धरातल पर छोटे किसान योजना के लाभ से वंचित
दलालों के चंगुल से मुक्त नहीं यह योजना
बैरिया (बलिया)। सरकार द्वारा चलाई जा रही गेंहू क्रय योजना जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों के दावे और बयानों में जितना अच्छा लग रहा है, धरातल पर वैसा कुछ महसूस नहीं किया जा रहा है. लाख कवायदों के बावजूद यह योजना भ्रष्टाचार के दायरे से बाहर नहीं रह पाया है. कृषि मजदूर, लघु व सीमान्त किसानों का बड़ा समूह इस योजना के लाभ से वंचित है. ऐसे लोग या तो अपने गेंहू को संचित कर भविष्य में रेट ठीक होने की प्रतीक्षा करेंगे, या फिर विवशता में खुले बाजार में या गांव में आने वाले खरीददारों के हाथों 1350₹ कुन्तल से 1400₹ कुन्तल बेच रहे हैं. अधिकांश यही गेंहू कूटरचित प्रक्रिया से बिचौलियों के माध्यम से क्रय केन्द्रों पर बेचा जा रहा है.
हाट गोदाम रानीगंज (करमानपुर) में भी क्रयकेन्द्र है. बकौल हाट निरीक्षक नीरज मिश्र के शुक्रवार 4 मई को दोपहर तक 72 किसानों से लगभग 6 हजार कुन्तल गेंहू की खरीद हुई है. जिसमे सबसे ज्यादा गेंहू लगभग 150 कुन्तल अवध बिहारी सिंह नवकाटोला का है. अधिकांश किसान 50 कुन्तल से 150 कुन्तल तक गेहूँ क्रय केन्द्र लाने वाले किसान अधिक हैं.
20 कुन्तल से कम गेंहू लाने वाले एक मात्र किसान हैं अजय सिंह कोडरहां के, जो 13.5 कुन्तल गेंहू लाए है. यह सब क्रय रजिस्टर में दर्ज है. 50 कुन्तल से कम गेंहू लाने वालों में मात्र चार किसान हैं.
यहां यह गौर तलब है कि बैरिया क्षेत्र में सरकारी आकड़ों के अनुसार 40 प्रतिशत सीमान्त किसान, 25 प्रतिशत लघु किसान 20 प्रतिशत के लगभग बड़े किसान हैं, जिन्हें सरकारी खजाने में लगान जमा करना पड़ता है. यहां पांच कुन्तल से 25 कुन्तल गेंहू का उत्पादन करने वाले किसानों की संख्या सबसे अधिक है. यहां कृषि मजदूरी पर आधारित जीवन यापन करने वालों की संख्या सर्वाधिक है. जो पांच हजार से 12 हजार रूपया प्रति बीघा खेत एक साल के लिए काश्तकारों से लेते हैं. खेती करते है. किसान को लगान देने, खेती का लागत निकालने के बाद जो बचता है. उसी में अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे कृषि मजदूर/ शौकीन कृषक जिनके पास अपना खेत नही पर दूसरों का खेत लगान पर लेकर खेती करते हैं के लिए कोई योजना नहीं है.
यूँ चढ़ती भ्रष्टाचार की बेलें
करमानपुर निवासी युवा कृषक अजय सिंह बताते हैं कि बहुत अच्छी योजना है कि किसान अपने नजदीकी क्रय केन्द्र पर गेंहू बेंच सकता है. ब्लाक व पंचायत का बंधन नहीं है. यह अच्छी योजना है. लेकिन चांदपुर का किसान अपने गांव से अधिक से अधिक दो किमी की दूरी पर चलने वाले लालगंज गोदाम पे गेंहू न देकर आठ किमी दूर लालगंज क्रय केन्द्र के सामने से गुजरते हुए रानीगज केन्द्र पर बेचता है, तो क्या यह भ्रष्टाचार का संकेत नहीं है? सबसे बड़ी बात पांच कुन्तल, दस कुन्तल व 20 कुन्तल वाले उत्पादक किसानों को अपना गेंहू बेचने का मौका क्यों नहीं मिल रहा? जबकि इलाके में उनकी ही संख्या सर्वाधिक है.
छोटे किसानों की बात
क्रय केन्द्र के इर्द-गिर्द के किसानों की मानें तो सरकार की यह महात्वाकांक्षी योजना कुछ कोटेदारों, राजनीतिक दलों के लोगों, कुछ दलाल किस्म के लोगों के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गई है. जिनके लोग गांवों से ही सस्ते दरों पर खरीद कर ऐसे लोगों के हाथों 1400₹ से 1550 ₹ कुन्तल की दर से देख लेते हैं. बाकी सब सेट है. संकेत भी दिए कि गेंहू का मूल्य किसान के खाते में गया और बहुत जरूरी जैसे घर में शादी, बच्चों की पढाई या फिर इलाज की बात नहीं हुई तो वह पैसा बैंक में टिकेगा. यहां तो आज धन आया और आज ही नही तो कल पूरा पैसा निकल कर फिर नई खरीददारी में लग रहा है. जांच किया जा सकता है.
क्रय केन्द्र भ्रष्टाचार से वंचित नहीं हैं और छोटे किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. यह महात्वाकांक्षी योजना कुछ लोगों के जबड़े में है, जिनसे निकाल पाना आसान नहीं. क्रयकेन्द्र के आस पास जुटे किसानों की मानें तो जितना समय बचा है उसमे यह अलग-अलग तिथि निर्धारित हो जाय कि इस तारीख को 10 से 20 कुन्तल वाले किसानों का क्रय होगा, फिर 21 से पचास कुन्तल. इस प्रकार खरीद गेहूँ की मात्रा बढाई जाय तो लाभ पाने वाले किसानो की संख्या बढ़ेगी, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश घटेगी. लगान पर खेती करने वाले किसानों के गेंहू के क्रय की व्यवस्था हो तब इस योजना का लाभ धरातल पर दिखेगा. ऐसा किसानों का मानना है.