सेमरा के कटान पीड़ित ‘नोटा’ से राजनेताओं का जवाब देने के मूड में

गाजीपुर से विकास राय 

एक बार वोट पाकर सदन तक पहुंचने वाले नेता 5 साल तक किस तरह से आमजन के दर्द को भूल जाता है और अगर इस बीच याद भी आता है तो विकास कुछ ऐसा करता है कि वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाता है. कुछ ऐसा ही दर्द जनपद गाजीपुर के सेमरा गांव का है. जहां पर 2013 से लोग गंगा के कटान से पीड़ित हैं इस पीड़ा में एक दो परिवार नहीं, बल्कि अब तक 500 से ऊपर परिवार पीड़ित होकर विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं. इन लोगों की सुध अब तक किसी ने नही ली.

सपा शासन में इनके राहत के लिए 23 करोड आया. काम भी हुआ. लेकिन वह भी भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया. लेकिन कटान अब तक नहीं रूका. इसलिए ग्रामीणों ने इस बार के चुनाव में अपने दर्द का जवाब नोटा से देने का मन बनाया है. जनपद गाजीपुर का मुहम्मदाबाद तहसील का गांव है सेमरा. यह गांव आज गंगा के कोप का भाजन बन रहा है. गंगा का गुस्सा इन लोगों को एक दो साल से नहीं, बल्कि पिछले 2013 से झेलना पड रहा है. इस गांव की अब तक हजारों बीघा कृषि योग्य भूमि और लगभग 500 से ऊपर आवासीय मकान गंगा का भेट चढ चुका है. लेकिन इनका दर्द कोई सुनने वाला नही हैं.

पिछले दिनो बलिया के तत्कालीन सांसद के प्रयास से कटान को रोकने के लिए आइ्रआईटी रूडकी के प्रस्ताव पर 23 करोड़ का बजट प्रदेश सरकार ने रिलीज किया. उस बजट से जब काम हुआ, तब लोगों को उम्मीद जगी कि अब उनका बचा हुआ बच जायेगा, लेकिन ऐसा नही हुआ. बल्कि 23 करोड की लागत से बनने वाला कटान रोधी भी भ्रष्टाचार की भेट चढ गंगा मे विलीन होने लगा और साल 2016 मे एक बार फिर से गंगा का कटान चला, जो कई दिनों तक चला और लोगों को अपना पूरा घर तोड़ कर पलायन करना पड़ा. यह दर्द ग्रामीणो को 5 साल से सता रहा है. यह विधानसभा अंसारी बंधुओ के कब्जे में रही है. जबकि लोकसभा बलिया भरत सिंह के पाले में है. बावजूद इनके दर्द को सुनने वाला कोई नहीं है. इसलिये इस बार नेताओं को इनकी औकात समझाने के लिये ग्रामीणों ने आज एक पंचायत का आयोजन किया. जिसमे सभी वर्ग के लोग शामिल थे.

गौरतलब है कि सेमरा गांव शेरपुर ग्राम सभा का एक हिस्सा है. वर्षों से यहां के निवासी कटान की दंश झेल रहे हैं. सैकड़ों परिवार आज भी आसमान के नीचे या अस्थाई शिविरों में गुजर—बसर करने को मजबूर हैं. सरकार द्वारा विस्थापन झेल रहे परिवारों के लिए तीन वर्ष के बाद भी कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं किया गया है. वहीं दूसरी तरफ चुनावी सरगर्मी बढ़ने के बाद सभी राजनीतिक दलों के लोग अपने पक्ष में वोट देने की गुहार लगा रहे हैं. इससे पूर्व भी सेमरा एक बार सड़क निर्माण की मांग को लेकर विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर चुका है. उस समय बहिष्कार की घोषणा के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. कल्पनाथ राय भी सेमरा पहुंचे थे, लेकिन उनके आश्वासन के बाद भी ग्रामीणों ने अपने बहिष्कार का निर्णय को नहीं बदला था. बैठक में निर्णय लिया गया कि शुक्रवार को शाम चार बजे फिर ग्रामीणों की बैठक होगी. जिसमें आगे की रणनीति को तय किया जायेगा.

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इस मौके पर नर्दवेश्वर राय, बुटन यादव, प्रेमनाथ गुप्ता, मनोज राय, अशोक राय, पप्पू तिवारी, बबलू तिवारी, मुन्ना तिवारी, कन्हैया राम, जेठू राम, कुशहर राम, भुवनेश्वर राय, आलोक राय डब्बू, शैलेश राय, बंगाली राय, अजय राय, अमरेंद्र राय, मुन्ना राय, मिश्री पासवान, सुभाष तिवारी, चंद्रहास राय, सिंटू राय, अखिलेश राय, मुन्ना राम समेत ढेर सारे लोग उपस्थित रहे.

क्या है नोटा 

किसी भी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार अगर आपको पसंद न हो तो आप क्या करते हैं? फिर भी वोट करते हैं या उसके ख़िलाफ नोटा का इस्तेमाल करते हैं. आपकी ईवीएम में NONE OF THE ABOVE, NOTA का गुलाबी बटन होता है. क्या आपने ग़लत उम्मीदवार देने के कारण किसी पार्टी के प्रति अपना विरोध जताया है. तीन साल से चुनावों में वोटिंग मशीन में नोटा का इस्तमाल हो रहा है. आम तौर पर चुनावों के दौरान मत देने के लिए तो प्रोत्साहित किया जाता है, मगर नोटा का बटन दबाने के लिए कोई नहीं करता. लेकिन इसके बाद भी नोटा लोकप्रिय होता जा रहा है. हाल के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में 8,31,835 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया है. कुल मतदान का डेढ़ प्रतिशत मतदान नोटा के ज़रिए हुआ है.