कृष्ण-सुदामा के भावुक मिलन को देख कर श्रोताओं के आंखों से छलके आंसू

Tears welled up in the eyes of the audience after watching the emotional union of Krishna and Sudama.
कृष्ण-सुदामा के भावुक मिलन को देख कर श्रोताओं के आंखों से छलके आंसू

 

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के के पाठक, बलिया

कृष्ण और सुदामा के मिलन की कथा स्टेशन मालगोदाम रोड पर स्थित शिव साइन मंदिर के निकट चल रहे भागवत कथा में जीवंत हो गई. कृष्ण- और सुदामा के मिलन का मार्मिक मंचन देख श्रद्धालुओं के आखों से आंसू छलकने लगे.

Tears welled up in the eyes of the audience after watching the emotional union of Krishna and Sudama.

कथामर्मज्ञ पंडित कन्हैया पाण्डेय ने श्रीमद्भागवत कथा के अन्तिम सातवें दिन कृष्ण और सुदामा के मिलन की कथा सुनाया. कथा में श्रीकृष्ण सुदामा से कैसे गले मिले, उन्हें पैरों को धोए, पैरों से कांटे निकाले, सुदामा की पोटली से मिले अन्न को दो मुट्ठी खाए, तीसरे बार खाने जा रहे थे तभी रुक्मिणी ने प्रभु का हाथ रोक लिया. यह मार्मिक मंचन देखकर श्रोताओं के आंखों से आंसू छलक छलक उठे.

कथा मर्मज्ञ श्री कन्हैया पांडेय ने कहा कि एक बार श्रापित चना को सुदामा ने अपने परम मित्र भगवान श्रीकृष्ण को इसलिए नहीं खाने दिया कि उसे खाने से उनके पास दरिद्रता आ जाएगी और यह जानते हुए भी उन्होंने वह श्रापित चना खुद ही खा लिया. सुदामा ने सोचा कि मैं तो ब्राह्मण हूं और मेरी जीविका भिक्षा से भी चल जाएगी और इस तरह सुदामा को निर्धनता ने घेर लिया था.

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बताया कि प्रभु तो अंतर्यामी है वह सब जानते हैं. एक बार उन्होंने साधु के रूप के रूप में भिक्षा मांगने सुदामा के द्वार पर पहुंच गए.

उस समय उनकी पत्नी सुशीला और बच्चे घर में थे. सुशीला ने बताया कि हम तो खुद निर्धन है और कई दिनों से भूखे हैं हम भला आपको क्या दे सकते हैं.

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इस पर ब्राह्मण रूपी श्रीकृष्णा उनके मन में प्रेरणा जगाए. कहा कि हमने तो सुना है कि सुदामा का मित्र द्वारकाधीश है और द्वारकाधीश का मित्र इतना निर्धन कैसे हो सकता है. जब सुदामा घर पहुंचे तो उनकी पत्नी ने जिद करके और पड़ोसी से कुछ अन्न मांगकर द्वारिकाधीश के यहाँ भेजा.

पत्नी सुशीला के काफी कहने पर सुदामा संकोच करते हुए द्वारिका के महल पर पहुँच गए. द्वारपालों ने जैसे ही द्वारिकाधीश को किसी सुदामा ब्राह्मण के आने की सूचना दी तो प्रभु श्रीकृष्ण नंगे पैरो दौड़े चले आए. यही से श्रीकृष्ण सुदामा के मिलन का मंचन शुरू हुआ.

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पंडित पाण्डेय ने श्रापित से गिरगिट बने राजा समेत कई कथाएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

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