इलेक्शन 2017 का सबसे रोमांचक मुकाबला तो है बनारस में

भाजपा के लिए 2014 के मतों को सहेजना होगी बड़ी चुनौती

वाराणसी। चुनावी शंखनाद के बाद हो रहे महायुद्ध के पांच चरण बीत चुके हैं. सोमवार को वाराणसी पहुंचे राजनाथ सिंह ने 2014 में प्रचंड बहुमत देने के लिए जहां काशीवासियों के प्रति आभार जताया, वहीं विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का भरोसा भी जताया, मगर उतनी आसान नहीं है डगर बनारस की. मार्च को 7 वे चक्र के चुनाव में वाराणसी में कड़ा व रोचक मुकाबले की उम्मीद है. आने वाले दिनों में बसपा सुप्रीमो मायावती, सतीशचन्द्र मिश्र की सभा व सपा कांग्रेस गठबंधन से राहुल गांधी व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का रोड शो प्रस्तावित है. कृष्णा गुट समेत छोटे दल भी गंभीर घाव कर सकते हैं.

एक ओर जहां पर मोदी के गढ़ में इस बार विपक्षी दल पूरी तैयारी से उतर गए हैं, वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी ने जिन पांच विधानसभा क्षेत्रों में प्रचंड वोट पाकर विरोधियों को सकते में डाला था, वहां वोटों को सहेज पाना भाजपा के लिए भी बड़ी चुनौती है. आंकड़ों पर गौर किया जाए तो लोकसभा चुनाव में वाराणसी संसदीय सीट से भाजपा के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया था. प्रधानमंत्री मोदी को वाराणसी में 5 लाख 81 हजार 22 वोट मिले थे.

उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अरविंद केजरीवाल को तीन लाख 71 हजार 784 वोटों के भारी अंतर से हराया था, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो बीजेपी के जो विधायक जीते भी वह रिकॉर्ड मतों के करीब तक नहीं पहुंच पाए थे. प्रधानमंत्री मोदी की तुलना में उन्हें आधे से भी कम वोट मिले. कैंट विधानसभा में पिछली बार भाजपा प्रत्याशी ज्योत्सना श्रीवास्तव ने 57 हजार 918 वोट पाकर कांग्रेस के अनिल श्रीवास्तव को हराया था, तब अनिल श्रीवास्तव को 45 हजार 66 वोट मिले थे.

इसी विधानसभा क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा एक लाख 37 हजार 557 वोट हासिल किया था. इस बार यहां ज्योत्सना के पुत्र सौरभ श्रीवास्तव मैदान में खड़े हैं तो कांग्रेस सपा गठबंधन में पेंच फंसा है. कांग्रेस ने अपने पूर्व प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव पर दांव खेला है, वही सपा प्रत्याशी के रूप में रीबू श्रीवास्तव ने भी पर्चा भर दिया. जिन्हें मनाने की कवायद भी चल रही है. इस सीट पर बसपा के रिजवान अहमद भी कड़ी चुनौती पेश कर होड़ में शामिल है.

दक्षिणी सीट इसी तरह शहर दक्षिणी से छठवीं बार जीत हासिल कर श्यामदेव राय चौधरी ने कमाल कर दिया था. चौधरी को यहां 57,867 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार दयाशंकर मिश्र दयालु के खाते में 44,066 वोट आए थे. इस विधानसभा क्षेत्र में मोदी को 98,058 वोट मिल थे. इस बार भाजपा ने दादा का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को टिकट थमा दिया. यहां की नब्ज टटोलकर कांग्रेस सपा गठबंधन ने कद्दावर उम्मीदवार पूर्व सांसद राजेश मिश्रा को खड़ा कर एक ओर जहां कड़ी चुनौती पेश कर दी है, वहीं बसपा अपने राकेश त्रिपाठी को खड़ा कर मुकाबले को काफी कड़ा बना दिया है. भाजपा के लिए यहां राह आसान नहीं है.

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प्रतिष्ठापक शहर उत्तरी सीट की बात करें तो यहां से भाजपा के रविंद्र जायसवाल ने 47 हजार 980 वोट पाकर बसपा के सुजीत मौर्य को काफी कड़े मुकाबले में हराया था. सुजीत को 45 हजार 644 वोट मिले थे. इस बार दोनों पुराने प्रतिद्वंद्वी पुनः मैदान में है तो कांग्रेस ने अपने सिम्बल पर समद अंसारी को उतारा है. इसी क्रम में शहर उत्तरी से राष्ट्रीय लोकदल के दिव्य कुमार गुप्ता भी ताल ठोंक रहे हैं. इसी विधानसभा क्षेत्र में 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी को 1लाख 19 हजार 852 वोट मिला था. 

रोहनियां पिछले विधानसभा चुनाव में रोहनिया की सीट अपना दल के खाते में गई थी. यहां अनुप्रिया पटेल 57,812 वोट पाकर चुनाव जीती थी. अब इस दल मे दो गुट बन गए हैं. अनुप्रिया के मुकाबले निकटतम बसपा के रमाकांत को मात्र 40, 229 वोट ही मिल पाए. लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने यहां 1 लाख 19 हजार 804 वोट पाकर चौका दिया था. भाजपा ने इस बार यहां सुरेंद्र नारायण सिंह को मैदान में उतारा है, वहीं बसपा ने महेंद्र पांडेय पर दांव खेला है. इसी सीट पर अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल खुद अपनी पार्टी के सिंबल पर खड़ी हैं, जबकि सपा कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी वर्तमान विधायक व मंत्री के भाई महेंद्र पटेल भाग्य आजमा रहे हैं. यहां चतुष्कोणीय मुकाबला बना हुआ है.

सेवापुरी पटेल दलित बहुल वाले सेवापुरी विधानसभा की सीट इस बार सपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है, पिछली बार लोक निर्माण व सिचाई राज्य मंत्री सुरेंद्र पटेल ने 56894 वोट पाकर अपना दल के नील रतन पटेल नीलू को पराजित किया था. नील रतन पटेल को यहां 36 हजार 942 वोट मिल पाए थे. लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने यहां भी चमत्कारिक प्रदर्शन कर 1 लाख 5 हजार 152 वोट हासिल कर सपा को उसके घर में ही झटका दिया था. इस बार कांग्रेस-सपा गठबंधन से मंत्री सुरेंद्र पटेल पुनः मैदान में कूद पड़े हैं. भाजपा-अद गठबंधन से नील रतन पटेल नीलू को मैदान में उतारा गया है. बसपा से महेंद्र पटेल भाग्य आजमा रहे हैं. यहां भी कांटे का मुकाबला तीन दलों के बीच में ही होगा.

देखने वाली बात यह होगी कि प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी वाराणसी के इन पांच सीटों पर भाजपा इस बार कितना वोट बटोर पाती है? अन्य दल भाजपा को कितनी टक्कर दे पाते हैं? कड़े मुकाबले के बीच प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिष्ठा भी अब इन सीटों से जुड़ चुकी है. इस बार भाजपा के लिए जहां करो या मरो की बात है, वहीं विरोधी दल पूरी व्यूह रचना कर उसे गढ़ में पटखनी देने की जुगत में लग गए हैं. आगे आगे देखिये होता है क्या??