गंगा से साल भर बाद सुरक्षित बाहर निकल आई प्रतिमा

जैसे स्थापित की गई थी मिली बिल्कुल उसी रूप में, दामन में खरोंच तक नहीं

बाढ़ की विभीषिका ने मिटा डाला था केहरपुर के इस धार्मिक स्थल का अस्तित्व

बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र

बाढ़ की विभीषिका के बीच गंगा की लहरों ने अपनी गोद में जिन-जिन चीजों को समेट लिया, क्या बाद में किसी ने उन्हें देखा या दोबारा उन चीजों को हासिल किया? इसका जवाब तो हां में कत्तई नहीं होगा. लेकिन यहां एक ऐसा पहलू सामने आया जिसने लोगों को आस्था के समंदर में इस तरह डुबो दिया कि इस जनम में तो लोग बाहर नहीं ही निकल पाएंगे. सच ही कहा है दिल से जो भी मांगो, उसे दिलाने के लिए पूरी कायनात लग जाती है.

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ऐतिहासिकता को खुद में समेटे बागी धरती धार्मिक पहलुओं को लेकर भी हमेशा सुर्खियों में रही है. इस धरती पर बहुत से संत हुए जिनके बारे में सुनकर लोग आज भी आस्था के सागर में डुबकी लगाने लगते हैं. ऐसे ही संतों में एक रहे स्वामी हरेराम ब्रह्मचारीजी. जन्मभूमि इनकी सुघरछपरा गांव बतायी जाती है. इससे सटे केहरपुर में स्वामी जी का स्मृति स्थल था. जहां इनकी भव्य प्रतिमा स्थापित की गई थी. वर्ष 2019 की प्रलयंकारी बाढ़ में प्रतिमा के साथ पूरा स्मृति स्थल गंगा की गोद में समा गया था. सुघरछपरा गांव के लोग इसको लेकर काफी परेशान थे. उनका मानना था कि प्रतिमा एक न एक दिन जरूर मिलेगी. तभी से गंगा में इसे ढूंढने का सिलसिला शुरू हो गया था.

अथक परिश्रम के बाद मंगलवार को यह प्रतिमा आस्थावानों ने गंगा नदी से बाहर निकालकर सुरक्षित कर लिया.

ग्रामीणों ने इस दौरान भी सोशल डिस्टेंस का ख्याल रखा. स्वामी जी की मूर्ति जैसे ही गंगा के आंचल से बाहर आई, हर-हर महादेव व स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी का जयकारा गूंजने लगा. गंगा की गोद से निकली मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराया गया. खास बात यह है कि गंगा की लहरों में विलीन स्वामी जी की मूर्ति पर खरोच तक नहीं आयी है. मूर्ति जिस प्रकार स्मृति स्थल पर स्थापित की गई थी, ठीक वैसी ही है.

ग्राम प्रधान विजय कांत पांडे ने बताया कि स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी की मूर्ति गंगा नदी से निकाली गई है. ग्राम सभा के लोगों से विचार-विमर्श के बाद मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराकर पुनः स्मृति स्थल बनाया जाएगा, ताकि स्वामी जी की कृपा अनवरत बनी रहे.
इलाकाई इसे स्वामी जी की  कृपा ही मान रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मचारी जी का स्मरण जो भी तन्मयता से करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है.

स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी का मंदिर गंगा नदी के उस पार नौरंगा में भी अवस्थित है, जहां पर समय-समय पर श्रद्धालु भजन कीर्तन में जुटे रहते हैं.

बताते हैं कि 1840 चैत्र शुक्ल पक्ष रामनवमी को सुघरछपरा गांव के रविंद्र नाथ पांडे की धर्मपत्नी शकुंतला देवी की गोद में स्वामी हरेराम ब्रह्मचारी जी का अवतरण हुआ.
बाल्यावस्था से ही उनका तेज उजागर होने लगा. 5 वर्ष की उम्र में जब उनका मुंडन संस्कार गंगा तट पर हो रहा था तो ये अपनी मां की गोद में बैठे थे. सभी लोग नौका पर सवार होकर उस पार चले गये थे. इसी बीच ब्रह्मचारी जी अपनी मां की गोद से उठकर गंगा किनारे ही ध्यानमग्न हो गए. लोगों ने उन्हें किसी तरह ध्यान से विमुख किया. फिर घर पहुंचे. लेकिन उनका मन इस दुनिया से अलग रहने लगा. ये बाल्यावस्था से ही गायत्री की उपासना करने लगे. 12 वर्षों तक तुलसी के पत्तों का सेवन कर गायत्री का पुरश्चरण पूरा किया. जिसके फलस्वरूप सिद्धियां प्राप्त हुईं और आप त्रिकालदर्शी हो गए.

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