जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं

रसड़ा (बलिया) से संतोष सिंह

SANTOSH SINGHशासन प्रशासन की मदद के आस पर टकटकी लगाए बैठी हैं कोतवाली क्षेत्र के चन्द्रवार दुगौली गांव के साईं परिवार की दो मासूम बच्चियां. ये बच्चियां दो जून की रोटी के लिए दर दर भटक रही हैं. दूसरों के रहमो करमो पर जीवन बिताना इनकी लाचारी है. इन मासूम बच्चियों के सर पर से लगभग चार साल पहले मां-बाप साया उठ गया था. जिस समय दोनों बच्चियो के सर से मां-बाप साया उठा था, उस समय गुड़िया चार साल एवं रूबी मात्र दो साल की थी.

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बच्चियो की मां नायदा खातून टीबी की मरीज थी. दवा के अभाव में 6 सितम्बर 2011 में दम तोड़ दी थी. रही सही कसर लकवा पीड़ित पिता ने पूरी कर दी. इनके पिता दिल मुहम्मद भी दवा के अभाव में 30 जनवरी 2012 को इन्हें अकेला छोड़ चल दिए.

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इन बच्चियो को किसी तरह खालू नौशाद शाह भरण पोषण करते हैं. तीन बच्चों के पिता नौशाद मजदूरी कर किसी तरह अपने बच्चों के साथ इन बच्चियों का भी भरण पोषण करते हैं. इन बच्चियों को मदद तो दूर, भरण पोषण करने वाले नौशाद के पास न तो राशन कार्ड है और न ही कोई पेंशन मिलती है. ये है सपा शासन के विकास का सच. ये दो बच्चियां किसी भी तरह की सरकारी सुविधाओं से मरहूम है. क्या यही विकास है? समाज सेवा के पर्याय बन चुके विधायक उमाशंकर सिंह की इनायत भी इन बच्चियो पर नहीं पड़ रही है. चुनावी सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं, शायद किसी समाजसेवी की नजर पड़ जाए तो इन बच्चियों के भी दिन फिर जाए. देखना है की समाज के रहनुमाओं की नजरें कब तक इन पर इनायत करती हैं.

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