बांसडीह (बलिया)। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भृगु की तपोभूमि पर स्नान का काफी महत्व होता हैं. गंगा और तमसा के इस पावन संगम पर सोमवार को लाखों की संख्या में श्रद्धालुओ ने गंगा में डुबकी लगाई. बांसडीह क्षेत्र से भारी संख्या में श्रध्दालु भी इस पावन स्थल पर स्नान करने के लिए देर शाम से बसों व अन्य साधन से बलिया के लिए रवाना हुए. इसके बाद भृगु मंदिर में भी दर्शन करने के लिए भी लोग जाते हैं. इसका जीता जागता उदाहरण बलिया जनपद के गंगा घाट पर देखने को मिला. बता दें की सोमवार की सुबह व रविवार की देर रात से श्रद्धालु पवित्र गंगा स्नान के लिए पहुंच रहे हैं.
काशी वासस्तु यत्फल्म, तत्फल्म, भृगु क्षेत्रे कलौ दर्दर संगमे, अर्थात सतयुग में पुष्कर क्षेत्र, त्रेता में नेमिषारण्य क्षेत्र, द्धापर में कुरुक्षेत्र तथा कलयुग में दर्दर क्षेत्र का विशेष महत्व हैं. इसकी पुष्टि पद्मपुराण व् भविष्योत्तर पुराण भी करते हैं. काशी यदि ब्रह्मा – विष्णु व् महेश को तारती हैं तो दर्दर क्षेत्र में मात्र स्नान – ध्यान करने से जीव भूतात्मक रूप से तर जाता हैं. महर्षि भृगु की धरती गंगा – घाघरा , सरयू, तमसा नदी से घिरी है. जनपद अरण्यकाल से लेकर अब तक के मानव समाज के विकास के हर दौर का रहा हैं. यह भृगु, दर्दर, पराशर, बाल्मीक, परशुराम समेत अन्य ऋषियों व मनीषियों का तप व शोध क्षेत्र रहा हैं.
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इससे दर्दर क्षेत्र का महत्व बढ़ गया और दर्दर क्षेत्र का माहात्म्य देवमास में एक अनजाना दुर्लभ संयोग हैं. नारद मुनि ने इसे तो चतुर्बह, त्रिमेखल क्षेत्र के नाम से पुकारा. इसलिए विमुक्त क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. इतना ही नहीं, बल्कि गंगा स्नान करने आयी महिलाओं की माने तो अपने बेटे और पति की कामना के लिए भी गंगा स्नान करने आती हैं. बांसडीह चौराहे पर समाज सेवी संजय सिंह के नेतृत्व में आने वाले श्रध्दालु को चाय पिलाकर ही चौराहे से बलिया भेजा जा रहा था.