नगवा से कृष्णकांत पाठक
मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को देश को आजाद कराने के लिए ब्रिटानिया हुकूमत के खिलाफ जब बगावत की तो उन्हें दंड स्वरुप 8 अप्रैल 1857 को फांसी दी गई. उनकी बगावत से तिलमिलाए अंग्रेज अफसरों ने बलिया में स्थित उनके पैतृक गांव नगवा में फ़ौज की एक टुकड़ी भेजकर आग लगा दी. नतीजतन सभी लोग गांव छोड़कर भागने को मजबूर हुए. उनकी बगावत के परिणाम स्वरुप लंबी लड़ाई के बाद अपना देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ. आजाद भारत में लोगों को बड़ी अपेक्षाएं थीं, मगर सरकारें उसे पूरा करने में खरा नहीं उतरी. यहां तक की आजादी के लिए प्रथम शहीद मंगल पांडेय के पैतृक गांव नगवा के लोगों के लिए शुद्ध पेयजल भी मयस्सर नहीं है.
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हाथी का दांत साबित हो रहा है ओवरहेड टैंक
नगवा में 1,62,000 रुपए की लागत से बना है वह ओवरहेड टैंक हाथी का दांत साबित हो रहा है. गांव के उत्तर दिशा में हाथी की तरह खड़ा यह विशालकाय ओवरहेड टैंक. नगर की दस हजार आबादी के लिए मात्र एक शोभा बनकर रह गया है. यह अगस्त 2013 में बनकर तैयार हो गया और 450 किलोमीटर की क्षमता वाला यह ओवरहेड टैंक बलिया के गांव नगवा के लिए कभी भी वरदान साबित नहीं हुआ. इसको चलाने के लिए स्थापित विद्युत मोटर एक माह से फुंका पड़ा है. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन जल निगम के निर्माण खंड के पास इतना धन नहीं है कि उस विद्युत मोटर का मरम्मत कर नगवा गांव के लोगों के लिए पेयजल की आपूर्ति की जा सके. एक महीने से नगवा गांव में जल आपूर्ति ठप है.
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ग्राम पेयजल योजना के अंतर्गत संरक्षण के मद में सरकार द्वारा कोई भी धन उपलब्ध नहीं कराया गया है, जिससे विद्युत मोटर को बनाकर इसे संचालित किया जा सके. विद्युत मोटर की मरम्मत में 35 से 40000 रुपये खर्च हो सकते हैं. सरकार के नए सर्कुलर के अनुसार ग्राम पेय जल योजनाएं अब ग्राम प्रधान के अधीन होंगी. योजनाओं का संचालन भी ग्राम प्रधान ही करेंगे. – फणींद्र राय (जल निगम के अधिशासी अभियंता)
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कैबिनेट मंत्री का आश्वासन भी बेअसर
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री नारद राय नगर भ्रमण के दौरान लोगों की शिकायत पर उत्तर प्रदेश जल निगम निर्माण खंड के अधिशासी अभियंता रविंद्र राय से दूरभाष पर बातचीत किए थे. निर्देश भी दिया था कि शीघ्र ही गांव में पेयजल आपूर्ति शुरू की जाए तथा गांव में आर्सेनिक मुक्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए बगल में 850 फीट गहरी बोरिंग की जाएं. कैबिनेट मंत्री को आश्वासन दिया था कि शीघ्र ही ऐसा कर लिया जाएगा, परंतु लगभग एक माह के अंतराल के बाद भी ऐसा संभव नहीं हो सका.
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