आखिर नकल को क्‍यों मिल रही अभिभावकों की आम सहमति

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मास्‍टर साहब मेरा बच्‍चा-बच्‍ची रूम संख्‍या आठ में है, छह में है, पढ़ा भी है, किंतु अच्‍छे मेरिट का काम है, उसकी कुछ भी मदद कर दीजिएगा.

सर, जी आप जो कहें, मैं देने को तैयार हूं, बस मेरे बच्‍चे का परीक्षा में ध्‍यान रखिए, यदि वह अच्‍छे प्रतिशत से पास हो जाएगा तो आपका फलां गिफ्ट पक्‍का.  

लवकुश सिंह

यूपी हाईस्‍कूल, इंटर की बोर्ड परीक्षा में आम अभिभावकों की मंशा अब कुछ इसी तरह की हो चली है. परीक्षा केंद्रों की तस्‍वीरें बताती हैं कि लगभग जगहों पर एक तरह से नकल को अभिभावक आम सहमति दे चुके हैं. अभी के समय में लोग यह मानते हैं कि बिना नकल पढ़ाकू छात्र भी इस माहौल में अच्‍छे अंक नहीं प्राप्‍त कर सकते. यह सत्‍य भी है. इस युग में यदि लाडला अच्‍छे अंक से उतीर्ण नहीं हुआ तो वह किसी काम नहीं है. इसलिए सभी अभिभावक अच्‍छे अंक के लिए पूरी परीक्षा नकल के लिए न सिर्फ भागदौड़ करते हैं, बल्कि नकल माफियाओं को अच्‍छी कीमत भी देते हैं. यह बात अच्‍छी नहीं लगेगी, किंतु समाज के बुद्धिजीवी भी यह मानते हैं कि यूपी का शैक्षिक माहौल शिक्षा संबंधी गुणसूत्र (डीएनए) बिगाड़ने में सत्‍ता में बैठे लोगों ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा गया है. सत्‍ता में बैठे लोग अगर नामी प्राईवेट संस्‍थानों से निकले उत्‍पादों की चमकती सफेदी को यूपी की औसत मेधा सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं, तो दरअसल वह छात्रवृति, और पोशाक, योजनाओं के बावजूद धवस्‍त सरकारी शिक्षा पर पर्दा डालने का छल ही कर रहे हैं. यह आपसी मंथन का भी विषय है-यदि सरकारी शिक्षा सफल है तो बच्‍चों को सामूहिक नकल करना इतना जरूरी क्‍यों लग रहा है ?

विगत कुछ वर्षों से बोर्ड परीक्षा का जो हाल है, वह देख कोई भी व्‍यक्ति वर्तमान पीढ़ी के भविष्‍य की कल्‍पना सहज रूप से कर सकता है. पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में जंगले पर खड़े, या विभिन्‍न विद्यालयों के अंदर सामूहिक नकल की जो तस्‍वीरें मिलती हैं, वह संपूर्ण शैक्षिक माहौल को शर्मसार करती हैं, किंतु शैक्षिक तंत्र को इसकी कोई परवाह नहीं. हम द्वाबा से लेकर बलिया के तमाम जगहों पर संचालित हो रहे हाई स्‍कूल और इंटर की बोर्ड परीक्षा पर गौर करें तो, सर्वत्र विद्यालयों के अंदर सभी को एक ही ज्ञान बांटे जा रहे हैं. वह यह कि जब अंदर सब कुछ ठीक चल ही रहा है तो, बाहर से हंगामा करने की क्‍या अवश्‍यकता है ? मसलन परीक्षा भवन के अंदर तो सामूहिक नकल की छूट है ही, तो बाहर से शोर-शराबा करना ठीक नहीं है. इसके बावजूद भी परीक्षार्थियों के परिजनों को विश्‍वास कहां है ? वह बाहर से भी नकल की सामग्री भरपूर मात्रा में भेजते हैं, ताकि उनके लाडले अधिक से अधिक प्रतिशत से उतीर्ण हो सकें.

नकल की बाढ में संस्‍कार भी हैं गायब
बोर्ड परीक्षा में नकल की जो बाढ़ आई हैं, उसमें परीक्षार्थियों के अंदर से संस्‍कार भी पूरी तरह गायब हैं. इसकी स्‍पष्‍ट तस्‍वीर किसी भी परीक्षा केंद्र पर परीक्षार्थियों के परीक्षा देकर निकलते समय देखने और सुनने को मिल जाएगी. परीक्षार्थी जब परीक्षा देकर परीक्षा भवन से बाहर निकलते हैं और यदि किसी कक्ष निरीक्षक ने नकल कराने में उनकी भरपूर मदद की है, तो वह कहते हैं-फलां मास्‍टरवा अच्‍छा रहल हा, सब बोल के ही लिखवा देहलस हा. इस बीच यदि किसी कक्ष निरीक्षक ने कड़ाई का पालन किया तो वहीं परीक्षार्थी कहते हैं-फलां मास्‍टरवा बहुत बदमाश रहे, सब छीन लेलस हा. यह है परीक्षार्थियों की संस्‍कारिक बोली. परीक्षा के क्रम में वही परीक्षार्थी शिक्षकों के सामने पड़ने पर भले ही गुरुजी कहकर नमस्‍कार करते हों या पैर छू कर अपने अच्‍छे संस्‍कारों का परिचय देते हों, किंतु पीठ पीछे उनकी भाषा क्‍या हैं ? यह आम लोग भी रोज सुन रहे हैं.

वर्ष भर पठन-पाठन की कोई खोज-खबर नहीं होती
समाज के बुद्धिजीवियों में दलजीत टोला निवासी पूर्व प्रधानाचार्य सत्‍यनारायण सिंह, शिक्षक योगेंद्र सिंह, घुरी टोला निवासी शिक्षक हरेंद्र सिंह आदि की की माने तो नकल आज सबकी मजबूरी है. यह दिन सरकारी तंत्र की उदासीनता से ही, सभी के सामने है. वजह कि अधिकांश इंटर कॉलेजों में विषय टीचरों का टोंटा है. कहीं चार तो तीन शिक्षकों पर इंटर कालेज की पढ़ाई है. ऐसे में सभी विषयों की पढ़ाई कभी भी पूरी नहीं होती. कुछ संपन्न अभिभावक प्राइवेट ट्यूशन की बदौलत अपने बच्‍चों की पढ़ाई पूरी कराते हैं, तो अधिकांश इस नकल के भरोसे ही अपने सुंदर भविष्‍य का सपना बुनते हैं. ऐसे में जब तक इंटर कॉलेजों के हालात नहीं सुधरेंगे, तब तक नकल के लिए यह भागदौड़ यूं ही मची रहेगी.