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यूपी विधान सभा चुनाव में इस बार गठबंधन राजनीति की खूब चर्चा है. गठबंधन राजनीति में कई तरह के नए नारे भी मौजूद हैं. आइए जानते हैं हमारे देश की धरातल पर गठबंधन की राजनीति की शुरूआत कब हुई. इस तथ्य का खुलासा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा द्धारा चंद्रशेखर के निधन के बाद लिखे एक लेख से ही हो जाता है.
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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के संबंध में उन्होंने लिखा है कि गठबंधन की राजनीति देश की लोकतांत्रिक प्रणाली और संसदीय राजनीति में अटूट श्रद्धा रखने वाले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री बलिया के चंद्रशेखर ने देश की सेवा करते हुए, कुछ बातों से कभी समझौता नहीं किया. वह आजीवन समाजवाद और समाजवादी व्यवस्था के पक्षधर रहे. कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल के अभिन्न अंग रहते हुए भी उन्होंने अपने यूवा साथियों के माध्यम से समाजवादी दिशा में ले जाने का प्रयास किया.
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जब उन्हें लगा कि कांग्रेस को कुछ निरंकुश ताकतें अपने हिसाब से चलाना चहती हैं, तो वह बिना वक्त गंवाए देश को उबारने के लिहाज से जयप्रकाश नारायण के सांथ आकर खड़े हो गए. इसकी कीमत उन्हें जेल में नजरबंदी के रूप में चुकानी पड़ी. इसके बावजूद भी वे झुके नहीं, बल्कि इससे समाजवाद के प्रति उनकी धारणा और बढ गई. इसी का परिणाम था कि देश में जनता पार्टी के आंदोजन ने जोर पकड़ा और कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. भले ही यह प्रयोग ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका, किंतु देश में वास्तविक अर्थों में गठबंधन के राजनीति की शुरूआत यहीं से हुई थी और इसके प्रणेता थे चंद्रशेखर.
गठबंधन की मूल व्यवस्था पर यह थी चंद्रशेखर की सोच
गठबंधन की राजनीति पर चंद्रशेखर का कथन था कि गठबंधन एक व्यवस्था मात्र है. यह लाकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है. चाहे वह भारत की बात हो या दुनिया के किसी अन्य देश की. जनतंत्र में होता यह है कि यदि कोई पार्टी बहुमत में नहीं आती है, तो एक समझौते को तैयार हो जाती है, किंतु इसके लिए कुछ चीजों का होना आवश्यक है. पहली बात यह कि देश-प्रदेश के सामने जो समस्याएं हैं, उन पर एक मत हो. दूसरी बात यह कि सिद्धांतों के लिए क्या कार्यक्रम अपनाया जाए कि आपसी सहमति बनी रहे. अगर यह नहीं है तो वह प्रजातांत्रिक गठबंधन नहीं है. केवल सत्ता में भागीदारी है.
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जब चंद्रशेखर ने कहा-वी आर नाट लीडर्स, डीलर इन पार्टीज
इस विधान सभा चुनाव में लगभग लोगों का मन-मिजाज राजनीति के ईर्द-गिर्द ही घूम रहा है. यह सही है कि राजनीति में अब नेताओं का मान कम हो गया है. इस बात को बहुत पहले ही चंद्रशेखर इंगित कर चुके थे. अपनी सक्रिय राजनीति के दौरान ही एक साक्षात्कार के दौरान राजनीति में राजनेताओं के मान कम होने के सवाल पर उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि-‘’वी आर नाट लीडर्स,डीलर इन पार्टीज.’’ राजनीति में जो तस्वीर आज सामने है, उसे वह अपने निधन से पूर्व ही सभी को बता गए. उन्होंने तब आगे कहा था कि अब राजनीति के दो उद्देश्य रह गए हैं. पहला समाज में लोगों का समर्थन कैसे मिले ? कुछ भी, कैसे भी ? चाहे गलत करके या सही करके.
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दूसरा पैसा कैसे मिले ? अब की राजनीति भी इन्हीं दो चीजों पर आधारित है. पैसे पर और असरदार लोगों के समर्थन पर. वैसे मेरा मानना है कि यह न किया जाए तो उससे उतना ही लाभ मिलता है, जितना और किसी तरीके से. राजनीति में भटकाव की इस प्रक्रिया को एक व्यक्ति नहीं चला रहा है. जब हम जनता से दूर हो जाते हैं. उनकी समस्याओं पर कम ध्यान देते हैं. ऐसे में गैर राजनीतिक गतिविधियां चलने लगती हैं. गांधी जी ने कहा कि राजनीति सिर्फ भाषण देना नहीं है. कुछ रचनात्मक कार्य भी होने चाहिए. अब यह कौन करता है? करता भी है तो गैर सरकारी संस्था चलाता है. एनजीओ को चलाने के लिए वह सारी तिकड़म चाहिए जो सरकारी संस्थाओं में चलते हैं. यदि इसे अस्वीकार कर दीजिए तो सबसे गए गुजरे आदमी हैं हम. हम राजनीति नहीं, राजनीति के सौदागिरी का काम करते हैं. वी आर नाट लीडर्स, डीलर इन पार्टीज.
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