अब तो गंगा मइया के भरोसे ही हैं द्वाबा के तटवर्ती ग्रामीण

बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र
  • पारकोपाइन पद्धति और ड्रेजिंग दोनों कार्य लूट खसोट का जरिया – विनोद सिंह
  • ड्रेजिंग कार्य तो 3 साल की परियोजना है, आप तीन हफ्ते पहले एक्शन में आए – पंकज तिवारी
  • डेंजर जोन के लिए कोई तैयारी नहीं, फिर गंगा मचली तो क्या होगा – मुन्ना पांडे

अब गंगा मैया पर ही भरोसा बचा है. बैरिया विधानसभा क्षेत्र के गंगा तटवर्ती गांव की डेढ़ लाख आबादी सहमी हुई है. बाढ़ कटान से सुरक्षा के लिए गंगा की धारा को मोड़ने के लिए चल रहे ड्रेसिंग कार्य और पारकोपाइन पद्धति से हो रहे कार्य पर प्रभावित ग्राम वासियों को उतना भरोसा नहीं, जितने दंभ भरा जा रहा है.

बताते चलें कि गंगा के पानी में रफ्ता रफ्ता बढ़ाव देखा जा रहा है. पिछले साल 800 मीटर से अधिक लंबाई में दुबे छपरा रिंग बांध गंगा के तेज लहरों में ध्वस्त होकर बिखर गया था. भीषण तबाही के मंजर का अनुभव कर चुके गंगा तटवर्ती गांवों के लोगों की लगातार हो रही बरसात व बाढ़ कटान का समय करीब आता देख धड़कने बढ़ रही हैं. माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं.

यद्यपि के दुबे छपरा रिंग बांध वाले स्थल पर गोपालपुर दुबेछपरा और उदई छपरा गांव के सामने साढ़े सात करोड़ की लागत से पारकोपाइन पद्धति, 9 करोड़ 93 लाख की लागत से गंगा पार नौरंगा में पारकोपाइन पद्धति से काम किया जा रहा है बांध बनाकर बाढ़ कटान रोधी कार्य एवं 30 करोड़ 54 लाख की लागत से गंगापुर से नौरंगा तक गंगा की धारा को मोड़ने के लिए ड्रेजिंग कार्य चल रहा है. यह कार्य दो-तीन सप्ताह पहले से ही शुरू हुआ है. तटवासी मानते है कि यह कार्य काफी विलंब से शुरू हुआ. ग्रामीण लूट खसोट की गुंजाइश बनाने का आरोप लगा रहे हैं.

तट वासियों को इन कार्यों पर भरोसा कम है. उनका मानना है कि अगर यही काम अक्टूबर-नवंबर माह में शुरू हुआ होता तो शायद राहत मिलती. अब तो इधर काम शुरू हुआ, उधर बरसात भी चालू है, ऐसे में कार्य प्रभावित हो रहा है. जिस उत्साह के साथ इन कार्यों का राजनैतिक और अधिकारी प्रचार प्रसार उत्साह के साथ किया जा रहा है, विश्वास में यह उतना खरा उतरने वाला नहीं है.

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इंटक जिलाध्यक्ष विनोद सिंह का कहना है कि पारकोपाइन पद्धति और ड्रेजिंग दोनों कार्य लूट खसोट का शिकार है. समय से पूरा हो पाना बहुत कठिन है. गोपालपुर निवासी पंकज तिवारी ने बताया कि ड्रेजिंग कार्य तो 3 साल की परियोजना है. जो दो-तीन सप्ताह पहले शुरू किया गया. कितना काम हो पाएगा? कैसे गांव सुरक्षित होंगे? गोपालपुर में चल रहा पारकोपाइन पद्धति का कार्य भी भ्रष्टाचार का शिकार है.

ग्रामीणों द्वारा की जाने वाली शिकायतों पर तीन बार उच्चाधिकारी आकर यह निर्देश दे चुके हैं, लेकिन काम बस मनमानी ढंग से चल रहा है. ऊपर से होने वाली बरसात भी बाधा है. उधर, प्रसाद छपरा निवासी मुन्ना पांडेय ने बताया कि हो सकता है पारकोपाइन पद्धति से गोपालपुर, दुबेछपरा, उदई छपरा गांव का कुछ बचाव हो जाए, लेकिन खतरा तो बना रहेगा. क्योंकि दुबे छपरा रिंग बंधे के बाहर केहरपुर में गंगा के बाढ़ व कटान से बचाव की कोई परियोजना नहीं है. गंगा अगर बढ़ीं तो केहरपुर, सुघर छपरा गांव को तबाह करती सीधे NH-31 पर दबाव बनाएगी. साथ ही दुबे छपरा रिंग बंधा पर पश्चिम दिशा से दबाव बना देंगी. जैसा कि पिछले साल हुआ था.

मुन्ना पांडे ने बताया कि केहरपुर, सुघरछपरा के ग्रामीणों के धरना अनशन प्रदर्शन चक्का जाम के बाद अधीक्षण अभियंता बाढ़ खंड ने और जिलाधिकारी बलिया ने केहरपुर में बाढ़ कटान सुरक्षा के लिए 12 करोड़ 94 लाख की परियोजना बनाकर शासन के यहां दो बार प्रस्ताव भेजा. दोनों बार प्रस्ताव खारिज कर दिया गया. यहां के लिए तो कोई योजना ही नहीं है. जबकि यही डेंजर जोन है, जहां से घुसने वाली गंगा लगभग डेढ़ लाख की आबादी को प्रभावित करेंगी. मुन्ना पांडे ने कहा कि अब तो हम लोगों को मां गंगा का ही भरोसा है. नहीं तो पिछले साल की तरह गंगा मचली तो फिर तबाही के मंजर का इंतजार करने के सिवाय चारा क्या है?

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