न कविता न कहानी, ‘नारी जीवन’ को मिला पुरस्कार

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  • दिव्या पाण्डेय

बात उन दिनों की है जब मैंने बी.एड. में एडमिशन लिया था. वहां पर हर वर्ग और हर उम्र के साथी थे. कुछ तो ऐसे थे जो पहले से ही किसी न किसी विद्यालय में शिक्षण का कार्य कर रहे थे. हर छात्र के मन में शिक्षक बनने की ललक थी और सभी छात्र एक से बढ़कर एक महारथी.
हमारे महाविद्यालय के शिक्षक गण भी सोने पर सुहागा. उन्होंने हमारी कक्षा को कुछ समूह में बाँट रखा था. वे कक्षा में समय-समय पर कुछ प्रतियोगिताएं करवाते रहते थे. उन में हिस्सा लेना भी अनिवार्य होता था क्योंकि उसके कुछ अंक भी जुड़ते थे. शिक्षण की पढ़ाई हो, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा और साथ में सवाल अंकों का तो कौन पीछे रहे.

शिक्षक दिवस के अवसर पर सभी समूह कुछ मनोरंजक कार्यक्रम करने की योजना बना रहे थे. अचानक कुछ शिक्षक कक्षा में आये और लो जी आ गई आफत. उन्होंने घोषणा कर दी कि भोजनावकाश के बाद कविता-पाठ की प्रतियोगिता है. हिस्सा लेना अनिवार्य है क्योंकि अंक जुड़ेंगे.
बचपन से मेरी रुचि लेखन में तो रही है लेकिन कविता कभी नहीं लिखी थी. स्वभाव से शर्मीली होने के कारण प्रस्तुतिकरण में भी ज़्यादा हिस्सा नहीं लिया था.
मेरे हाथ-पैर फूल गए.
धड़कन बढ़ गई थी, बहाना बनाने का भी सोचा लेकिन दाल गलनी नहीं थी तो शिक्षकों तक जाने की हिम्मत नहीं पड़ी.
भोजन का अवकाश समाप्त हुआ और प्रतियोगिता शुरू हो गई.

कुछ साथियों ने देश-प्रेम या वीर-रस की कविता सुनाई तो कुछ ने शिक्षकों या शिक्षक दिवस पर. कुछ ने हास्य-व्यंग्य को अपनी बात रखने का माध्यम बनाया.
मेरा भी नाम पुकारा गया. दिल इतनी तेज धड़कने लगा कि अगर कोई चिकित्सक जाँच करता तो सीधे अस्पताल में ही भर्ती होना पड़ता. पेट में चूहे भी कूद रहे थे क्योंकि खाना खाने का समय तो टूटी-फूटी कविता लिखने में बिताया था. लड़खड़ाते-घबराते सामने पहुँची. माइक ठीक करने से पहले इष्ट देव को याद किया. अपना परिचय दिया और कविता का शीर्षक बताया – ‘नारी जीवन’.
इसके बाद, मेरे कान में स्वयं के स्वर सुनाई देने बन्द हो गए. मैंने अपनी कविता सुनाई या नहीं इसका पता मुझे साथियों/दर्शकों की तालियों से ही हुआ. मैं समझ गई कि मेरा मन रखने के लिए या कविता समाप्त हो जाने के संकेत के तौर पर तालियाँ बज गई हैं.

बाकी साथियों ने भी अपनी-अपनी कविता सुनाई और अब बारी आई पुरस्कार वितरण की. वरिष्ठ शिक्षक ने कहा कि शिक्षक दिवस पाँच तारीख को होता है इसलिए 5 पुरस्कार दिए जाएंगे.
ऐसी प्रतियोगिताओं में, अक्सर दर्शकों को, थोड़े उन्नीस-बीस के साथ विजेताओं का अनुमान लग ही जाता है. पांचवें, चौथे और तीसरे विजेता के नाम के बाद तो पहले विजेता के नाम के बारे में लोगों को संशय रहा भी नहीं. नाम भी वही पुकारा गया जो अधिकतर जनता ने सोचा था.

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कहानी में ट्विस्ट अभी बाकी था. जो शिक्षक विजेता का नाम पुकार रहे थे वे लगातार दर्शकों की राय भी पूछते जा रहे थे. कुछ हो-हो की आवाज़ों और तालियों के बीच सभी लोग पुरस्कार ले कर जा रहे थे. सभी लोग विजेता का नाम चिल्ला रहे थे तो उन्होंने दूसरे विजेता का नाम बताये बिना प्रथम पुरस्कार पहले घोषित किया.

एकाएक मुझे लगा कि मुझे अस्पताल ले जाना होगा क्योंकि मेरा दिल बैठ गया था, आँखे खुली कि खुली रह गई थीं लेकिन इस बार कान सुन पा रहे थे और द्वितीय पुरस्कार के लिए मुझे अपना नाम सुनाई दिया.

स्टेज तक की चाल अब भी पहले जैसी ही थी लेकिन पुरस्कार ग्रहण करते हुए मन में अत्यंत प्रसन्न्ता महसूस कर रही थी. “नारी जीवन” ने पुरस्कार जो पाया.

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DISCLAIMER : ये लेखक के निहायत ही निजी विचार हैं. लेख में व्यक्त विचार से ballialive.in की सहमति या असहमति कतई जरूरी नहीं है. लेख से जुड़े सभी दावों या आपत्तियों के लिए सिर्फ और सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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