बलिया. अयोध्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग उ.प्र. वाल्मीकि जयंती पर जिले के वाल्मीकि आश्रम सीता देवी मंदिर पचेव, वाल्मीकि मंदिर बलिया, कामेश्वरधाम और मानस मंदिर गायघाट पर रामायण पाठ का आयोजन करायेगा.
इस संबंध में जिले के कार्यक्रम संयोजक शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि जिले के सांस्कृतिक गौरव व पर्यटन विकास की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण पहल है, क्योंकि बलिया जिले नामकरण की कहानी भी वाल्मीकि आश्रम से जुड़ी है.
श्री कौशिकेय ने कहा कि अंत्यज कुलोत्पन्न डाकू रत्नाकर से महाज्ञानी पंडित के रुप में सूपूजित महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत महाकाव्य वाल्मीकि रामायण की रचना यही किया था.
इतिहासकार कौशिकेय ने बताया कि ब्रिटिश इतिहासकार एच.आर. नेविल द्वारा सम्पादित बलिया गजेटियर 1905 के अनुसार इस जिले का नाम बलिया पड़ने का एक कारण पूर्वकाल में यहाँ वाल्मीकि आश्रम होना भी है , पहले इसे वाल्मीकि के नाम से जाना जाता था, जिसका अपभ्रंश बलिया हो गया है.
बलिया जिले के पचेव गाँव में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था, जहाँ अयोध्या से निर्वासित गर्भवती महारानी सीता को लक्ष्मणजी छोड़ गये थे, इसी वाल्मीकि आश्रम में अयोध्यापति राजा राम की महारानी सीता ने कुश लव को जन्म दिया था.
यहाँ एक मंदिर है, जिसमें माता सीताजी के साथ कुश-लव बालकों की माता के हाथ पकड़ कर खड़ी आदमकद प्रतिमा लगी है. कुछ वर्षों पूर्व तक यहाँ सीतानवमी को एक महीने का मेला लगता था.
इसके आसपास के गांवों के नाम बिगही – बहुआरा, सीताकुंड यहाँ सीता जी के निवास के प्रमाण मिलते हैं.
बिगही अर्थात भोजपुरी में बिगल ( फेंकी हुई) बहुआरा अर्थात बहू का आश्रय. सीताकुंड के बारे में कहा जाता है कि निर्वासनकाल में यहाँ पर सीताजी स्नान करती थी.
श्री कौशिकेय ने बताया कि
वाल्मीकि आश्रम के संदर्भ में उसके मलद – करुष राज्य की सीमा पर होने का उल्लेख है. यह राज्य वर्तमान बिहार राज्य के आरा जिले के उत्तर दिशा में था. करुष राज्य की सीमा कामदहन भूमि कामेश्वरधाम कारों से जुड़ी है.
पचेवं गाँव के सीता मंदिर में स्थानीय महिलाएं दाल भरी पूरी चढ़ाती हैं , जिसे बहू के आने पर विशेष रूप से घरों में बनता है , इसके अलावे यहाँ दाल- भात , कढ़ी , बरी , बजका आदि विशेष प्रकार के भोज्यपदार्थों को चढ़ाने की परम्परा है. आज भी पंचकोशी परिक्रमा के समय महिलाएं गीत गाती हैं – बताव जननी राम कहिया ले अइहन…
स्थानीय लेखकों में स्व. कुलदीप नारायण सिंह झड़प , स्व. बाबू दुर्गा प्रसाद गुप्त ने अपनी पुस्तक ” बलिया और उसके निवासी ” तथा सूचना विभाग बलिया द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिकाओं में भी यहाँ पर वाल्मीकि आश्रम होने का उल्लेख है. इस आयोजन से बलिया में पर्यटन विकास की संभावनाएं बढ़ेगी.
(बलिया से केके पाठक की)