आज और प्रासंगिक हो गए हैं गाँधी जी के आध्यात्मिक एवं नैतिक विचार

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डॉ. गणेश पाठक

(प्राचार्य, अमर नाथ मिश्र पीजी कॉलेज, दुबेछपरा, बलिया)

महान मानवतावादी, सच्चे समाज सेवी, सत्य एवं अहिंसा के पुजारी, युग पुरूष राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने हमारे समक्ष आदर्श रूप में हिन्दू धर्म पर आधारित स्वानुभव से भरपूर एक ऐसा जीवन दर्शन प्रस्तुत किया है, जो न केवल भारत के लिए, अपितु समूचे विश्व के लिए एक प्रेरणास्रोत है. गाँधीजी के आध्यात्मिक एवं नैतिक विचार के अन्तर्गत सत्य, आत्मा, ईश्वर, संसार, नैतिकता, प्रेम, ज्ञान, अहिंसा, सत्याग्रह, कर्मयोग, अन्तर्वाणी, पुनर्जन्म एवं जीवन के उद्देश्य संबंधी विचारों को सम्मिलित किया जा सकता है.

गाँधीजी के जीवन दर्शन का सार सत्य ही है. उन्होंने लिखा है कि सत्य एक विशाल वृक्ष है. उसे ज्यों ज्यों सेया जाय त्यों त्यों उसमे उनका फल आते दिखाई देते हैं. ज्यों ज्यों उसकी गहराई में पहुंचिए त्यों त्यों रत्न मिल करते हैं. गाँधीजी का सत्य ब्रह्म है, ईश्वर है, शिव है , सुन्दर है. जहाँ सत्य नहीं , वहाँ शुध्द ज्ञान की सम्भावना नहीं. सत्य के बिना किसी वस्तु की हस्ती ही नहीं.

गाँधीजी के अनुसार ईश्वर एक है सनातन है, निरालम्ब है, अज है, अद्वितीय है एवं सृष्टिकर्ता है. ईश्वर ही सब कुछ है. गाँधीजी ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और उसी प्रकार सम्पूर्ण मानव जाति में एकता चाहते थे. गाँधीजी आत्मा को प्रत्येक जीव का आधार मानते थे. उनके आनुसार आत्मा ब्रह्म में एकीकृत हो जाता है. उन्होंने समाज में सभी आत्माओं को एक समान मानकर राष्ट्रीय एकता एव़ विश्वबंधुत्व पर जोर दिया. गाँधीजी संसार में सुख , आनन्द एवं शांति की प्राप्ति हेतु कर्तव्यपालन पर विशेष बल देते थे.

गाँधीजी विश्व के जीवन का मूल आधार नैतिकता को मानते थे. नैतिकता से ही व्यक्ति एवं समाज दोनों की प्रगति होती है और नैतिकता प्राप्ति हेतु प्रेम , ज्ञान एवं अहिंसा आवश्यक है. उनका मत था कि नैतिकता से ही संघर्ष , विनाश एवं आपसी झगड़ों को मिटाकर सुख , आनन्द एवं शांति की प्राप्ति की जा सकती है. वे प्रेम को ईश्वर, ब्रह्म एवं मनुष्य के मेल का उत्तम माध्यम मानते थे. उनका मत था कि प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है.

गाँधीजी ज्ञान को नैतिकता का दूसरा आधार मानते थे. उनके अनुसार ज्ञान से मानव में सद्भावना आती है, जिससे अपना तो सुधार होता ही है , दूसरों का भी सुधार होता है. गाँधीजी के अनुसार यदि सत्य लक्ष्य है तो अहिंसा उसका साधन. अहिंसा सर्वशक्तिमान , अनन्त एवं ईश्वर का पर्याय है. उनके अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अहिंसा एवं प्रेम से नियंत्रित होता है. अहिंसा एक ऐसा अस्त्र है जो मानव की रक्षा करता है.

गाँधीजी के अनुसार सत्याग्रही वह हो सकता है सिसमें सत्य , अहिंसा , अस्तेय , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह, जिह्वा निग्रह, शरीर श्रम , निर्भय , साहस, सर्व धर्म समानता एवं अश्पृश्यता निवारण जैसे गुण हों. गांधी जी कर्मयोग को विशेष महत्त्व प्रदान करते थे‌. उनका कर्दम मार्ग कर्दम , व्यक्ति एवं ज्ञान पर आधारित था‌. वे अन्त:करण के आवाज को ही अन्तर्वाणी मानते थे. उनका पुनर्जन्म में अटूट विश्वास था. उनके अनुसार कर्म के आधार पर ही पुनर्जन्म होता है.

गांधी जी‌ जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान को मानते थे और आत्मज्ञान को ही मुक्ति मानते थे. किन्तु मुक्ति प्राप्ति हेतु वो संन्यास के बजाय नैतिक गुणों पर विशेष बल देते थे. वे जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास मानते थे.