- रंग लाई सिकंदरपुर की बिटिया की मशक्कत
- गिरमिटिया भोजपुरी महोत्सव में हुआ धमाल
कोलकाता के ठाकुरबाड़ी स्थित रथींद्र मंच पर रविवार को गिरमिटिया भोजपुरी महोत्सव का आयोजन किया गया. इस दौरान देश-विदेश के मेहमानों ने एक-दूसरे से मिल कर अपने विचार साझा किये. गिरमिटिया फाउंडेशन ने इस महोत्सव का आयोजन किया था. आपको यह जान कर हैरत होगी कि गिरमिटिया फाउंडेशन की मुख्य कर्ता धर्ता सिकंदरपुर की ही बिटिया स्वास्ति है.
आइए पहले बताते हैं कि कौन है स्वास्ति
स्वास्ति बोले भीखा, फिलहाल स्विट्जरलैंड के जिनेवा में रहती हैं. हालांकि उनका जन्म मॉरीशस में हुआ था. उन्हें यह तो पता था कि वह मूल रूप से भारतीय हैं, लेकिन भारत में कहां की रहनेवाली हैं, यह उन्हें नहीं पता था. विदेशों में बसे भारतीय जब किसी त्योहार को मनाते थे और अपनी भाषा में बातें करते थे तो स्वास्ति खुद को उनसे कटा महसूस करती थीं.
उनके पूर्वज भारत से मॉरीशस आये थे, जिन्हें गिरमिटिया के नाम से जाना जाता था. आखिरकार उन्होंने अपनी जड़ों को तलाशने की ठानी. मॉरीशस के रिकॉर्ड को खंगालने पर पता चला कि 1876 में उनका एक पूर्वज भारत से आया था.
रिकॉर्ड में 14 वर्षीय उक्त पूर्वज का नाम ‘भीखा’ लिखा था. पता भारत के आजमगढ़ का एक गांव था. इसके बाद स्वास्ति भारत के आजमगढ़ पहुंचीं और स्थानीय लोगों की मदद से वह डीएम के पास पहुंच गयीं. डीएम ने नक्शा दिखाकर उन्हें बताया कि उक्त गांव अब बलिया में है.
आखिरकार वह बलिया के सिंकदरपुर ब्लॉक स्थित अपने गांव, देवहा पहुंच गयीं. स्वास्ति कहती हैं कि अपनी मूल जड़ की मिट्टी को देखकर जो खुशी उन्हें हुई वह पहले कभी नहीं हुई थी. अब स्वास्ति न केवल अपने गांव बल्कि भोजपुरी को भी बढ़ावा देने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं. उन्होंने गिरमिटिया फाउंडेशन की स्थापना की. भारत में दिलीप कुमार गिरि के साथ मिलकर वह इस काम में जुट गयी हैं.
इसीके तहत 15 दिसंबर को फाउंडेशन की ओर से गिरमिटिया भोजपुरी महोत्सव और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी स्थित रथींद्र मंच में किया गया. गिरमिटिया फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस महोत्सव में ‘एक करुण कथा’ नामक लघु फिल्म प्रदर्शित की गयी.
आपको बता दें कि अंग्रेजों के शासनकाल में बेहतर जिंदगी जीने का सपना दिखा कर हिंदुस्तान के लोगों को एक एग्रीमेंट के जरिये गन्ना की खेती के उद्देश्य से भारत से विदेश ले जाया गया था. एग्रीमेंट का सही उच्चारण नहीं कर पाने वाले उसे गिरमिंट कहते थे. बाद में इस एग्रीमेंट के तहत विदेश जानेवाले लोगों को गिरमिटिया कहा जाने लागा.
गिरमिटिया मजदूर मॉरिशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद व टोबैगो में भी पाये जाते हैं. उनमें ज्यादातर लोग पूर्वांचल के थे. लिहाजा उनकी भाषा भोजपुरी थी. अब उन देशों में उनकी चौथी और पांचवी पीढ़ी है. समय के अंतराल में लोग अपनी जड़ों से कट भले ही गये थे, लेकिन अब लोग वापस अपनी माटी का रुख कर रहे हैं.
इस काम में गिरमिटिया फाउंडेशन लोगों की मदद तो कर ही रहा है, साथ में भोजपुरी के प्रचार प्रसार और भोजपुरिया साहित्य-संस्कृति के विकास में अपना योगदान दे रहा है. इसका प्रमाण रथींद्र मंच में आयोजित महोत्सव में देखने को मिला, जहां लोग एक दूसरे के साथ संवाद के साथ भोजपुरी गीतों पर झूम रहे थे.
कार्यक्रम में मॉरिशस से आयीं स्वास्ति बोले भीखा, अशोक सिंह, जेपी सिंह, गंगा टीवी के क्रिएटिव हेड राजीव मिश्रा, रमा शंकर गिरि, महुआ टीवी के अजित आनंद और धर्मेंद्र विजय चौबे मौजूद थे.
वहीं नीदरलैंड से आये राजमोहन, भजन व गजल गायक सौरभ गिरि, लोक गायिका श्रद्धा व समवृद्धि के अलावा तबला वादक अंजनि सिंह जैसी हस्तियां भी नजर आयीं. कार्यक्रम का संचालन विजय बहादुर सिंह ने किया. स्वास्ति कहती हैं कि वह अपने गांव सिकंदरपुर के देवहा और अन्यत्र भी टेक्निकल स्कूल खोलना चाहती हैं.