…और मंगल पांडेय ने जला दी विद्रोह की ज्वाला

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जयंती पर विशेष –
बलिया के गांवों में बिखरी अमर शहीद मंगल पांडेय की कहानी
जंग-ए-आजादी के महानायक को 189वीं जयंती पर शत-शत नमन

दुबहड़(बलिया)।जंग-ए-आजादी का इतिहास रोशन करने वाले तथा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा ब्रितानिया हुकूमत को हिलाने वाले बलिया जनपद के नगवां की माटी से पैदा हुए वीर सपूत मंगल पांडेय की 189वीं जयंती पर सम्पूर्ण भारत उस महानायक को नमन कर रहा है. शहीद के पैतृग गांव नगवा में जश्न का माहौल है. उनकी स्मृतियों को संजोए अमर शहीद की अष्टधातु की बनी आठ फीट ऊंची प्रतिमा को देख राष्ट्रीय मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति का ध्यान नगवां के विशाल भू-खण्ड पर स्थापित स्मारक की ओर अनायाश ही खींच जाता है. स्मारक पर शहीद के नाम से पुस्तकालय तथा वाचनालय स्थापित है. इसे समृद्ध बनाने की जरूरत है.

30 जनवरी 1831 को तत्कालीन गाजीपुर जिले के बलिया तहसील अंतर्गत नगवां गांव की मिट्टी में मंगल पांडेय का जन्म एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडेय तथा माता का नाम जानकी देवी था. मंगल पांडे 22 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंम्पनी की सेना में भर्ती हुए. उस समय सेना में धर्म के अनुसार वेशभूषा में रहने की छूट थी, हिंदू सिपाहियों के लिए माथे पर तिलक लगाना और मुसलमान सिपाहियों को दाढ़ी रखना आम बात थी. उस समय सेना में अंग्रेजों की ओर से सैनिकों को ईसाई बनाने का कुचक्र चल रहा था. पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में एक फैक्ट्री थी जहां कारतूस बनाए जाते थे. उस फैक्ट्री के अधिकांश कर्मचारी दलित समुदाय के थे. एक दिन प्यास लगने पर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने सैनिक मंगल पांडेय से एक लोटा पानी मांगा. मंगल पांडे ने उस कर्मचारी को यह कहकर पानी देने से मना कर दिया कि वह अछूत हैं.
यह बात उस कर्मचारी को चुभ गई उसने कटाक्ष करते हुए मंगल पांडेय से कहा कि उस समय में तुम्हारा धर्म कहां रह जाता है जब बंदूक में कारतूस डालने से पहले उसे दांत से तोड़ते हो. उस कारतूस पर गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है। वह दलित कर्मचारी मातादीन था. जिसने भारतीय सैनिकों की आंखें खोल दी. इसके बाद मंगल पांडेय ने अंग्रेजों से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में लग गए. इसके बाद 29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और परेड ग्राउंड में ही बगावत करके अंग्रेज अफसर को मौत के घाट उतार दिया. मंगल पांडेय सभी सिपाहियों को चर्बी की बात बता चुके थे. सिपाहियों से अंग्रेजों से बदला लेने की बात कही थी. तभी वहाँ कर्नल ह्वीलर पहुँचा उसने सिपाहियों से मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. लेकिन एक भी सैनिक मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने के लिए आगे नहीं आया. यह घटना पूरे देश में तेजी से फैलने लगा लगी. सिपाहियों में अंग्रेज अफसरों के विरुद्ध बगावत की आग सुलग रही थी. मंगल पांडेय को गिरफ्तार कर लिया गया. फौजी अदालत में उन पर मुकदमा चला, मंगल पांडेय ने जज के सामने कहा कि मैंने जो भी किया सोच समझकर राष्ट्रधर्म के लिए किया है. इसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी.
बैरकपुर के परेड मैदान में फांसी का मंच बनाया गया. 7 अप्रैल को सुबह फांसी दी जानी थी. परंतु बैरकपुर के जल्लाद मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिए. अंत में कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए. अंग्रेज अफसर जनरल हीयरसी ने 7 अप्रैल को निर्देश जारी किया कि 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5ः30 बजे बीग्रेड परेड के मैदान में 14वी देशी पैदल सेना की 19वी रेजीमेंट नेटिव इन्फेंट्री की पांचवी कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही मंगल पांडेय को फांसी दी जाएगी. 8 अप्रैल को प्रातः 5ः30 बजे भारत माता के इस वीर सपूत मंगल पांडेय को फांसी पर चढ़ा दिया गया. मंगल पांडेय के इस बलिदान ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया. इनके बलिदान के बाद जगह-जगह अंग्रेजो के खिलाफ बगावत तेवर दिखाई देने लगा. जिसका परिणाम 15 अगस्त 1947 को सामने आया. जब हमेशा के लिए अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए.