रुक्मिणी-श्रीकृष्ण विवाह का मनोहारी वर्णन सुन विभोर हुए श्रोता

दुबहर:क्षेत्र के दत्तुमठ में हो रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में भव्य रुक्मिणी श्रीकृष्ण विवाह महोत्सव मनाया गया. क्षेत्र के अनेक गांवों से भक्तगण आकर कथा का आनंद उठाते रहे.

विवाह महोत्सव को ऐतिहासिक बनाने के लिए अवध धाम से पधारे कथा वक्ता आचार्य गौरव कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि भगवान ने 16108 विवाह किया. उन्होंने बताया कि 16108 रानियों से भगवान ने विवाह किया, फिर भी श्रीकृष्ण कन्हैया योगेश्वर कहलाए.

उन्होंने कहा कि भगवान अपने मुकुट पर मोर का पंख लगा कर चलते थे. मोर का पंख इसका सूचक है कि मोर अखंड ब्रह्मचारी होता है. भगवान भी अखंड ब्रह्मचारी थे. कथावाचक ने सवाल किया कि 16108 रानियां कौन थी. उन्होंने इसका कुछ इस प्रकार से वर्णन किया.

आचार्य गौरव कृष्ण शास्त्री ने कहा कि 8 प्रकार की प्रकृति होती हैं. भगवान ने उनको अपने वश में कर लिया. श्रीकृष्ण ने 100 प्रकार के उपनिषद को भी अपने वश में कर लिया. अंत में उपासना कांड में 16000 मंत्र हैं. भगवान जब इस धरती पर लीला करने आये तो उपासना कांड के सभी मंत्र स्त्रियां बनकर आ गई.

आचार्य शास्त्री ने कहा कि भगवान उन सभी मंत्र और स्त्रियों से विवाह कर लिए. इस तरह उन्होंने कंस वध की कथा सुनाने़ के बाद श्रीकृष्ण रुक्मिणी का विवाह महोत्सव बड़े धूमधाम से कराया.

‘आओ मेरी सखियों मुझे मेहंदी लगा दो, मुझे श्याम सुंदर की दुल्हन बना दो’ जैसे भजन गाकर कथावाचक ने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

विवाह के पावन अवसर पर पंडाल में बैठे सभी भक्तगण खड़े होकर झूम उठे. इस मौके पर देवरिया जनपद की अपर न्यायाधीश स्वर्णमाला सिंह, प्रधान संघ के मण्डल अध्यक्ष विमल पाठक पिंटू मिश्रा मनु सिंह आदि लोग भी उपस्थित थे.

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