
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए. पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं. यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. इसके पिछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाए तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है.
पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है.
ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है. जब जातक सफलता के बिल्कुल नज़दीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं. इसलिए पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है.
किस दिन करें पूर्वज़ों का श्राद्ध
वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिए पिंड दान या श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं, लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है. पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वज़ों का श्राद्ध करें इसके लिए शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज़, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिए. यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है, इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिए कहा जाता है. समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है. पूर्णिमा का श्राद्ध नाना-नानी के लिए निर्धारित है. इसके अतिरिक्त कुछ विशेष नियम भी हैं – सधवा स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध नवमी को होगा. कोई पूर्वज संन्यासी हो गया हो तो उसका द्वादशी को होगा.
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श्राद्ध की सही तिथियां
इस बार पितृपक्ष (13 सितंबर 2019) शुक्रवार से शुरू होकर 28 सितंबर 2019 शनिवार आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक रहेगा. इस दौरान लोग श्राद्ध कर्म करते हैं. बताया जा रहा है कि इस साल पितृपक्ष में दशमी और एकदशी का श्राद्ध एक ही दिन होगा. दरअसल 24 सितंबर को दशमी 11.42 तक रहेगी और फिर एकादशी लग जाएगी. ऐसे में मध्य समय में दोनों तिथियों का योग होने से श्राद्ध एक ही दिन होगा.
द्रष्टव्य- आप किसी विशेषज्ञ ज्योतिष या स्थानीय पंडित से विधि विधान और तिथि को लेकर परामर्श अवश्य करें, क्षेत्र व स्थान के मुताबिक अंतर हो सकता है
अपने पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान करते हैं. पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का ये सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. प्रत्येक वर्ष के आश्विन कृष्ण पक्ष का 15 दिन पितृपक्ष कहलाता है. अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का यह पावन अवसर है.
पुं नाम नरकात त्रायते यः सः पुत्रः
अर्थात पुत्र जीवित माता-पिता की सेवा करे और मरणोपरांत पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करें तो वह पितृऋण से मुक्त होता है. इस प्रकार अपने मृत पूर्वजों अर्थात पितरों को संतुष्ट करने के लिए किया जाने वाला पिंडदान, तर्पण, हवन और अन्न दान जो श्रद्धा के साथ किया जाए वह श्राद्ध है.
ऐसे करें श्राद्ध
पितरों के निमित्त सभी क्रियाएं जनेऊ दाएं कंधे पर रखकर और दक्षिनाभिमुख होकर की जाती है. तर्पण काले तिल मिश्रित जल से किया जाता है. श्राद्ध का भोजन, दूध, चावल, शक्कर और घी से बने पदार्थ का होता है. कुश के आसन पर बैठकर कुत्ता और कौवे के लिए भोजन रखें. इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए निम्न मंत्र का 3 बार जप करें —
- ओम देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः.
स्वधायै स्वाहायै नित्य में भवन्तु ते.
तदुपरांत तीन -तीन आहुतियां
- आग्नेय काव्यवाहनाय स्वाहा
- सोमाय पितृ भते स्वाहा
- वै वस्वताय स्वाहा
इतना करना भी संभव न हो तो जलपात्र में काला तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करें और ब्राह्मण को फल मिष्ठान्न खिलाकर दक्षिणा दें.
इन बातों का रखें ध्यान
श्राद्ध के दिन एक समय भोजन, भूमि शयन व ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है. इन दिनों में पान खाना, तेल लगाना, धूम्रपान आदि वर्जित है. इसके अतिरिक्त भोजन में उड़द, मसूर, चना, अरहर, गाजर, लौकी, बैगन, प्याज और लहसुन का निषेध है. श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगने आए तो उसे खाली हाथ नहीं जाने दें. मान्यता है कि पितर किसी भी रूप में अपने परिजनों के बीच में आते हैं और उनसे अन्न पानी की चाहत रखते हैं. गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ इन्हें श्राद्ध पक्ष में मारना नहीं चाहिए. इन्हें खाना देना चाहिए.