बांसडीह पहुंचे सेनानियों का एसडीएम और सीओ ने किया अभिनंदन, जानिए क्यों खास है आज का दिन

बांसडीह,बलिया. 18 अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर परंपरा के अनुसार बुधवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामविचार पांडेय के नेतृत्व में सेनानियों और उनके परिजनों का एक प्रतिनिधिमंडल बांसडीह पहुंचा. प्रशासन की तरफ से SDM बांसडीह दुष्यंत कुमार मौर्य, CO प्रीति त्रिपाठी ने उनका अभिनन्दन किया. शहीद रामदहीन ओझा स्मारक समिति के संयोजक प्रतुल कुमार ओझा ने भी सेनानियों एवं उत्तराधिकारियों के दल का माल्यार्पण कर स्वागत किया. शहीद रामदहीन सप्तर्षि द्वार पर पुष्प अर्पित करने के पश्चात बांसडीह डाकबंगला स्थित शहीद पंडित रामदहीन ओझा की प्रतिमा पर माल्यापर्ण भी किया गया.


इस मौके पर बांसडीह पहुंचे स्वतंत्रता सेनानी रामविचार पांडेय ने कहा कि आज सेनानियों, शहीदों के द्वारा देश की आजादी हेतु दिये गये बलिदान से प्रेरणा लेने की जगह वर्तमान युवा पीढ़ी उनको भुलाती जा रही है जो बिल्कुल सही नहीं है.


उपजिलाधिकारी बांसडीह दुष्यंत कुमार मौर्य ने कहा कि यह देश सेनानियों के ऋण से उऋण नहीं हो सकता. आज हम जो खुली हवा में सांस ले रहे है यह शहीद सेनानियों के बलिदान और उनके संघर्ष से सम्भव हो सका है. CO बांसडीह प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि देश की आजादी में बलिया की अहम भूमिका रही जिसे भूला नहीं जा सकता, ‘सौभाग्य है कि मुझे बांसडीह का चार्ज मिला है, बागी धरती को सलाम करती हूँ’

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आज के दिन का इतिहास गौरवशाली है. 13 से 18 अगस्त 1942 के बीच जिले के सभी डाकघर, रेलवे स्टेशन लूट लिए गए. वहीं सहतवार और बांसडीह थाने में आग लगा दी गई. नरहीं के थाने को भी लूट लिया गया. शुरू में अधिकारियों ने आंदोलनकारियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन इससे आजादी के मतवालों का गुस्सा भड़क उठा.

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बलिया के आक्रोश की बात हो तो 18 अगस्त को रसड़ा और बैरिया थाने पर हुई घटनाओं ने बड़ी भूमिका निभाई. बैरिया थाने पर नौजवानों के जत्थों ने तिरंगा फहराने की तत्कालीन भारतीय थानेदार से अनुमति मांगी लेकिन उसने अनुमति नहीं दी. बाद में उसने षड्यंत्र के तहत अनुमति दी.नारायण गढ़ निवासी कौशल किशोर सिंह नामक बीस वर्षीय युवा तिरंगा फहराने के लिए नौजवानों के साथ आगे बढ़ गया लेकिन उन्हें पुलिस ने गोली मार दी.


कौशल किशोर के रक्त से रंगा वह तिरंगा बलिया के अभिलेखागार में रखा गया उनकी शहादत से गोलियों की बौछार के बीच तीन तरफ से थाने को घेर कर खड़ी भीड़ का गुस्सा और भड़क गया. गोलियां चलती रहीं, देखते ही देखते बाइस लोग यहां शहीद हो गए, किंतु लोगों ने थाने पर तिरंगा फहराकर ही दम लिया.


बैरिया थाने के एक तरफ पानी भरा हुआ था. मूसलाधार बारिश हो रही थी. पूरे इलाके में जिसने भी जहाँ सुना कि थाने पर इतने लोग वीरगति को प्राप्त हो गए हैं, वह थाने की ओर बढ़ चले. लोगों ने इसके बावजूद थाने में मौजूद पुलिसवालों के परिवारों से बदसलूकी नहीं की.
यहां का गौरवशाली इतिहास नई पीढ़ी को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा. इस अवसर पर शिवकुमार कौशिकेय, सुनील कुमार सिंह, गंगासागर सिंह,जैनेंद्र पांडेय,कौशल गुप्ता, नरेंद्र सिंह, जाकिर हुसैन,सोनम बिंद,आशीष तिवारी,कन्हैया प्रसाद,नरेंद्र ओझा,पूर्व चेयमैन सुनील सिंह बबलू,पूर्व प्रधान अरुण सिंह,कन्हैया प्रसाद,सहित स्थानीय लोग उपस्थित रहे. प्रतुल कुमार ओझा ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया.


(बांसडीह से रविशंकर पांडेय की रिपोर्ट)

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