पूर्वांचल के ख्याति प्राप्त शक्तिपीठों में शामिल है सोनाडीह का भागेश्वरी परमेश्वरी मां भगवती मंदिर
बिल्थरा रोड नगर के 8 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है यह शक्तिपीठ
देवी के चरित्र से जुड़ी है अनेक आध्यात्मिक एवं पौराणिक कथाएं
बिल्थरारोड, बलिया. जिले के अंतिम छोर पर मऊ जिले के सरहद से सटा बिल्थरारोड नगर के उत्तर दिशा मे 8 किलोमीटर दूर सोनाडीह स्थित देवी भागेश्वरी परमेश्वरी मन्दिर पूर्वान्चल के ख्याति सिद्ध शक्ति पीठों में से एक है.
नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि के रूप का होगा पूजन एवं दर्शन
शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन शनिवार को मां भगवती के सातवें रूप कालरात्रि की पूजा दर्शन होगा. मां दुर्गा का सातवां बहुत ही विनाशक होता है इसी रूप में मैन भयानक एवं शक्तिशाली राक्षसों का वध किया था.
सारथी नवरात्रि में गांव-गांव मोहल्ले में मां दुर्गा के पंडाल रखे गए हैं. इन पंडालों में रखी गई मूर्तियों में वैदिक मेट्रो कर के बीच प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. इसी के साथ तीन दिवसीय नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है.तीन दिनों तक उपवास रहकर मां की आराधना करते हैं.
शारदीय और वासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है. शारदीय नवरात्र में श्रद्धालुओ की पूजन अर्चन करने हेतु भारी भीड़ लग रही है. आस्था और विश्वास का केन्द्र बने मॉ भगवती के मन्दिर मे निष्काम भाव से दर्शन व पूजन करने से सारे पाप धुल जाते हैऔर भक्तो को मनोवांच्छित फल की प्राप्ति होती है.
सोनाडीह शक्तिपीठ के सम्बन्ध मे अनेक लोकोक्तियां और जनश्रुतिया प्रचलित है. कहा जाता है कि सोनाडीह के आस-पास के क्षेत्रो मे महाहनु नाम का एक राक्षस रहता था जिसके आतंक से लोग भयभीत रहते थें. राक्षस द्वारा धार्मिक अनुष्ठानो में विघ्न डालने व अत्याचार करने से चारों तरफ त्राहि त्राहि मची हुई थी.
भक्तो की दुर्दशा की अन्तर्नाद को सुनकर मॉ भगवती अत्याचारी राक्षस महाहनु का संहार करने के लिए खोज में निकल पड़ी.
भगवती को अपने तरफ आते देख राक्षस महाहनु रुक गया और भगवती के मनोहारी अनुपम सौदर्य को देखकर मुग्ध हो गया और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा. राक्षस महाहनु की बात को सुनकर भगवती ने कहा कि मेरे नहाने के लिए यदि तुम एक रात में सरयु नदी से नाला खोदकर सोनाडीह तक ला दो तो तुम से विवाह कर सकती हूं.
भगवती की बात को सुनकर राक्षस राजी हो गया और शाम होते ही नाला खोदना शुरू कर दिया. अभी वह सोनाडीह से कुछ दूरी पहले तक ही नाला खोद पाया था कि सूर्योदय हो गया. अपने बात पर नाकाब होने के बाद भी देवी भगवती से विवाह करने के जिद पर ही अड़ा रह गया.
इसके परिणाम स्वरूप देवी व राक्षस महाहनु में संग्राम शुरू हो गया. अन्ततः देवी भगवती ने राक्षस महाहनु का वध कर दिया. राक्षस द्वारा खोदे गए नाले को हाहानाला तथा युद्ध के दौरान गिरे रक्त से ताल का निर्माण हो गया जो कालान्तर में “ताल रतोई” के नाम से जाना जाता है.
मंदिर परिसर में सैकड़ों की संख्या में लाल बंदर घूमते रहते है जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हीं बंदरों के पूर्वज देवी भगवती की सेना में शामिल थे. शारदीय और वासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं की देवी दर्शन और पूजन के लिए भारी भीड़ लगती है. वासांतिक नवरा़त्र में मंदिर परिसर में एक माह का मेला लगता है.
नवरात्र में मां भगवती के दर्शन करने के लिए देवरिया, गोरखपुर, मऊ, गाजीपुर , बनारस सहित पूर्वांचल और अन्य जिलों के लोग आते है. यहाँ पर उपनयन संस्कार और विवाह भी होता रहता है. मंदिर पर गंगा-जमुनी तरजीह देखने को मिलती हैं.
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