सलेमपुर सीट: हर दल के लिए विकट परिस्थितियां, टिकट पर गड़ी जनता की नजरें

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सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र से संतोष शर्मा की रिपोर्ट

सिकंदरपुर(बलिया)। 2019 के लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है. सभी दल अपने आप को मजबूत स्थिति मे लाने के लिए और चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. देश के एक एक लोकसभा सीटों पर किसको उम्मीदवार घोषित किया जाए, इसको लेकर पर्याप्त माथापच्ची देश की राजधानी दिल्ली और पार्टियों के मुख्यालय में हो रही है. जहां एक तरफ भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पुनः सरकार बनाने की हुंकार भर रही है, वहीं कांग्रेस भी इस बार राहुल गांधी के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद में है.

देवरिया और बलिया के कुछ हिस्सों को मिलाकर बना सलेमपुर लोकसभा सीट पर भी भाजपा के लिए चुनौतियां कम नहीं है, सबसे पहली चुनौती भाजपा की तो यह है कि यहा गठबंधन के खिलाफ़ मैदान में किस को प्रत्याशी के रूप में उतारा जाए. आपको ज्ञात हो कि सलेमपुर लोकसभा के वर्तमान में भाजपा के रविंद्र कुशवाहा सांसद है. लेकिन इनके प्रत्याशी होने को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही है. हालांकि इस सीट के लिए अभी प्रत्याशी की घोषणा नही हुई है, सो इनके(रवीन्द्र कुशवाहा) के समर्थक इनका टिकट पक्का मान रहे हैं. उधर जन चर्चा में कुछ लोग मान कर चल रहे है कि इस बार इनका टिकट कट सकता है. जिसके पीछे पहले से टिकट की घोषणा न होना माना जा रहा है.

सलेमपुर लोकसभा सीट कुशवाहा बेल्ट माना जाता है, और शायद यही कारण रहा कि सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के लिए गठबंधन ने इस बार प्रत्याशी के रूप में आरएस कुशवाहा को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने अभी तक इस सीट पर अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं किया है. सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान का कहना है कि भाजपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही हम अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान करेंगे.

एक नजर सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास पर-
इसका गठन देवरिया और बलिया जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया गया है. इस लोकसभा में बलिया जिला के तीन विधानसभा क्षेत्र बांसडीह, बेल्थरा रोड,सिकंदरपुर और देवरिया जिला का सलेमपुर तथा भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र आता है. सलेमपुर का इतिहास बहुत पुराना है. आजादी से पहले सलेमपुर भारत का सबसे बड़ा तहसील हुआ करता था. आजादी के बाद इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी विश्वनाथ रॉय ने 1952 में जीत दर्ज किया. विश्वनाथ रॉय लगातार दो बार सांसद चुने गए. उन्होंने 1957 में हुए आम चुनाव में भी जीत दर्ज किया. इनके बाद कांग्रेस के ही विश्वनाथ पांडे नें लगातार दो बार 1967 और 1971 में इस क्षेत्र से जीते और लोकसभा पहुंचे. 1971 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के ही तारकेश्वर पांडे ने इस क्षेत्र से जीत दर्ज किया. आजादी के बाद लगातार 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1977 में हुए आम चुनाव में पहली बार भारतीय लोक दल के राम नरेश कुशवाहा ने इस सीट पर कांग्रेश को मात दिया. और इस क्षेत्र से सांसद चुनकर संसद में गए. लेकिन पुनः 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राम नगीना मिश्रा ने यह जीत दर्ज किया. और वह लगातार दो बार क्षेत्र से सांसद चुने गए। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार हरि केवल प्रसाद ने यहां जीत दर्ज की. 1996 में पहली बार समाजवादी पार्टी के हरिवंश सहाय ने लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की. इनके बाद क्रमशः
1998= हरि केवल प्रसाद (समता पार्टी)
1999=बब्बन राजभर (बहुजन समाज पार्टी)
2004=हरि केवल प्रसाद (समाजवादी पार्टी)
2009=रमाशंकर राजभर (बहुजन समाज पार्टी)
2014=रविंद्र कुशवाहा (भारतीय जनता पार्टी)
इस लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनकर संसद पहुंचे.

2019 ने कौन बनेगा सलेमपुर का सुल्तान

इस बार इस सीट पर बेहद कड़ा मुकाबला होने जा रहा है. जहां एक तरफ सपा बसपा गठबंधन ने आर एस कुशवाहा को अपना प्रत्याशी घोषित किया है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा की ओर से अब तक किसी भी नाम का अधिकारिक घोषणा नहीं हुआ है। आपको बता दें कि 2014 में हुए आम चुनावों मे भाजपा को 45.83% बहुजन समाज पार्टी को 18.68% और समाजवादी पार्टी को 18.66% वोट मिले थे. अगर इस समीकरण पर ध्यान दिया जाए 2019 का आम चुनाव सपा बसपा गठबंधन के लिए सलेमपुर की सीट पर मुश्किलें आ सकती हैं. पिछले आम चुनाव में सपा और बसपा के कुल मतो को मिलाने पर भी भाजपा प्रत्याशी को मिले मतों से कम होता है. आपको बता दें कि 2014 में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल किया था और उस जीत का एक बड़ा कारण मोदी लहर माना जाता है, तो अब देखना यह होगा क्या भाजपा अपने पुराने प्रदर्शन को फिर दोहरा पाएगी या सपा बसपा गठबंधन इस सीट पर अपने उम्मीदवार को जीत दिलाने में सफल हो जाएंगे.