‘बागी बलिया’ को शायद एक बार फिर उसी तेवर को इख्तियार करने की जरूरत है. बीते साल के सितंबर महीने में दुबेछपरा रिंग बंधा गंगा के तल्ख तेवर के आगे उन्नीस पड़ गया. उसका खामियाजा किसको और कैसे भुगतना पड़ा, यह बताना तो जरूरी नहीं रह गया है.
उधर से गुजरते हाईवे NH-31 के दोनों किनारों पर कई किलोमीटर तक जैसे कई बस्तियां बस गयीं. खुले आसमान के नीचे बारिश की बौछार झेलते हुए लोगों ने कैसे जिंदगी गुजारी होगी, यह सोचकर ही बदन सिहर जाता है.
सड़क के किनारे बसे लोगों पर कभी सूअर हमला करते तो कभी सांप डंस लेता.यानी लोग जी तो रहे थे मगर सिर पर कफन बांधकर. हालत तो यह है कि आज की तारीख में भी वहां अनेक लोग जिंदगी बसर कर रहे हैं. यह तो रही सड़कों के किनारे रह रही आबादी की बात.
उधर, अपने गांवों में फैले पानी के बीच घिरे लोगों की तादाद भी कुछ कम नहीं थीं. गंगा की थपेड़ों से कब कौऩ मकान ध्वस्त हो जायेगा, इसका अनुमान भी लोग नहीं लगा सकते थे. चौबीस घंटों में एक पल भी उनका आश्वस्त नहीं कर सकता था. कब-कौन जीव-जंतु उनपर हमला कर दे, इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता था.
इस दौरान National Disaster Rescue Force (NDRF) की टीमों ने अपनी जांबाजी दिखायी. काफी हद तक वे मददगार साबित हुईं. बाढ़-कटान से प्रभावितों को राहत सामग्री बांटने में प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में रही.
हालांकि बैरिया के विधायक सुरेंद्र सिंह ने कई दिनों तक पीड़ितों के लिए लंगर भी चलाया. राहत सामग्री वितरण को लेकर अक्सर झड़पों की खबरें आम थीं.
सितंबर में ध्वस्त हुए दुबेछपरा के रिंग बंधे बनाने का इंतजार करते-करते आखिरकार थककर लोगों ने दिसंबर 2019 में दुबेछपरा ढाले पर महावीर मंदिर में धरना और क्रमिक अनशन शुरू कर दिया.
उधर, दिसंबर 2019 के दूसरे पखवारे में माल्देपुर, हैबतपुर इलाकों में नदी के अपना दायरा आबादी तक फैलाने की खबरें उछाल मारने लगीं. उस दौरान प्रदेश के मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला ने प्रभावित इलाकों का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया. उन्होंने संबंधित अधिकारियों को जरूरी निर्दश भी दिये. उस दौरान ही इलाके के लोगों-किसानों ने माल्देपुर में जोरदार प्रदर्शन किया.
विकास कार्य के नाम पर की गयी घोषणा हकीकत के धरातल किस रूप में आयेगी यह महत्वपूर्ण बात है. केवल घोषणाओं और योजनाओं से कहीं काम चलता है. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों की जगह प्रधान सेवक और मुख्यसेवकों का इन दिनों चलन हो गया है.
कभी किसी मुश्किल स्थिति में प्रशासन के पास जाने पर जवाब मिलता है आदेश से बंधे हैं. वरिष्ठों से मिलने पर कहा जाता है कि निर्देश तो दे दिया है.
अब तो जनता-जनार्दन के पास गाने के लिए यही रह जाता है कि ‘जायें तो जायें कहां’. ऐसी ही स्थितियों से गुजरने पर एक आह के साथ यही शब्द बरबस निकलते हैं- ‘भारत में फिर से आ जाओ मंगल पांडेय भैया’