संतोष शर्मा
बलिया। बाढ़ का पानी न तो गरीब को देखता है न अमीर को . इसके बावजूद प्रशासन द्वारा बाढ़ राहत प्रदान करने में भेदभाव किया जाना लोगो को कचोट रहा है. बलिया जनपद गंगा और घाघरा के साथ टोंस की बाढ़ से सबसे ज्यादे प्रभावित होता है. सर्वाधिक बाढ़ का कहर गंगा नदी द्वारा भरौली से लेकर ब्यासी, दुबहर, हल्दी, गायघाट, रामगढ़, लालगंज होते हुए मांझी तक बरपाया जाता है.
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ये वे इलाके हैं जो गंगा नदी के तट के उत्तर और दक्षिण स्थित है. यह सच भी है कि सर्वाधिक नुकसान भी इसी क्षेत्र के निवासियों का होता है. प्रशासन की सारी मशीनरी भी इसी क्षेत्र में लगायी भी जाती है. राहत सामग्री भी इसी क्षेत्रो में बांटी जाती है. कहते है न कि दीपक तले अंधेरा होता है . यह मुहावरा बलिया प्रशासन द्वारा बांटी जा रही राहत सामग्री पर सटीक बैठ रहा है. बलिया का जिला प्रशासन सर्वाधिक को राहत पहुंचाने के चक्कर में एक ऐसे क्षेत्र की अनदेखी कर रहा है, जो वास्तव में सहायता के हकदार है, लेकिन प्रशासन ने आज तक सुधि तक नहीं ली है.
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ऐसे ही प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार है लगभग 50 हज़ार की आबादी वाले गड़हांचल की करइल की जनता . लक्ष्मणपुर, पीपरा चौरा, सलेमपुर, इटही, कथरिया, फिरोजपुर ,शाहबुद्दीनपुर, दौलतपुर, बड़ौरा, कैथवली, कोठिया, सिंदुरिया, रामपुर, अमांव, बघौना, टूटूवारी, मेन्डौरा, एकौनी, रामगढ़, चुरौली, नसीरपुर, मुतलके, टूटूवारी , दुलारपुर, पुनीपुर, नारायणपुर, गोविंदपुर आदि गांवों के लोग बाढ़ से प्रभावित होते हुए भी आज तक किसी भी सरकारी सहायता से मरहूम हैं.
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बता दे कि यह सभी गांव गाज़ीपुर हाजीपुर राष्ट्रीय राज्यमार्ग 31 के पश्चिम स्थित है. इस बार गंगा नदी की बाढ़ इस एनएच को पार कर इन गांवों में पहुंचा, जिससे ऐसा कोई भी गड्ढा खेत नहीं है, जहां पानी नहीं भरा है. पानी सड़क से लेकर लोगों के घरों तक पहुंच गया है. लोगों को रोजमर्रा के कार्यों के लिये पानी में चलकर जाना पड़ रहा है. लेकिन जिला प्रशासन को इतनी भी फुर्सत नहीं है कि इन क्षेत्रों के लोगों की पीड़ा को सुने, राहत सामग्री देने की बात तो दूर है.
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हद तो तब है जब राहत सामग्री बांटने का शिविर तो लक्ष्मणपुर में बना है, पर इस गांव के लोगों को राहत सामग्री नसीब नहीं है. बता दें कि बुधवार के दिन इसी बाढ़ के पानी में किसान शिवमोहन यादव (55) की पशुओं के लिये चारा लाने जाते समय डूबने से मौत हो गयी. लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन द्वारा इस क्षेत्र में नाव की व्यवस्था की गयी होती तो आज किसान शिवमोहन यादव जिन्दा होते.
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इतनी बड़ी आबादी को राहत सामग्री न देने से जनता में सरकार के प्रति गलत संदेश जा रहा है. राष्ट्रीय राजमार्ग 31 के पूरब दक्षिण के गांवों में बाढ़ के उतर जाने से जनजीवन सामान्य हो जायेगा और इस क्षेत्र के खेतों में फसले भी लहलहायेगी, पर करइल के इन गांवो में यह भी नसीब नहीं होगा. करइल क्षेत्र जहां सामान्य दिनों में खेती के लिये आदर्श और किसानों की खुशहाली का कारण होता है, तो बाढ़ में दुःख का पहाड़ लाने वाला होता है. क्योंकि इन खेतो में पानी सोखने की क्षमता कम होने के कारण कम से कम 6 माह पानी सूखने में लगेगा.
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यानि आगामी फसल का बर्बाद होना तय. ऐसे में इन क्षेत्रों में केवल बाढ़ के समय ही नहीं, अगले एक साल तक संकट सिर पर मंडराता रहेगा. ऐसे में इनके प्रति प्रशासनिक उपेक्षा कहीं किसी राजनीतिक साजिश का हिस्सा तो नहीं. धन्यवाद के पात्र हैं, इन क्षेत्रों के ग्राम प्रधान, जिन्होंने प्रशासनिक उपेक्षा के वावजूद अपने गांव के लोगों के लिये रहने का आश्रय और खाने की व्यवस्था स्वयं कर कुछ राहत प्रदान करने का प्रयास तो किया है.