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आज एक तरफ विजयी दशमी का मेला था, वहीं दूसरी ओर लोकनायक की जयंती. सुबह आठ बजे ही जयप्रकाशनगर की गलियां-जब तक सुरज चांद रहेगा, जेपी तेरा नाम रहेगा, के नारों से गुंज उठी. यहां जेपी ट्रस्ट के द्धारा ही संचालित आचार्य नरेंद्र देव बाल विद्या मंदिर के बच्चे और शिक्षक शिक्षिकाओं ने प्रभात फेरी निकाल कर जेपी को याद किया.
आज संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पुण्य तिथि है. हम एक दिन पूर्व जेपी के पैतृक गांव सिताबदियारा में थे. आज हम बिहार सीमा के अंदर सिताबदियारा के चैन छपरा में स्थित जेपी के उस क्रांति मैदान में भी पहुंचे, जहां 1974 में ही लगभग 10 हजार लोगों ने जेपी के सांथ मिलकर जनेऊ तोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया था.
मंगलवार को मुन्ना यादव की तबियत अचानक खराब हो गई. उसके युवा साथी उसे लेकर सिताबदियारा के छोटका बैजू टोला स्थित स्वास्थ्य केंद्र पर गए. वहां न कोई स्टाफ था, न कोई डॉक्टर. वह युवक पेट दर्द के मारे कराहे जा रहा था. उल्टियां भी हो रही थी. अस्पताल में जब कोई नहीं मिला तो युवक भड़क उठे और वहीं नारेबाजी करने लगे.
अद्भुत संकल्प, अटूट निष्ठा और अनवरत प्रयास का नतीजा है, जयप्रकाश नगर (जेपी की जन्मभूमि) में जेपी स्मारक. अकेले चंद्रशेखर के साहस और निष्ठा से ही जेपी की जन्मभूमि में अनूठा स्मारक बनाने का स्वप्न साकार हुआ है. वस्तुत: यह स्मारक असंभव कल्पना का साकार रूप है, जो घोर देहात के वाकिफ नहीं हैं, उन्हें बिना यहां का भूगोल जाने शायद इस कथन पर यकीन न हो. हिंदुस्तान की दो मशहूर नदियों गंगा और घाघरा के बीच बसा है सिताबदियारा. यहीं दोनों नदियों का संगम भी है.