शिक्षा प्रेरकों के लिए सरकार के पास धन नहीं

कृष्णकांत पाठक

KK_PATHAKदेश की साक्षरता दर में वृद्धि के उद्देश्य से साक्षर भारत योजना का शुभारंभ 8 सितंबर 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था. योजना देश के सभी प्रांतों में लागू की गई योजना का अच्छा परिणाम भी देखने को भी मिला और देश की साक्षरता दर में अप्रत्याशित वृद्धि हुई. महिलाओं की साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ. इस योजना के संचालन के लिए जिला स्तर पर जिला समन्वयक तथा ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक समन्वयक की नियुक्ति की गई. इनकी देखरेख में योजना चल पड़ी.

प्रत्येक गांव में एक पुरुष तथा एक महिला शिक्षा प्रेरक रखे गए

पूर्व सर्वेक्षण के आधार पर पहले चरण में गांव के निरक्षर चयनित किए गए. उन्हें लोक शिक्षा केंद्रों के माध्यम से शिक्षित करने का शुभ कार्य प्रारंभ हुआ. नवसाक्षरों की मूल्यांकन परीक्षा वर्ष में दो बार मार्च एवं अगस्त में कराई जाती है. गांव स्तर पर इस योजना के संचालन की जिम्मेदारी शिक्षा प्रेरकों को दी गई. प्रत्येक गांव में एक पुरुष तथा एक महिला शिक्षा प्रेरक रखे गए. उनका मानदेय प्रतिमाह 2000 रुपये निर्धारित किया गया, परंतु दुर्भाग्य है कि केंद्र व राज्य सरकार के पास इन शिक्षा प्रेरकों के 2000 रुपये प्रतिमाह की दर से मानदेय भुगतान करने के लिए भी धन नहीं है

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

28 माह से नहीं मिला शिक्षा प्रेरकों का मानदेय

उत्तर प्रदेश के जनपदों में साक्षर भारत योजना सन 2011 में लागू की गई. बलिया जनपद में एक दिसंबर 2011 को शिक्षा प्रेरकों ने अपने अपने लोक शिक्षा केंद्रों पर योगदान दिया. एक वर्ष तक उन्हें लोक शिक्षा केंद्रों के माध्यम से मानदेय का भुगतान किया गया. लोक शिक्षा केंद्रों के खाता का संचालन ग्राम सभा के ग्राम प्रधान तथा लोक शिक्षा केंद्र के प्रधानाध्यापक सचिव के माध्यम से किए जाने की योजना थी. गांव स्तर पर भुगतान में विलंब तथा अनियमितता की शिकायत आने पर राज्य सरकार ने सीधे ब्लॉक लोक शिक्षा केंद्र के खाते में धनराशि दी जाने लगी और खंड शिक्षा अधिकारी तथा खंड विकास अधिकारी के माध्यम से प्रेरकों का मानदेय भुगतान होने लगा.

खातों में धन ही नहीं भेज रही सरकार

बाद में खाता संचालन से खंड विकास अधिकारी का नाम हटाकर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का नाम शामिल किया गया, परंतु साक्षरता निदेशालय से खातों में समय समय पर मानदेय मास मोबिलाइजेशन तथा प्रबंधन में धनराशि न आने के कारण योजना अंतिम सांस लेने लगी. लिहाजा आज की स्थिति में शिक्षा प्रेरकों का 28 माह का मानदेय बकाया है. प्रेरकों के प्रतिनिधिमंडल को साक्षरता निदेशक अवध नरेश शर्मा का कहना है कि सरकार के द्वारा इस मद में धन उपलब्ध न कराए जाने के कारण खातों में धनराशि नहीं भेजी जा रही है.

विधान सभा तथा विधान परिषद में भी उठती रही है मांग

शिक्षा प्रेरकों तथा ब्लॉक समन्वयक जिला समन्वयक के बकाया मानदेय भुगतान की आवाज विधान सभा तथा विधान परिषद में भी समय-समय पर उठती रही है बलिया से फेफना क्षेत्र से भाजपा विधायक उपेंद्र तिवारी ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया तथा सरकार से जवाब देने को कहा वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से विधायक केदारनाथ सिंह ने भी इस मुद्दे को उठाया. शिक्षा प्रेरकों ब्लॉक समन्वयक तथा जिला समन्वयक का बकाया मानदेय भुगतान करने की मांग सरकार से की गई. जिला स्तर पर शिक्षा निदेशालय तथा विधानसभा के सामने भी शिक्षा प्रेरक अपनी बकाया मानदेय को लेकर समय-समय पर धरना प्रदर्शन करते रहे हैं.

क्या करते हैं शिक्षा प्रेरक

  • बेसिक शिक्षा के अधीन काम कर रहे शिक्षा प्रेरक चिन्हित नवसाक्षरों को साक्षरता मूल्यांकन परीक्षा में शामिल कर उन्हें साक्षर होने का प्रमाण पत्र उपलब्ध कराते हैं
  • प्राथमिक विद्यालयों में दो घंटे तक शिक्षण कार्य भी करते हैं.
  • उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा में भी ड्यूटी करते हैं.
  • त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मतदान के दौरान भी इनकी सेवाएं ली गई.
  • मतगणना कार्य में भी इन्हें लगाया गया.
  • राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना समाजवादी पेंशनर को साक्षर करने के साथ ही उनके परिवार में निरक्षरों को साक्षर करने का कार्य शिक्षा प्रेरक करते रहे हैं.
  • अधिकांश बूथों पर बूथ लेवल ऑफिसर शिक्षा प्रेरकों को ही बनाया गया है.
This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE