


बक्सर। भगवान किसी को न दुख देते हैं न सुख. जीवन में आप जो कर्म करते हैं. उसी के अनुरुप आपके हिस्से में सूख-दुख आते हैं. किए गए कर्मों का फल मानव को भोगना होता है. इसलिए मनुष्य को वेद के अनुसार ही आचरण करना चाहिए. ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग से कभी अलग नहीं होना चाहिए. सनातन धर्म वैज्ञानिक धर्म है. खुले तौर पर कहें तो वर्तमान युग के विज्ञान से बहुत आगे है सनातन धर्म. ऐसा कहना है सुप्रसिद्ध कथा वाचक कृष्णचन्द्र शास्त्री ठाकुर जी का.
उन्होंने कहा उदाहरण के तौर पर कर्दम ऋषि ने ऐसा विमान बनाया था, जिस पर बैठने वाले अपनी इच्छा अनुरुप यात्रा कर लेते थे. न उसमें चालक की जरूरत थी, न इंधन की. ऋषि-महर्षियों की खोज को आप भी अनुभव कर सकते हैं. तुलसी का पौधा हो या पीपल का वृक्ष. इनकी हमारे यहां पूजा होती है. यह ऐसे वृक्ष हैं, जो ओजोन लेयर को भरने वाली गैस निकालते हैं. यह वह गैस है, जो पूरी मानव जाति की रक्षा करती है.
अर्थात हमारा धर्म सिर्फ अपने भले की नहीं सोचता. यह पूरे विश्व का कल्याण करता है. यह सारी बातें कथा प्रसंग के दौरान उन्होंने कहीं. जिसे सुनने के बाद लोग तालियां बजाते नहीं थके. भगवान के स्वरुप का बखान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री ठाकुर जी ने कहा वे अवतार इसलिए नहीं लेते. वे किसी को मारने आए हों. वे तो भक्तों की तपस्या, मानव के कल्याण व ऋषियों के आह्वान पर आते हैं. जन मानस को इसका भाव समझाते हुए बहुत ही अच्छा उदाहरण दिया. कोई व्यक्ति किसी के घर क्यों जाता है. उसके तीन कारण होते हैं. स्वभाव, प्रभाव व आभाव में. उसी तरह भगवान भक्त के प्रभाव में यहां खींचे चले आते हैं. परमात्मा का प्रतिबिंब है आत्मा. वह है तो आप जीव हैं, नहीं है तो बेकार.

इस मौके पर ठाकुर जी न मामा जी को किया याद. संत श्रीमन नारायण जी को याद करते हुए ठाकुर जी ने कहा. वे बहुत ही सहज व सरल व्यक्ति थे. संत के सारे गुण विद्यमान थे उनमें. मामा जी जब वृंदावन आते तो एक पद जरुर गाते थे. वह आज भी मुझे याद है. काहें भरल बाड़ एतना गुमान में, आव न बिहारी मैदान में.