कुछ अंग्रेजी मानसिकता के लोग यह कह कर भ्रमित कर रहे हैं कि अब बिना अंग्रेजी जाने भारतीयों का कोई भविष्य नहीं है. यह कहना मूर्खता पूर्ण व हास्यास्पद है तथा यथार्थ इसके विपरीत है. हिंदी विश्व की सबसे लोकप्रिय व ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. यह बात 2015 के एक शोध विवरण से सामने आई है.
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अभी तक चीन की भाषा मंदारिन को पहले स्थान पर माना जाता था, परंतु कार्पोरेशन बैंक में उप महाप्रबंधक टाउन ऑफिशियल लैंग्वेज इंप्लीमेंटेशन कमेटी के सदस्य सचिव भाषाई विशेषज्ञ जयंती प्रसाद नौटियाल के द्वारा किए गए भाषा संबंधित अनुसंधान के अनुसार एक अरब बीस करोड़ बोलने वालों के साथ हिंदी पहले स्थान पर है. जबकि चीन की भाषा मंदारिन एक अरब पांच करोड़ बोलने वालों के साथ दूसरे स्थान पर है. हिंदी भाषा के प्रथम स्थान पर आने के कारणों का खुलासा करते हुए श्री नौटियाल ने अपने शोध विवरण में लिखा है कि हिंदी न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में लोकप्रिय होती जा रही है. इसकी लोकप्रियता का प्रभामंडल केवल भारत या भारत के पड़ोसी देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सुदूर कैरेबियाई राष्ट्र तक फैला है.
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लोक कल्याण सेतु में प्रकाशित इंटरव्यू में श्री नोटियाल ने कहा है कि मारीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में यह राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है. इतना ही नहीं इंडोनेशिया, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अफ्रिका और खाड़ी के देशों में हिंदी बहुत लोकप्रिय है. विश्व के 150 से अधिक देशों में हिंदी शिक्षण एवं प्रशिक्षण के अनेक पाठ्यक्रम शुरू हो गए हैं. यह इस बात का प्रमाण है कि विश्व में हिंदी के प्रति अधिक झुकाव है. धार्मिक स्थलों पर्यटन स्थलों पर तो हिंदी पहले से ही लोकप्रिय थी. अब हिंदी उद्योग व्यापार शिक्षा एवं मनोरंजन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान ले चुकी है. भारत की युवा पीढ़ी भाषा के मामले में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाती है. इसलिए यह दृष्टिकोण हिंदी की लोकप्रियता बढ़ाने में और भी अधिक सहायक होगा. आने वाले समय में युवा भारत विश्व की महाशक्ति बनने जा रहा है. इसलिए हिंदी के प्रति विश्वस्तर पर लोकप्रियता में बढ़ोतरी हो रही है.
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विश्व की 18 प्रतिशत जनता हिंदी जानती है, इसलिए अनेक देश अपने प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हिंदी को स्थान दे रहे हैं. निकट भविष्य में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा के रूप में भी महत्त्व मिलेगा और यह विश्वभाषा के पद पर भी आसीन होगी.
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एक प्रांत का दूसरे प्रांत के बीच सबंध जोड़ने के लिए एक सर्वसामान्य भाषा की आवश्यक्ता है. ऐसी भाषा तो हिंदी हिंदुस्तानी ही हो सकती है. महात्मा गांधी जानते थे कि देश पूरी तरह तभी स्वतंत्र हो सकता है, जब वह मानसिक रूप से भी गुलामी को उखाड़ फेंके. इसके लिए भारत वासियों को राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करना बहुत आवश्यक है. गांधीजी खुद भी इसका पालन करते थे और देशवासियों से भी कहते थे. उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी की ज्ञान की आवश्यकता के भ्रम में हमें गुलाम बना दिया है. यह मेरा निश्चित मत है कि अंग्रेजी शिक्षा ने शिक्षित भारतीयों को निर्बल और शक्तिहीन बना दिया है.
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अंग्रेजी सीखने के लिए हमारा जो विचार है, उसे खुद मुक्त होकर और समाज को मुक्त कर के हम भारतीय जनता की एक बड़ी से बड़ी सेवा कर सकते हैं. मराठी, बंगाली, सिंधी और गुजराती लोगों के लिए तो यह बड़ा आसान है, कुछ महीनों में वे हिंदी पर अच्छा काबू कर के अपना कामकाज कर सकते हैं. गांधी जी ने कहा था कि मुझे पक्का विश्वास है कि किसी दिन ग्रामीण भाई-बहन गंभीर भाव से हिंदी का अभ्यास करने लग जाएंगे. आज अंग्रेजी पर प्रभुत्व प्राप्त करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, उसका आठवां हिस्सा भी हिंदी सीखने में करें तो बाकी हिंदुस्तान के जो दरवाजे आज उनके लिए बंद है. वह खुल जाएं और वह इस तरह हमारे साथ एक हो जाएं जैसे पहले कभी न थी. हम किसी भी हालत में प्रांतीय भाषाओं को नुकसान पहुंचाना या मिटाना नहीं चाहते. हमारा मतलब तो सिर्फ ये है कि विभिन्न प्रांतों के पारस्परिक संबंध के लिए हम हिंदी भाषा सीखे, ऐसा कहने से हिंदी के प्रति हमारा कोई पक्षपात प्रकट नहीं होता. हिंदी को हम राजभाषा मानते हैं. वह राष्ट्रीय होने के लायक है. राष्ट्रीय बन सकती है, जिसे अधिक संख्या में लोग जानते बोलते हैं और जो सीखने में सुगम हो. अंग्रेजी राष्ट्रभाषा कभी नहीं बन सकती.
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