


मनियर, बलिया. भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. इनके जन्म स्थान के बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं लेकिन मनियर भगवान परशुराम की तपोभूमि रही है . इसे इनकार नहीं किया जा सकता. उस समय यहां घना जंगल था जिसमें मणिधर सर्प रहा करते थे जिसके कारण इसका नाम मणिवर फिर मुनियों द्वारा तप किए जाने के कारण इसका नाम मुनिवर पड़ा. बाद में उसी का विभत्स नाम मनियर है. भगवान परशुराम के जन्म दिन के अवसर पर अक्षय तृतीया के दिन मनियर में उनके मंदिर में धूमधाम से पूजा अर्चना की गयी. मंदिर को अच्छी तरह से सजाया गया है. यहां पर अक्षय तृतीया( एक तिजिया )के नाम से बस स्टैंड मनियर के पास एक मेला भी लगता है जो लगभग एक पखवाड़े तक रहता है.
अक्षय तृतीया के दिन को लोग शुभ मुहूर्त मानते हैं एवं इस दिन को शुभ कार्य का समहुत भी करते हैं. मनियर में भगवान परशुराम की का मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है इस मंदिर का जीर्णोद्धार संवत 1625 में श्रीनाथ राय द्वारा कराया गया था इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मंदिर करीब 700 वर्ष पुराना है . लोग बताते हैं कि भगवान परशुराम की मूर्ति पर मुगल शासक औरंगजेब ने भी प्रहार किया था जिसके कारण मूर्ति खंडित हो गई थी. मंदिर से निकले भंवरवा हाड़ा ने अंग्रेजी सैनिकों को खदेड़ा था.

इस मंदिर के विषय में बताया जाता है कि पूर्व मंत्री निर्भय नारायण सिंह के पूर्वजों ने इसका निर्माण कराया था और तब से इस मंदिर की देखरेख उनके परिवार के लोग ही करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन यहां उनके परिवार के लोगों द्वारा लोगों को शरबत पिलाया जाता है लोग इस तिथि को शुभ मुहूर्त समझ कर समहुत करते हैं. अक्षय तृतीया के दिन किया गया समहुत अक्षय होता है यानी कि इसका नाश नहीं होता. ऐसा लोगों का मानना है. मंदिर परिसर में लोगों ने त्रिलोकीनाथ भगवान की कथा भी सुनी.
(मनियर संवाददाता वीरेंद्र सिंह की खास रिपोर्ट)