इस बार के चुनाव में मुद्दा कम जाति या सामाजिक समीकरणों का जोर अधिक दिख रहा है। हर प्रत्याशी जाति की गणना बिठाकर ही वैतरणी नदी पार करने में जुटा हुआ है.
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