सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर यूपी की सियासत में काफी सुर्खियों में रहते हैं. उनकी पार्टी ने हालिया पंचायत चुनावों में पूर्वांचल के कुछ जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया और कई सीटें जीती भी. इस दौरान बलिया में सुभासपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में खुद ही समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का भी ऐलान कर दिया था.
ओम प्रकाश राजभर की पिछले दिनों समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ कई मुलाकातें भी हुईं. इस दौरान वह अखिलेश यादव की काफी तारीफें किया करते थे. उन्होंने यह तक कह दिया था कि अखिलेश यादव को वह यूपी का अगला मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं और उन्हें बेस्ट सीएम भी बताया करते थे, लेकिन बीते-एक-दो हफ्ते से ओम प्रकाश राजभर के सुर बदले हुए हैं, वह अखिलेश यादव पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं.
हाल ही में आए एक इंटरव्यू में जब ओमप्रकाश राजभर से पूछा गया कि वह अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में से किसे बेहतर नेता मानते हैं तो उनका सीधा जवाब था कि शिवपाल यादव. वह यहीं नहीं रुके, सपा अध्यक्ष पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि ‘अखिलेश यादव कमरे में बैठ कर दगे हुए कारतूस इकट्ठा कर रहे हैं, वह अमेरिका से पढ़ कर आए और विरासत में राजनीति मिल गई, धरातल की समझ तो है ही नहीं.
अखिलेश यादव और अन्य नेताओं के साथ मुलाकातों पर ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि वह किसी के पास नहीं गए, लोग ही उन्हें बुला रहे हैं. ओम प्रकाश राजभर ने जो बातें कहीं और जिस अंदाज में यह बातें कहीं वह निश्चित रूप से अखिलेश यादव को पसंद नहीं आएंगी. राजभर यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि उनकी यह बातें संभावित गठबंधन में रोड़ा बन सकती हैं लेकिन उन्होंने फिर यह बातें कहीं तो कुछ बात तो है ही.
सुभासपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ चुनाव लड़कर 4 विधानसभा सीटें जीती थी, वह वर्तमान योगी सरकार में मुख्यमंत्री भी रहे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में मतदान के फौरन बाद हटा दिए गए.
भाजपा का साथ छूटने के बाद भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने वाले राजभर प्रयासरत थे कि उन्हें सपा जैसी बड़ी पार्टी का साथ मिल जाए, इसके लिए उन्होंने काफी सारी कोशिशें भी कीं, लेकिन अब वह जिस तरह से बयान दे रहे हैं उससे लगता है कि समाजवादी पार्टी के साथ उनकी बात नहीं बन पा रही है.
सवाल यह है कि अब उनकी आगे की राजनीति क्या होगी. पूर्वांचल के जिस हिस्से में उनका जनाधार है वहां समाजवादी पार्टी, भाजपा और बसपा ही सबसे बड़े दल हैं और बिना इनके सहयोग के चुनावी जीत हासिल कर पाना नामुमकिन जैसा है.
वैसे पिछले दिनों खबरें आई थीं कि भाजपा फिर से राजभर को मनाने की कोशिश में है, वहीं राजभर अब अपनी पुरानी पार्टी बसपा को लेकर बहुत ही संभल कर बोल रहे हैं. तो क्या आने वाले समय में वह घर वापसी करके अपने किसी पुराने साथी के साथ ही दिखाई देने वाले हैं? राजभर ने इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन सियासत के जानकार बता रहे हैं कि उनके पास अब विकल्प ज्यादा नहीं बचे हैं.