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अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं सम्प्रति जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के निदेशक (शैक्षणिक) पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि ग्रीन पटाखें ऐसे पटाखें होते हैं,जिनका प्रयोग करने से न केवल वायु प्रदूषण कम होता है,बल्कि ध्वनि भी कम उत्पन्न होता है,जिससे ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है.
पर्यावरण मंत्रालय सूत्रों के अनुसार सरकार अभी ग्रीन पटाखों पर रिसर्च कर रही है. सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘ग्रीन पटाखे’ राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज है. ये पटाखे पारंपरिक पटाखों की तरह ही होते हैं,किंतु इनके जलने से कम प्रदूषण फैलता है. नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीन खासतौर से पर्यावरण से जुड़े विभिन्न विषयों पर अध्ययन एवं अनुसंधान करती है।नीरी ने ग्रीन पटाखों पर इस साल जनवरी में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के उस बयान के बाद शोध शुरू किया था जिसमें उन्होंने ग्रीन पटाखे की जरूरत बताई थी.
ग्रीन पटाखे की बात पहली बार विगत वर्ष पटाखों के प्रतिबंध से शुरू हुई. विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन ने सी एस आई आर से ग्रीन पटाखे बनाने का अनुरोध किया था. इसका परिणाम यह हुआ कि ‘सी एस आई आर’ और ‘नीरी’ दोनों ने मिलकर ग्रीन पटाखे यानि कम प्रदूषण करने वाले पटाखे बनाए.
उल्लेखनीय है कि सामान्य पटाखों में परकोलेट्स, नाईट्राइड्स और क्लोराइन अधिक मात्रा में होता हैं. इसके अलावा खतरनाक बेरियम भी कई पटाखों में मिलता हैं।परक्लोरेट और बेरियम हमारे फेफड़ों के लिए बहुत ही हानिकारक होता है.
सी एस आई आर द्वारा निर्मित ग्रीन पटाखों में नाइट्रोजन आधारित नाइट्रोसेलूकोज होता हैं,जिससे प्रदूषण बहुत ही कम होता है.
यद्यपि कि वायु प्रदूषण अत्यंत ही गंभीर मुद्दा हैं। किंतु केवल पटाखों को ही इसके लिए दोष देना गलत होगा. इसीलिए न्यायालय का भी कहना सही है कि हमें सिर्फ प्रतिबंध लगाने के अलावा बेहतर उपाय खोजना चाहिए। इस तरह ग्रीन पटाखों का प्रयोग करना एक सही दिशा में कदम कहा जा सकता है. अस्थमा एवं ब्रोंकाईटिस वाले रोगियों के अलावा हमें बच्चों और बूढ़ों के बारे में भी सोचना होगा. अगर हम छोटे समय अंतराल के हिसाब से सोचें तो इसका कुछ ख़ास असर नहीं होने वाला है. इसकी साफ वजह यह है कि न बाजार अभी ग्रीन पटाखों के लिए तैयार हैं न इसे बनाने वाले. ग्रीन पटाखों की जागरूकता और उत्पादकता में थोड़ा समय लगेगा. किंतु लम्बे समय के अंतराल में इसका असर बिल्कुल प्रभावी होगा और यह फैसला उपयोगी सिद्ध होगा.
अभी तमिलनाडु स्थित शिवकाशी के पटाखा कारोबारियों को भी यह पता नहीं चल पा रहा है कि आखिर ग्रीन पटाखे क्या होते हैं ?सामान्य पटाखों की तरह ही ग्रीन पटाखे भी दिखते, जलत तथा आवाज करते हैं. फिर भी ये जलने पर सामान्य पटाखों की तुलना में लगभग 50% कम प्रदूषण करते हैं।
ग्रीन पटाखे तीन प्रकार के होते हैं –
1. सेफ वाटर रिलीजर:-ये ग्रीन पटाखे जलने के साथ ही जल पैदा करते हैं, जिससे सल्फर और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें इन्हीं में घुल जाती हैं.
2. स्टार क्रेकर:- सामान्य पटाखों से कम सल्फर व नाइट्रोजन पैदा करते हैं. इनमें एल्यूमिनियम का इस्तेमाल कम से कम किया जाता है.
3.अरोमा क्रेकर:-ऐसे पटाखे जो प्रदूषण कम करते है साथ ही खुशबू भी पैदा करते हैं. ये पटाखे अभी बाजार में नहीं आये हैं, क्योंकि यह टेस्टिंग अवस्था में ही हैं और जब तक सरकार इन्हें प्रमाणित
नहीं करेगी, तब तक ये बाजार में उपलब्ध नहीं हो सकते हैं.
ग्रीन पटाखे ऐसे पटाखे होते है, जिनमें ऊष्मा उत्सर्जन ओर शोर कम हो एवं इस तरह के पटाखों से निकलने वाला पीएम 2.5 भी कम हो. पहले और अब भी जो पटाखे उपयोग होते हैं उनमें लेड, बेरियमऔर मरकरी अधिक मात्रा में होता है, जिनके कारण जो धुंआ निकलता है, उसमें पीएम 2.5 का स्तर इतना खतरनाक होता है कि अगर वो हमारे फेफड़ों में चला जाए तो चिकित्सक भी उसको नहीं निकाल सकते.
यही कारण है कि गभग 20 प्रसिद्ध चिकित्सकों ने माननीय उच्चतम् न्यायालय को पत्र लिख कर इसकी सूचना दी है,जिस पर कार्यवाही करते हुए माननीय उच्चतम् न्यायालय ने ग्रीन पटाखे के सुझाव पर अपनी सहमति दी एवं कुछ अन्य शर्तों के साथ सरकार को पटाखे संबंधी आदेश दिया है जैसे – पटाखे केवल सामूहिक जगह पर ही जला सकते है न कि घर पर,दीवाली को पटाखे केवल 8 से 10 बजे रात के मध्य ही छोड़ सकते हैं, उस क्षेत्र के एस एच ओ को सूचित करना पड़ेगा और लाइसेंस धारक ही पटाखे बेच सकते हैं.