक्सर ताला लगा रहता है. कर्मचारियों के उपयोग का ही है. अधिवक्ता भवन (दोनो) में भी शौचालय हैं, लेकिन एक कभी कभार खुलता है, दूसरे के रास्ते पर घास व झाड़ झंखाड उगा है. अनुपयोगी है.

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ऐसे मे अधिकांश लोग ऐसी परिस्थिति में अपनी समस्या को भरसक रोकने का प्रयास करते हैं और स्थिति बेकाबू होने पर तहसील के बाउन्ड्री के बाहर उत्तर दिशा से गुजरने वाले बैरिया से तहसील मोड़ तक जाने वाले रास्ते के किनारे खुले में निपटान कर लेते हैं. उस चलते रास्ते पर महिलाओं को बहुत शर्मिन्दगी का सामना करना पडता है. सरकार की तमाम स्वच्छता की योजनाएं उस रास्ते पर नाक रगड़ती दिखायी देती है.