जिउतिया कल, बलिया के बाजारों में चहल-पहल

पितृपक्ष के दौरान अष्टमी तिथि को जीवित पुत्रिका व्रत किया जाता है, जो रविवार, 22 सितंबर को है. संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जानेवाला जिउतिया सप्तमी को नहाय-खाय से शुरू होता है.

अष्टमी को निर्जला व्रत और नवमी को पारण का विधान है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने तथा कथा सुनने से माता को संतान का वियोग नहीं होता. देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है.
अष्टमी को प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है.

इसके लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करना चाहिए. मिट्टी व गोबर से सियारिन व चील की प्रतिमा बनायी जाती है. पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा श्रद्धा से सुननी चाहिए.

इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है. अष्टमी तिथि 21 सितंबर को रात्रि 08:21 में प्रारंभ होगी तथा 22 सितंबर को रात्रि 07:50 को समाप्त होगी.

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