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देश के दूसरे राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि शिक्षक का कर्तव्य विद्यार्थियों के दिमाग में तथ्यों को जबरन डालना नहीं बल्कि उन्हें भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करना है. शिक्षक देश का भविष्य गढ़ते हैं. कहते भी हैं कि गुरु का दर्जा माता-पिता से भी बढ़कर होता है. किस्सा तब का है जब मैं स्कूल में पढ़ती थी. जिस स्कूल में मैं पढ़ती थी वहां एक टीचर थी जिनको सभी दुलारी मैडम कहते थे. वह साइंस और मैथ पढाती थीं.
उन दिनों नौवीं क्लास के विद्यार्थियों को स्कूल में यह बताना पड़ता था कि वे साइंस पढ़ना चाहते हैं या आर्ट्स. उससे पहले तो साइंस और आर्ट्स के विषय एक साथ पढ़ाये जाते थे. तब मैं बस यही जानती थी कि साइंस पढ़ने से डॉक्टर या इंजीनियर बनते हैं. ये सामाजिक पद लुभाते भी थे. मेरा और मेरी सहेलियों का यह हाल था कि किसी का मैथ्स कमजोर था तो किसी का साइंस तो किसी का बायोलॉजी. हम सहेलियों ने तय किया कि दुलारी मैडम से ट्यूशन पढ़ा जाये. इससे सभी विषय में हमलोग मजबूत हो जायेंगे.
एक दिन साहस कर हम सहेलियों ने उनसे कहा – मैडम, आप हमलोगों को ट्यूशन पढ़ा दीजिए. आपको तो सभी विषयों में हमारी स्थिति का पता है ही. हमलोग आपके घर पर जाकर पढ़ने के लिए तैयार है या आप ही हमलोगों में से किसी एक के घर आ जाइये. हमलोगों के गार्जियन भी तैयार हैं. दुलारी मैडम का कहना था कि क्लास में ही हमलोग उनसे पूछ लिया करें जो कठिन लगता हो. और वह मुस्कुराकर आगे बढ़ गयीं. अपनी सहेलियों के साथ मैंने भी ठान लिया था कि मैडम को किसी भी सूरत में मनाना है. आलम यह था कि जब भी किसी क्लास में दुलारी मैडम जाती हमारी टोली उसी क्लास के आसपास मंडराती. एक तरह से साफिस्टिकेटेड तरीके से हमलोग उनपर मानसिक दबाव बना रहे थे. उसमें हमलोगों को मजा भी आ रहा था.
मजे की बात यह है कि मेरी एक सहेली के पिताजी ने उससे उसकी पसन्द पूछी. उसने तपाक से कह दिया – ‘आर्ट्स साइंस’. उसके पिता ने कहा कि उनके जमाने में या तो साइंस होता था या आर्ट्स. अब ये ‘आर्ट्स साइंस’ क्या बला है ! दरअसल स्कूल में पूछा गया था कि विद्यार्थियों को आर्ट्स साइड या साइंस चुनना है. वही आर्ट्स साइड आर्ट्स-साइंस हो गया था.
उधर, हम दोस्तों का दुलारी मैडम को मनाने का अभियान जारी था. एक दिन स्कूल में छुट्टी के बाद मैडम ने हम सबको स्टाफ रूम में बुलाया. मैडम ने कहा-इस तरह बार-बार पीछा करने से कोई फायदा नहीं होने वाला. मैंने कह दिया कि मैं ट्युशन नहीं पढ़ाऊंगी तो नहीं पढ़ाऊंगी. तुम लोग क्यों अपना टाइम बर्बाद कर रही हो? आखिर दिक्कत क्या है? जब फीस दिये बिना ही तुम्हारा काम हो जाय तो क्या परेशानी है. आखिर फीस-फीस की रट क्यों लगा रखी है?
तभी मैंने हिम्मत जुटाते हुए कहा – सबके सामने कहने में झिझक होती है, शर्म आती है. वैसे सभी बच्चे ट्यूशन पढ़ते हैं. बस बताते नहीं हैं. मैडम ने कहा कि पढ़ाई को लेकर पूछने में कैसी शर्म. फिर भी लंच टाइम में तुम लोग पूछ सकती हो. तुमलोगों की भाषा में इसे ट्यूशन कह सकती हो.
फिर मैंने पूछा-पैसा? मैडम ने कहा-अगर तुमलोगों को लगता है कि पैसे देने से ही ट्यूशन हो सकता है तो मेरी तरफ से उन पैसों से स्कूल के किसी गरीब बच्चे की स्कूल फीस भर दो. मैडम ने कहा जब तक जरूरी न हो विद्यादान के पैसे नहीं लेने चाहिए. मैडम की यह बात हम बच्चों के दिल को छू गयी. दुलारी मैम आज भी हमारे दिल में बसी हैं. आप जहां कहीं भी हों-हैप्पी टीचर्स डे दुलारी मैडम.