लोक आस्था का महापर्व छठ. न कोई पंडित ना यजमान. मंत्रोच्चार की भी जरूरत नहीं, सिर्फ आस्था और शुचिता यानि शुद्धता तन की मन की. राजा रंक का कोई भेदभाव नहीं, आम वो खास का भी कोई वितंडा नहीं, सम्प्रदाय का कोई बंधन नहीं, प्राकृतिक उपादानों से सूर्योपासना का त्योहार यानि प्रकृति से सीधा संबंध.