बलिया। रामलीला मैदान में द वैदिक प्रभात फाउण्डेशन की ओर से चल रहे श्रीमद्भागवत बाल्मीकि रामायण कथा के तीसरे दिन बुधवार को जगद्गुरु श्री वासुदेवाचार्य विद्याभाष्कर जी महाराज ने राम सीता विवाह, धनुष के रहस्य की कथा सुनाई. साथ ही के जीवात्मा और परमात्मा में अन्तर को समझाया.
स्वयंवर में धनुष टूटने की कथा सुनाते हुए विद्याभास्कर जी ने कहा जनकपुर के स्वंयवर में माता सीता जी के विवाह के लिये आये राजा जब धनुष पर प्रत्यंचा नहीं चढ़ा सके तो दुःखी मन से राजा जनक ने कहा लगता है यह घरती वीरो से विहीन हो गयी है. यह सुनते ही
लक्ष्मण नाराज हो गए. लक्ष्मण प्रभु राम के तीसरे भइया है.
लक्ष्मण जोर जोर से फुफकारते हैं और प्रभु श्री राम से कहते हैं. यदि आपका आदेश पाऊं तो पूरा ब्रम्हाण्ड को उठा लूं. बड़े से बड़े पर्वत को तोड़ दूं. उधर, माता सीता अपनी सहेलियों से महर्षि ऋषि विश्वामित्र की ओर इशारा करके कहती हैं. उनके बगल में जो सांवले रंग के बैठे हैं, अच्छे लग रहा हैं, मेरी शादी उन्हीं से होगी. तभी सहेलियों उनसे कहती हैं, लगता है आपका विवाह नहीं हो पायेगा. तुम्हारे पिता ने ऐसी शर्त रखी जो कोई पूरा नहीं कर सका. सखी की बात सुनकर माता सीता कहती हैं. मैंने पतिव्रता को धारण किया है. वे अग्नि नेत्रों से धनुष की ओर देखती हैं. धनुष भले ही दिख रहा हो, लेकिन एक तरह से वह माता सीता की अग्नि नेत्रों से जल चुका है. वह कहती है यदि मेरे पिता के पास राज हठ और योग हटाएं तो मेरे पास उनसे एक अधिक हठ है. बालहठ उस समय माता की उम्र 6 साल थी. और बाल हठ के सामने किसी की नहीं चलती. हजारों श्रोताओं वह कथा सुनाते हुए जगतगुरु बासुदेव आचार्य बताते हैं,
लक्ष्मण के क्रोध को देखकर महर्षि विश्वामित्र समझ जाते हैं अब विलंब करना ठीक नहीं. महर्षि वशिष्ठ का आदेश पाकर राम जी ने धनुष को गरुण की तरह देखा, लेकिन धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ने से पहले ही वह टूट गया.